35 वर्षीय राकेश चार साल पहले आम लोगों में शुमार थे, लेकिन अपनी मेहनत और
लगन के बल पर अब खास बन गये हैं. आधुनिक संचार साधन का इस्तेमाल कर
परंपरागत खेती-किसानी का स्वरूप कैसे बदला जा सकता है, इसका बेहतर उदाहरण
राकेश ने पेश किया है. बब्बू के पास उन्नत नस्ल की 19 गायें हैं, जिनमें से
सभी का प्रतिदिन का लेखा-जोखा कंप्यूटर पर है. बब्बू गायों की समस्या और
उनका समाधान इंटरनेट के जरिये ही करते हैं.
तब था आर्थिक संकट : बब्बू ने बताते हैं कि 1999 में पिता सिरताज सिंह
की मौत हो गयी. इसके बाद वो आर्थिक संकट में आ गये. तीस एकड़ से ज्यादा
जमीन के लिए रासायनिक खाद तक के पैसे नहीं थे. खाद नहीं पड़ने से खेती भी
ठीक नहीं हो रही थी. इस तरह सालों बीत गये. 2006 में बब्बू को इंटरनेट के
जरिये वर्मी कंपोस्ट की जानकारी मिली, जिसके बाद उन्होंने वर्मी कंपोस्ट का
प्लांट लगाने की ठानी. 2007 में तीन गायें खरीद कर बब्बू ने दुग्ध
उत्पादन के साथ वर्मी कंपोस्ट का प्लांट शुरू किया.
इंटरनेट से समाधान : बब्बू ने शुरू से ही गायों की देखभाल और उनकी
बीमारियों के समाधान के लिए इंटरनेट का सहारा लिया. वह नेट के जरिये उन्नत
नस्ल की गायों के बारे में जानकारी लेते हैं. नेट से सहायता लेकर उसी के
मुताबिक देखभाल व रख रखाव करते हैं. बब्बू अपनी गायों से जुड़ा सारा ब्योरा
नेट पर डालते हैं. साथ ही इसकी डायरी भी मेनटेन करते हैं.
गायों की आरती : बब्बू का दिन सुबह चार बजे से शुरू होता है. नित्य
क्रिया से निवृत्त होने के बाद वो गायों की देखभाल में जुट जाते हैं. अभी
उमस भरी गरमी का मौसम है, सो दिन में गायों को तीन से चार बार स्नान कराया
जाता है. सुबह-शाम गायों की जांच होती है.
‘गायें पालने के बाद बब्बू हम लोगों से मिले थे. उनके दूध की बिक्री
नहीं हो पा रही थी, हम लोगों ने बिक्री की व्यवस्था की.’ विजय कुमार,
एमडी, तिमुल
रिपोर्टः विनोद दुबे सकरा (मुजफ्फ़रपुर)