रांची, प्रणव : झारखंड मतलब कोयले की खान। यह खान झारखंड की जान है तो
कोयला माफियाओं के लिए पैसा बरसाने वाली मशीन। माफिया जितना अवैध कारोबार
करते हैं उतना ही नुकसान सरकार को होता है। हर माह करोड़ों के राजस्व की
क्षति होती है। कोल लिंकेज मामले की जांच कर रही सीबीआइ की तहकीकात में कई
चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। इसमें बताया गया है कि झारखंड-बिहार में
प्रति वर्ष 2000 करोड़ रुपये के अवैध कोयले का कारोबार होता है। इस धंधे
में 200 से ज्यादा रजिस्टर्ड कारोबारी शामिल हैं।
जांच के दौरान प्रवीण अग्रवाल का बिहार के औरंगाबाद स्थित फैक्ट्री पर्ल,
मनोज सिंह का मां मुंडेश्वरी, गोपाल सिंह का आरा में ज्ञान इंडस्ट्रीज,
विजय धानुका का आरा में ही एसआर इंडस्ट्रीज व झारखंड के कोल व्यवसायी विनय
प्रकाश का सेलर, व बालाजी इंडस्ट्री आदि के कारोबार में गड़बड़ी की बात
सामने आई है। कारोबारी को घरेलू उपयोग के लिए कोयला आधी कीमत पर मिलता है।
घरेलू कोयले की कीमत 1250 रुपये मीट्रिक टन है, जबकि ई-ऑक्सन के जरिए मिलने
वाले कोयले की दर 2500 रुपये मीट्रिक टन है। कोयला माफिया घरेलू
उपयोगकर्ता को कोयला आपूर्ति करने के नाम पर कोयला लेते हैं। उसको धुंआ
रहित बनाकर बेचने की बात करते हैं। जिन कंपनियों के नाम पर कोयला खरीदा
जाता है, वह दरअसल में सिर्फ कागजों पर होता है। रियायत दर पर कोयला खरीद
कारोबारी उसे दोगुने दाम पर बाजार में बेच देते हैं। इस तरह करीब 2000
करोड़ का अवैध कारोबार फल-फूल रहा है। कागज पर पनप रही इन कंपनियों पर रोक
लगाने के लिए सीबीआइ ने केंद्र को सुझाव भेजा है।
कोयला माफियाओं के लिए पैसा बरसाने वाली मशीन। माफिया जितना अवैध कारोबार
करते हैं उतना ही नुकसान सरकार को होता है। हर माह करोड़ों के राजस्व की
क्षति होती है। कोल लिंकेज मामले की जांच कर रही सीबीआइ की तहकीकात में कई
चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। इसमें बताया गया है कि झारखंड-बिहार में
प्रति वर्ष 2000 करोड़ रुपये के अवैध कोयले का कारोबार होता है। इस धंधे
में 200 से ज्यादा रजिस्टर्ड कारोबारी शामिल हैं।
जांच के दौरान प्रवीण अग्रवाल का बिहार के औरंगाबाद स्थित फैक्ट्री पर्ल,
मनोज सिंह का मां मुंडेश्वरी, गोपाल सिंह का आरा में ज्ञान इंडस्ट्रीज,
विजय धानुका का आरा में ही एसआर इंडस्ट्रीज व झारखंड के कोल व्यवसायी विनय
प्रकाश का सेलर, व बालाजी इंडस्ट्री आदि के कारोबार में गड़बड़ी की बात
सामने आई है। कारोबारी को घरेलू उपयोग के लिए कोयला आधी कीमत पर मिलता है।
घरेलू कोयले की कीमत 1250 रुपये मीट्रिक टन है, जबकि ई-ऑक्सन के जरिए मिलने
वाले कोयले की दर 2500 रुपये मीट्रिक टन है। कोयला माफिया घरेलू
उपयोगकर्ता को कोयला आपूर्ति करने के नाम पर कोयला लेते हैं। उसको धुंआ
रहित बनाकर बेचने की बात करते हैं। जिन कंपनियों के नाम पर कोयला खरीदा
जाता है, वह दरअसल में सिर्फ कागजों पर होता है। रियायत दर पर कोयला खरीद
कारोबारी उसे दोगुने दाम पर बाजार में बेच देते हैं। इस तरह करीब 2000
करोड़ का अवैध कारोबार फल-फूल रहा है। कागज पर पनप रही इन कंपनियों पर रोक
लगाने के लिए सीबीआइ ने केंद्र को सुझाव भेजा है।