सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस आरवी रवींद्रन और ज्ञानसुधा मिश्रा ने पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को नोटिस भेजा है। मंत्रालय के फैसले को चुनौती देने वाली ओडिशा माइनिंग कॉपरेरेशन की याचिका पर मंत्रालय से एक हफ्ते में जवाब मांगा है। उनके वकील केके वेणुगोपाल ने कहा कि मंत्रालय ने राज्य के उपक्रम को अनिवार्य नोटिस जारी नहीं किया। वेणुगोपाल ने कोर्ट का ध्यान इस ओर भी दिलाया कि मंत्रालय ने शीर्ष कोर्ट में चल रहे मामले की अनदेखी की।
21 अप्रैल को शीर्ष कोर्ट ने ओडिशा सरकार, वन एवं पर्यावरण मंत्रालय तथा स्टरलाइट इंडस्ट्रीज को माइनिंग कापरेरेशन की याचिका पर नोटिस जारी किए थे। इसमें नियमगिरि में बॉक्साइट खनन प्रोजेक्ट के लिए फॉरेस्ट क्लीयरेंस रद्द करने को चुनौती दी गई थी।
स्टरलाइट और ओएमसी में हुए अनुबंध के अनुसार अनिल अग्रवाल के नेतृत्व वाली कंपनी 55 करोड़ रुपए वाइल्डलाइफ फंड में जमा करेगी। 10 करोड़ रुपए या वार्षिक लाभ के पांच प्रतिशत में से जो भी ज्यादा राशि हो, उसे आदिवासी इलाकों के विकास पर खर्च किया जाएगा। ब्रिटिश कंपनी वेदांता रिसोर्सेस की भारतीय कंपनी स्टरलाइट के प्रोजेक्ट को 2007 में मंत्रालय ने सैद्धांतिक अनुमति दी थी।
24 अगस्त 2010 को मंत्रालय ने खनन कार्य करने से इनकार कर दिया। ओएमसी ने इसे अवैध बताया था। मंत्रालय ने इसी आधार पर बाद में स्टरलाइट के 1.7 अरब डॉलर के बॉक्साइट माइनिंग प्रोजेक्ट के फॉरेस्ट क्लीयरेंस को ठुकरा दिया। इसका आधार कई वन एवं पर्यावरणीय कानूनों का उल्लंघन बताया गया।