47 में से 19 गांवों की जमीन को लेकर कोर्ट में विवाद

जयपुर। रिंग रोड के लिए अवाप्त हुई जमीन में से अभी लगभग 55 प्रतिशत जमीन का ही जेडीए में समर्पण हुआ है। इस जमीन का भी भौतिक कब्जा अभी जेडीए को नहीं मिला है। जमीन किसानों के कब्जे में ही है और उस पर खेती हो रही है। इसके अलावा रिंग रोड से प्रभावित कुल 47 गांवों में से 19 गांवों के किसान अदालत में केस लड़ रहे हैं, जिनकी जमीन 35 प्रतिशत है। इसके अलावा 5 प्रतिशत जमीन बिल्डरों की है और 5 प्रतिशत जमीन न सरेंडर हुई और न ही कोर्ट में।

ऐसे में सवाल यह है कि जब रिंग रोड के लिए आवश्यक जमीन ही जेडीए के कब्जे में नहीं है तो प्रोजेक्ट का निर्माण कैसे संभव है? इस सवाल पर जेडीए के डिप्टी कमिश्नरों से लेकर प्रोजेक्ट विंग के अधिकारियों के जवाबों में भिन्नता है और उनमें समन्वय नहीं बैठ पा रहा है।

निर्माण शुरू करने के मुद्दे पर रेवेन्यू शाखा के अधिकारी इंजीनियरों पर जिम्मेदारी डाल रहे हैं जबकि निर्माता कंपनी को जमीन सौंपने के मुद्दे पर इंजीनियर कहते हैं, डिप्टी कमिश्नरों से पूछिए। उधर, 28 जुलाई तक यदि जेडीए निर्माता कंपनी को 90 मीटर चौड़े ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर के लिए 60 प्रतिशत जमीन नहीं सौंपता है तो टेंडर की शर्त के मुताबिक उस पर प्रति दिन 4.60 लाख रुपए का जुर्माना लगना तय है।

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