एक्सटेंशन की राह पर जाता दिख रहा है। अंतर सिर्फ इतना है कि नोएडा
एक्सटेंशन में किसानों के हक में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद कई
हाउसिंग प्रोजेक्ट रुक गए हैं, जबकि यहां जमीन अवाप्ति होने के बाद किसानों
ने रिंग रोड के लिए जमीन देने से ही मना कर दिया। यह फैसला मंगलवार को
किसानों की महापंचायत में लिया गया। किसानों का कहना है कि वे न तो जेडीए
अधिकारियों को क्षेत्र में घुसने देंगे और न ही कंपनी को निर्माण करने
देंगे। उल्लेखनीय है कि जेडीए 28 जुलाई से मौके पर काम शुरू करने जा रहा
है। इसके लिए उसने किसानों की 6768 बीघा जमीन अवाप्त की है।
डिग्गी रोड पर बालावाला में हुई महापंचायत में रिंग रोड संघर्ष समिति के
अध्यक्ष बद्रीनारायण शर्मा और सचिव वीरेंद्र कटेवा ने चेतावनी दी है कि 28
जुलाई से कंपनी और जेडीए के अधिकारी-कर्मचारी खुद की रिस्क पर ही क्षेत्र
में आएं। संघर्ष समिति ने गांव-गांव में फिर से दस्ते सक्रिय कर दिए हैं जो
जमीन का कब्जा लेने या रिंग रोड का निर्माण करने से सरकारी मशीनरी और
सेनजोश कंपनी को रोकेंगे। उन्होंने कहा कि सरकार सारी मांगे मानेगी, तब ही
लिखित समझौता पेश करेंगे हाईकोर्ट में। अन्यथा सभी 372 याचिकाएं जारी
रहेंगी।
ये हैं किसानों की मांगें
> 90 मीटर से ज्यादा अवाप्त की गई जमीन को मुक्त किया जाए।
> अवाप्ति में कई गड़बड़ियां। कई खसरे अलाइनमेंट से बाहर के भी अवाप्ति में शामिल, जबकि अंदर के खसरे छोड़े। दुबारा से सर्वे हो।
> मुआवजे में मिलने वाली जमीन पर जेडीए का नीचे दुकान, ऊपर मकान का मॉडल मंजूर नहीं।
> किसानों को पूरी विकसित भूमि पर व्यावसायिक, संस्थानिक और आवासीय उपयोग की छूट मिले।
> मकान, कुआं और अन्य स्ट्रक्चर्स का बाजार दर पर मुआवजा मिले
> किसानों की जमीनें लीज फ्री करके टोकन मनी के रूप में एक रुपया प्रति मीटर राशि ली जाए।
> हाईटेंशन से प्रभावित साढ़े तीन किमी क्षेत्र में एक तरफ डवलपमेंट कॉरिडोर मंजूर नहीं।
> पूरे प्रोजेक्ट की जमीनों के उपयोग और फेसिलिटी एरिया को दर्शाता हुआ
नक्शा बनाकर उस पर किसानों की सहमति ली जाए, ताकि आगे जाकर जेडीए किसानों
के साथ धोखा नहीं कर सके।
रिंग रोड का सच
2005 से विवाद, खामोश सरकार
रिंग रोड के लिए आगरा रोड से अजमेर रोड तक के 47 किमी लंबाई में जमीन
अवाप्ति की प्रक्रिया 2005 में शुरू की गई थी। तभी से किसान अपनी मांगों को
लेकर संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन सरकार उनकी मांगें पूरी नहीं कर पाई।
कोर्ट में 372 किसान
ज्यादा जमीन को अवाप्ति से मुक्ति और मुआवजा बाजार भाव से देने की मांग को
लेकर 372 किसान हाईकोर्ट में केस लड़ रहे हैं। सरकार ने आउट ऑफ कोर्ट
किसानों से न तो समझौता किया और न हीं कोर्ट में सटीक जवाब दाखिल किया।
कमाई के लिए ली उपजाऊ जमीन
90 मीटर चौड़ी रिंग रोड के लिए सिर्फ 1692 बीघा जमीन की जरूरत। जेडीए ने ली
6768 बीघा जमीन। जेडीए के पास साढ़े27 लाख वर्गमीटर कॉमर्शियल जमीन
बचेगी। इससे 4 हजार करोड़ से ज्यादा की कमाई होगी।
भूमिहीन हो गए कई किसान
कई किसान तो ऐसे हैं जिनकी सारी जमीनें ही अवाप्त हो गई। गोरधनपुरा में एक
किसान की 70 बीघा और अभयपुरा के एक किसान की 40 बीघा जमीन ही रिंग रोड की
भेंट चढ़ गई। यानी कहने को तो किसान हैं, लेकिन जमीन नहीं है।