हाईकोर्ट में मंगलवार को नोएडा एक्सटेंशन के बिसरख, हैबतपुर, इटेड़ा, रोजा याकूबपुर के साथ घंघोला, देवला, घोड़ी बछेड़ा, मायचा व नोएडा के बादौली गांव के किसानों की याचिका पर सुनवाई होनी है। बिल्डर व निवेशकों के साथ फ्लैट बायर्स वेलफेयर एसोसिएशन की तरफ से भी सात याचिकाएं कोर्ट में दाखिल की गई है। इन सभी याचिकाओं पर कोर्ट एक साथ सुनवाई करेगा। ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण ने भी अपना पक्ष मजबूती से रखने के लिए वकीलों की फौज तैयार की है। सीईओ भी अपना पक्ष रखने के लिए सोमवार को इलाहाबाद रवाना हो गए।
फैसले से तय होगा इन परियोजनाओं का भविष्य
-बिसरख में 24 ग्रुप हाउसिंग परियोजनाएं
-हैबतपुर में चार ग्रुप हाउसिंग परियोजनाएं
-रोजा याकूबपुर में 11 ग्रुप हाउसिंग परियोजनाएं व चार आइटी कंपनी
-इटेड़ा में छह ग्रुप हाउसिंग परियोजना व 10 आइटी कंपनी मेट्रो रेल परियोजना
-प्रस्तावित एक दर्जन अस्पताल
ग्रेनो के आधे हिस्से पर संकट के बादल
-नोएडा एक्सटेंशन के गांवों में न्यायालय के फैसले से उत्साहित कई अन्य गांवों के किसानों ने भी जमीन अधिग्रहण के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर करने की घोषणा की है। दरअसल, प्राधिकरण ने इमरजेंसी क्लॉज लगाकर जमीन अधिग्रहण की जो प्रक्रिया नोएडा एक्सटेंशन के गांवों में अपनाई थी, वही प्रक्रिया बाकी गांवों में भी अपनाई गई है। इन गांवों के किसानों ने भी हाईकोर्ट जाने का मन बना लिया है। यह प्राधिकरण के लिए मुसीबत का सबब बन सकता है।
ठेकेदार व मजदूरों का धरना जारी
-नोएडा एक्सटेंशन में प्राधिकरण व बिल्डरों की परियोजनाओं में निर्माण कार्य कर रहे ठेकेदार व मजदूरों का धरना मंगलवार को दूसरे दिन भी जारी रहा। ठेकेदार संघ का कहना है कि निर्माण कार्य रुकने से मजदूरों के लाखों रुपये फंस गए हैं। कोर्ट व प्राधिकरण को उनका भी पक्ष सुनना चाहिए। एसडीएम दादरी सौम्य श्रीवास्तव को ज्ञापन सौंपा गया। चेतावनी दी गई कि यदि उनके पक्ष को नजरअंदाज किया गया तो वे अपना धरना-प्रदर्शन जारी रखेंगे।
किसानों ने जलाए बिल्डरो व अधिकारियों के पुतले
-जमीन अधिग्रहण को लेकर किसानों का आक्रोश बढ़ता जा रहा है। सोमवार को नोएडा एक्सटेंशन के कई गांवों के किसानों ने प्राधिकरण के चेयरमैन, सीईओ व बिल्डरों के पुतले जलाए। रोजा याकूबपुर, रोजा जलालपुर, साबेरी समेत तमाम गांवों के किसान सोमवार सुबह नोएडा एक्सटेंशन चौराहे पर एकत्र हुए और बिल्डरों व प्राधिकरण अधिकारियों के पुतले जलाए। ग्रामीण पंचायत मोर्चा के प्रवक्ता इंद्र नागर ने कहा कि प्राधिकरण में तैनात अधिकारी व बिल्डरों की संपत्तिकी जांच होनी चाहिए। किसानों ने चेतावनी दी कि शीघ्र उनकी जमीन नहीं लौटाई गई तो वे व्यापक स्तर पर आंदोलन करेंगे।
नोएडा प्रकरण से बढ़ी बैंकों की मुसीबत
नई दिल्ली [जयप्रकाश रंजन]। नोएडा एक्सटेंशन में जमीन अधिग्रहण विवाद के जल्दी सुलझते नहीं देख कम से कम आधा दर्जन बैंकों के सांसेंअटकी हुई हैं। अगर यह विवाद अगस्त, 2011 तक नहीं सुलझता है तो इन बैकों के फंसे कर्जे [एनपीए] में एक हजार करोड़ रुपये की वृद्धि हो सकती है। पहले से ही यह समस्या झेल रहे इन बैंकों का वित्ताीय प्रदर्शन भी इससे प्रभावित हो सकता है। जानकारों के मुताबिक नोएडा एक्सटेंशन में सबसे ज्यादा कर्ज देने वालों में भारतीय स्टेट बैंक, पंजाब नैशनल बैंक और एचडीएफसी बैंक शामिल हैं।
नोएडा एक्सटेंशन विवाद पर इलाहाबाद हाईकोर्ट का पहला फैसला आने से कुछ समय पहले से ही बैंकों ने यहां पर कर्ज की बकाया राशि देनी बंद कर दी है। बैंकिंग नियमों के मुताबिक अगर कर्ज की राशि का भुगतान 90 दिनों तक नहीं होती है तो उसे एनपीए की श्रेणी में डालना पड़ता है। इस हिसाब से देखें तो बैंक अगस्त, 2011 तक का इंतजार करेंगे। अगर तब तक इस मामले का कोई हल नहीं निकलता है तो कर्ज की जो राशि अभी तक दी गई है उसकी वसूली करने का विकल्प ही उनके पास बचेगा।
दरअसल, सरकारी बैंकों ने अभी तक एक हजार करोड़ रुपये के कर्ज नोएडा एक्सटेंशन की विभिन्न आवासीय परियोजनाएं को दिए हैं। कर्ज की राशि आवासीय परियोजनाओं की प्रगति से लिंक्ड है। यानी परियोजनाओं का निर्माण जितना होता जाता है उस हिसाब से बैंक होम लोन की राशि अदा करते हैं। जून, 2011 से बैंक शेष राशि का भुगतान बंद कर चुके हैं। मौजूदा नियमों के मुताबिक परियोजनाओं के रद होने की स्थिति में बैंक लोन चुकाने की जिम्मेदारी कर्ज लेने वाले ग्राहक की होती है। बैंकों का कहना है कि वे फिलहाल इंतजार करना चाहते हैं। अगर नोएडा प्राधिकरण के अधिकारी और किसानों के बीच परियोजनाओं को आगे बढ़ाने को लेकर समझौता हो जाता है तो वे फिर से कर्ज देना शुरू कर देंगे। लेकिन अगले कुछ हफ्तों के भीतर ऐसा नहीं होता है तो फिर उनके सामने ग्राहकों से कर्ज वसूलने का और कोई चारा नहीं होगा।
बैंकों का कहना है कि उन्होंने नियमों के मुताबिक ही नोएडा एक्सटेंशन स्थित परियोजनाओं को कर्ज दिया है। इसके बावजूद अगर ये परियोजनाएं फंस गई हैं तो इसके लिए उन्हें जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। बैंक आरबीआई से भी मांग करने पर विचार कर रहे हैं कि इस विशेष स्थिति की वजह से उन्हें एनपीए प्रायोजन के नियमों में कुछ राहत दी जाए।