ग्रामीण विकास मंत्रालय में होगी रमेश की परीक्षा

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली : जयराम रमेश जैसे तेजतर्रार नेता को ग्रामीण
विकास मंत्रालय सौंपकर सरकार ने एक साथ कई निशाने साधे हैं। अपने कई बयानों
को लेकर विवादों में रहे रमेश को वन व पर्यावरण मंत्रालय से हटाकर यहां
भेजा गया है। वन व पर्यावरण मंत्रालय से उन्हें विदा करने के जहां राजनीतिक
मायने निकाले जा रहे हैं, वहीं आने वाले दिनों में मनरेगा व भूमि अधिग्रहण
विधेयक उनकी कार्यक्षमता की परीक्षा लेंगे।
ग्रामीण विकास मंत्रालय की विभिन्न योजनाओं के क्रियान्वयन को लेकर
राज्यों से टकराव और अति विवादित भूमि अधिग्रहण विधेयक का मसौदा बनाने में
नए मंत्री को पसीने छूटेंगे, क्योंकि भूमि अधिग्रहण के मसले को लेकर उनके
नेता राहुल गांधी इन दिनों किसानों के बीच गांव-गांव घूमकर अलख जगा रहे
हैं। इससे निपटना रमेश के लिए बहुत आसान नहीं होगा। शपथ लेने के तत्काल
बाद मंगलवार को ही जयराम रमेश ने आनन-फानन में ग्रामीण विकास मंत्रालय का
कामकाज संभाल लिया। इस दौरान रमेश के चेहरे पर नए मंत्रालय को लेकर उत्साह
नजर नहीं आया। पत्रकारों के सवालों पर दो टूक जवाब देने वाले जयराम रमेश ने
कुछ भी बोलने से मना कर दिया। जानकारों की मानें तो केंद्र सरकार के लिए
जयराम रमेश को ग्रामीण विकास मंत्रालय सौंपना काफी मुफीद साबित होगा।
मंत्रालय के कामकाज के हिसाब से यहां उनकी कार्यक्षमता का पूरा उपयोग होगा।
सरकार का सामाजिक चेहरा उजागर करने में रमेश महत्त्‍‌वपूर्ण साबित हो सकते
हैं। तथ्य यह है कि संप्रग सरकार के पहले कार्यकाल में जयराम रमेश सोनिया
गांधी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के प्रमुख सदस्य थे। उस
दौरान राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना का मसौदा तैयार करने में
उन्होंने महत्त्‍‌वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इतना ही नहीं, उन्होंने सरकार की
प्रस्तावित पुनर्वास नीति का मसौदा बनाने में भी अहम योगदान किया था।
सरकार को भूमि अधिग्रहण विधेयक तैयार करने और संसद में उसे पारित कराने के
लिए एक तेजतर्रार नेता की तलाश थी। भूमि अधिग्रहण नीति पर राहुल गांधी के
ताजा रुख के बाद यह मुद्दा और भी खास हो गया है।

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