क्या प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में रखा जाना चाहिए और क्या
लोकपाल को किसी के प्रति जवाबदेह बनाया जाना चाहिए सवालों पर हमने विभिन्न
क्षेत्र के ख्यातिलब्ध हस्तियों की राय जानी जो इस प्रकार है।
प्रधानमंत्री को लोकपाल के अधीन होना चाहिए। स्वच्छ और पारदर्शी
व्यवस्था के लिए ऐसा होना बेहद जरूरी है। लोकपाल को जनता के प्रति जवाबदेह
होना चाहिए। उसे जनता द्वारा ही चुना जाना चाहिए। ऐसी पुख्ता व्यवस्था भी
की जानी चाहिए कि जब लोकपाल अपने उद्देश्यों से भटक जाए तो जनता उसे किसी
भी समय वापस बुला ले।
– डॉ. प्रणव पण्ड्या (कुलाधिपति देव संस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार)
प्रधानमंत्री की जनता के प्रति सीधी जवाबदेही के कारण इनको भी लोकपाल
के दायरे में लाया जाए। गलतियां लोकपाल से भी हो सकती हैं। इसके लिए जनता
को सजग रहना होगा। लोकपाल यदि सरकारी तंत्र पर निगाह रखेगा तो लोग उस पर
नजर रखें।
-सुंदरलाल बहुगुणा
निश्चित रूप से प्रधानमंत्री भी लोकपाल के दायरे में होने चाहिए। देश
में भ्रष्टाचारमुक्त व पारदर्शी व्यवस्था स्थापित करने के लिए यह बेहद
जरूरी है। कोई ऐसी सक्षम अथॉरिटी होनी चाहिए, जिसके प्रति लोकपाल को
जवाबदेह बनाया जा सके। लोकपाल अपने उद्देश्यों पर कायम रहे इसके लिए यह
जरूरी है।
-रस्किन बांड (प्रसिद्ध अंग्रेजी लेखक)
प्रधानमंत्री व उनके कार्यालय को लोकपाल के तहत अवश्य लाया जाना चाहिए।
जो लोग इसका विरोध कर रहे हैं वे गलत कर रहे हैं। मेरे हिसाब से लोकपाल की
किसी के प्रति जवाबदेही नहीं होनी चाहिए।
– प्रो. नामवर सिंह (हिंदी साहित्य के विख्यात आलोचक)
मैं लोकपाल के दायरे में प्रधानमंत्री पद को भी लाने के पक्ष में हूं।
यदि ऐसा नहीं होता है तो यही समझा जाएगा कि इस पद पर बैठे व्यक्ति से कोई
गलती होती है, तो उसकी जांच नहीं होगी? साथ ही, मैं यह भी मानती हूं कि
लोकपाल को संविधान के प्रति जवाबदेह होना चाहिए।
– महाश्वेता देवी (ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित लेखिका)
प्रधानमंत्री भी देश का नागरिक होता है, तो उसके लिए अलग व्यवस्था
क्यों होनी चाहिए? संविधान में सभी समान हैं, और किसी पद से गड़बड़ी की
संभावना बनी रहती है, तो फिर लोकपाल सबके लिए जरूरी है। लोकपाल को जनता के
प्रति जवाबदेह होना होगा। यह कैसे हो, इसे संविधान के दायरे में तय किया
जाए।
-उषा गांगुली (मशहूर रंगकर्मी)
यदि समाज का आम वर्ग अपने कार्य के प्रति ईमानदार व निष्ठावान हो तो
किसी की भी जवाबदेही की जरूरत नहीं है। प्रधानमंत्री के पद का अपना ही
रुतबा व वजूद है। ऐसे में मुझे नहीं लगता कि प्रधानमंत्री को लोकपाल के
दायरे में लाया जाए। लोकपाल की जनता के प्रति जवाबदेही सुनिश्चित होनी
चाहिए
– सुमन रावत मेहता (अर्जुन पुरस्कार विजेता)
आम नागरिक की तरह प्रधानमंत्री को भी लोकपाल के दायरे में लाया जाना
चाहिए। लोकपाल को जोकपाल बनाना कतई उचित नहीं है। सबसे बड़ा पेंच यही है कि
लोकपाल किसके प्रति जवाबदेह हो। मेरी राय हैकि लोकपाल का दायरा तय करने पर
चर्चा की बजाय इस बात पर सहमति बनाई जाए कि लोकपाल किसके प्रति जवाबदेह हो
सके।
-मनोज कुमार (फिल्म अभिनेता)
प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में लाना मुझे उचित नहीं लगता। हमें
किसी एक पर तो विश्वास करना होगा। प्रधानंत्री को पूरे देश ने, पूरे सदन ने
चुना है। अगर उन्हें ही लोकपाल के दायरे में शामिल किया गया तो लोकपाल
किसके प्रति जवाबदेह होगा। मेरी राय है कि इस पद को को लोकपाल के दायरे से
अलग कर लोकपाल को इसके प्रति जवाबदेह बनाया जाना चाहिए।
– यशपाल शर्मा (चरित्र अभिनेता)
प्रधानमंत्री को भी लोकपाल के दायरे में लाना जरूरी है। इससे देश की
कार्यप्रणाली में पारदर्शिता एवं जिम्मेदारी बढ़ेगी। देश का प्रत्येक
व्यक्ति जब लोकपाल के अधीन होगा, तो फिर प्रधानमंत्री क्यों नहीं? लोकपाल
के ऊपर भी किसी का नियंत्रण होना चाहिए। इसके लिए सरकार कोई व्यवस्था तैयार
करे, ताकि तंत्र को सही तरीके से संचालित किया जाए।
– सुधा वर्गीज (पद्मश्री सम्मानित समाजसेविका)
हमारे देश में संसद सर्वोच्च है। प्रधानमंत्री को लोकपाल के अन्दर होना
चाहिए या नहीं, यह संसद को तय करने देना चाहिए। संसद को ही तय करने दिया
जाये कि लोकपाल किसके प्रति जिम्मेदार होगा? राज्यों के लोकायुक्त की
व्यवस्था है। लेकिन लोकायुक्त की नियुक्ति के बावजूद व्यवस्था में कोई
बदलाव नहीं दिखायी दे रहा है। इस पर भी सोचने की जरूरत है।
– रामाधार (कृषि वैज्ञानिक)
संसदीय प्रणाली में जनता के प्रतिनिधि ही सर्वोपरि होते हैं और
प्रधानमंत्री उनका प्रतिनिधि होता है। इस प्रणाली में देश का प्रत्येक
नागरिक बराबर है। इसलिए प्रधानमंत्री और सभी निर्वाचित प्रतिनिधि सीधे जनता
के प्रति जिम्मेदार हैं। इसलिए संसदीय प्रणाली के स्थान पर किसी भी दूसरी
या एक व्यक्ति के प्रणाली का मैं विरोध करता हूं, चाहे वह राष्ट्रपति
प्रणाली हो या लोकपाल प्रणाली। भ्रष्टाचार की जड़ पूंजीवाद और व्यक्तिगत
संपत्ति है। वास्तव में भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए संपत्ति के
उत्तराधिकार को समाप्त करना होगा। इससे भ्रष्टाचार मिटाने में काफी सहायता
मिलेगी। जब तक पूंजीवाद और व्यक्तिगत संपत्ति का अधिकार रहेगा, भ्रष्टाचार
रहेगा। दरअसल, यह मुद्दा मात्र आर्थिक नहीं, नैतिक भी है।
– अरुण कमल (कवि, साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता)