प्रदेश में गेहूं-धान के फसली चक्र को तोड़ने के लिए दालों की काश्त अहम
भूमिका निभा रही है। किसानों का रुझान प्रतिदिन दालों की काश्त की ओर बढ़
रहा है। प्रदेश में दालों की खेती के तहत 80 फीसदी के करीब रकबा बढ़ने की
संभावना है।
कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक दालों की बिजाई के लिए जुलाई के शुरुआती
दिन फायदेमंद हैं। मांह दाल की किस्में मांह-114, मांह-1-1 व मांह-338
बीजना अधिक फायदेमंद है। प्रदेश में गेहूं-धान के फसली चक्र के कारण प्रदेश
भूजल व भूमि की गुणवता पर वितरीत प्रभाव पड़ रहा है। फसली चक्र तोड़ने को
दालों की खेती अहम भूमिका निभा रही है। विभागीय आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2010
के दौरान प्रदेश में 41 हजार हेक्टेयर रकबे पर दालों की खेती की जा रही
थी। इस वर्ष 2011 बढ़कर 77 हजार हेक्टेयर होने की संभावना है। गत वर्ष
प्रदेश में 16 हजार टन दालों का उत्पादन हुआ था जो इस वर्ष 20 हजार टन तक
पहुंचने की संभावना है। जुलाई में बारिश होने के बाद वातावरण में हल्की
गर्मी के साथ आर्द्रता की मात्रा बढ़ जाती है। वहीं जमीन में भी आर्द्रता
बढ़ जाती है जिससे खेत तैयार करने में मदद मिलती है। ऐसे वातावरण में
दालों की बिजाई करना काफी फायदेमंद साबित होता है।
पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के प्रसार शिक्षा निदेशक डा. अवतार सिंह
गिल के अनुसार जुलाई के शुरुआती दिनों में दालों की बिजाई करनी चाहिए। मांह
दाल की किस्में माह-114, माह-1-1 व माह-338 की बिजाई अन्य किस्मों के
मुकाबले अधिक लाभ देती है। माह व मूंगी से नदीन समाप्त करने को एक-दो बार
गोड़ाई करनी चाहिए। वहीं अधिकतम उत्पादन के लिए मूंगी दाल की फसल को 15
किलोग्राम यूरिया, 100 किलोग्राम सुपर फास्फेट प्रति एकड़ देना चाहिए। मांह
की दाल को प्रति एकड़ 11 किलोग्राम यूरिया व 60 एकड़ सुपर फास्फेट डालना
चाहिए। फसल को बीमारियों से बचाव के लिए बिजाई से पहले बीजों का शोधन करना
जरूरी है। इसके अभाव में फसल के उत्पादन पर विपरीत असर पड़ता है।