पहाड़ की खेती सदा उपेक्षित रही है। कड़ी मेहनत के बावजूद यहां के
काश्तकारों के लिए खेती लाभकारी नहीं बन सकी। यह बात गांधी शांति
प्रतिष्ठान नई दिल्ली की अध्यक्ष राधा भट्ट ने कही। सुश्री भट्ट विवेकानंद
पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के 88वें स्थापना दिवस पर बतौर मुख्य अतिथि
बोल रहीं थीं।
उन्होंने कहा कि यही कारण है कि पहाड़ का काश्तकार का परिवार पलायन करता
आया है। एक तो पहाड़ की छोटी जोत, उस पर कृषि का लाभकारी न होना पीड़ादायक
है। उन्होंने वन विकास पर चर्चा करते हुए कहा कि यह भी जरूरी है ताकि
कृषकों की आवश्यकता की पूर्ति हो सके। वन संपदा में निरंतरता बनी रहे। राधा
भट्ट ने संतोष जताया कि विवेकानंद संस्थान पर्वतीय कृषकों के उत्थान के
लिए निरंतर प्रयासरत है। इस दिशा में और काम करने की जरूरत है। संस्थान के
निदेशक डॉ.जगदीश चंद्र भट्ट ने पिछले एक वर्ष की उपलब्धियों पर चर्चा करते
हुए कहा कि मक्का की दो, टमाटर, शिमला मिर्च, मटर की एक-एक प्रजाति विकसित
की है। इनका विमोचन भी हुआ है। इसके अतिरिक्त अनेक उपलब्धियों को भी निदेशक
ने रखा। इस मौके पर फसल उत्पादन विभाग के अध्यक्ष डॉ.जेके बिष्ट ने
अतिथियों का स्वागत किया। मुख्य कृषि अधिकारी अभय सक्सेना, स्वाति
ग्रामोद्योग संस्थान के राजेंद्र सिंह बिष्ट, डॉ.एके श्रीवास्तव, पूर्व
निदेशक डॉ.एमसी जोशी, पूर्व प्रशासनिक अधिकारी शंकर लाल साह, डॉ.शमशेर सिंह
बिष्ट, पूर्व वनाधिकारी डॉ.जेएस मेहता ने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम की
अध्यक्षता रामकृष्ण मिशन के अध्यक्ष स्वामी सोमदेवानंद ने की। कार्यक्रम का
संचालन डॉ.रेनू जेठी ने किया। डॉ.लक्ष्मीकांत ने सभी का आभार जताया।
कार्यक्रम के दौरान मेधावी बच्चों को पुरस्कार प्रदान किए। संस्था के
संस्थापक बोसी सेन द्वारा चलाई गई परंपरा के अनुसार समापन मौके पर आम की
दावत परोसी गई।