जंगलों के लिए खतरा बनी रसोई गैस की वृद्धि

ठियोग।
रसोई गैस के दाम 50 रुपए प्रति सिलेंडर बढ़ जाने से ऊपरी क्षेत्रों के
बहुमूल्य जंगलों पर फिर खतरा मंडराने लगा है। ठियोग की बात करें तो यहां पर
गैस सिलेंडर का भाव 435 रुपए पहुंच गया है। ईंधन के लिए इतनी बड़ी राशि
प्रतिमाह जुटाना गरीब किसानों और मजदूरों के लिए संभव नहीं है।




अपेक्षाकृत ठंडा क्षेत्र होने के कारण पहाड़ों में वैसे भी रसोई गैस की खपत
मैदानी क्षेत्रों से ज्यादा होती है। तापमान सर्दियों में तो इतना कम होता
है कि खाना बनाने में दोगुना समय और गैस खर्च होती है। ठियोग क्षेत्र के
अधिकतर घरां में अक्टूबर के बाद लकड़ी का चूल्हा प्रयोग किया जाता है, जो
खाना पकाने और घर को गर्म रखने के दोनों कार्य करता है।




आम तौर नौकरी पेशा और बड़े किसान-बागबान तो रसोई गैस भारी भरकम खर्च वहन कर
लेते हैं, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में आम औसत परिवार गैस के दाम बढ़ते की
चूल्हों पर निर्भर हो जाते हैं, जिनमें प्रतिवर्ष हजारों पेड़ स्वाह हो
जाते हैं। ठियोग सहित अपर शिमला के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में बहुमूल्य
देवदार, मौहरु, बान और अखरोट आदि के जंगल हैं।




कई बार क्षेत्र के पर्यावरण प्रेमी यह मांग केंद्र और राज्य सरकार के समक्ष
उठा चुके हैं, कि ईंधन के लिए हर वर्ष जलाए जाने वाले जंगलों को बचाने के
लिए पहाड़ी क्षेत्रों के लोगों को रसोई गैस और ईंधन के अन्य वैकल्पिक
स्रोतों पर ज्यादा अनुदान दिया जाए, ताकि ईंधन के लिए जंगलों पर निर्भरता
कम हो सके।




पर्यावरण संरक्षण के कार्य में जुटी स्वयंसेवी संस्था लोग कल्याण मंडल के
प्रमुख पीआर रमेश का कहना है कि सरकार की प्राथमिकता हिमालय क्षेत्र में
जंगलों को बचाने की होनी चाहिए। पर्यावरण के लिए हर वर्ष करोड़ों के खर्च
कर कुछ हिस्सा पहाड़ी लोगों को अनुदान पर ईंधन उपलब्ध करवाने पर भी खर्च
होना चाहिए। उधर पहाड़ी राज्यों का समूह बना है और वर्तमान सांसद वीरेंद्र
कश्यप भी इस दिशा में कार्य करने का दावा कर रहे हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *