दूसरे रास्ते से एफडीआइ लाने की तैयारी

नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। सीधे न सही, लेकिन सरकार ने दूसरे रास्ते से
मल्टी ब्रांड रिटेल, रक्षा और विमानन क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश
[एफडीआइ] लाने का रास्ता निकाल लिया है। हालांकि, अभी यह विकल्प
विचार-विमर्श के लिए मसौदे के रूप में ही उपलब्ध है। यदि इस पर सहमति बनती
है तो सरकार इन क्षेत्रों में एफडीआइ खोलने के लिए यह रास्ता अपना सकती है।
इसके तहत सरकार ऐसी कंपनियों में 49 प्रतिशत एफडीआइ की इजाजत दे सकती है,
जिनकी कोई स्वतंत्र इकाई रिटेल या विमानन जैसे क्षेत्र में कार्यरत है।

वाणिज्य व उद्योग मंत्रालय के औद्योगिक नीति व संवर्धन विभाग
[डीआइपीपी] ने एफडीआइ पर अपने नए परिचर्चा पत्र में इस विकल्प को शामिल
किया है। इसके तहत कंपनियों द्वारा किए जाने वाले डाउनस्ट्रीम निवेश को
एफडीआइ की मौजूदा नीति से बाहर रखने की सिफारिश की गई है। मंत्रालय के
परिचर्चा पत्र के मुताबिक, कोई ऐसी कंपनी, जिसमें 50 प्रतिशत हिस्सेदारी और
बोर्ड में निदेशक नियुक्त करने का अधिकार किसी भारतीय के पास हो, घरेलू
बाजार के किसी भी क्षेत्र में निवेश करती है तो उसे विदेशी के बजाय घरेलू
निवेश माना जाना चाहिए। अभी तक इसे अप्रत्यक्ष एफडीआइ के तौर पर देखा जाता
रहा है। ऐसी ही होल्डिंग कंपनियों को डाउनस्ट्रीम कंपनियां कहा जाता है, जो
अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में निवेश कर कारोबार करती हैं।

डीआइपीपी के परिचर्चा पत्र के नए मसौदे के मुताबिक, नीति में बदलाव
होता है तो उन सभी क्षेत्रों में 49 प्रतिशत एफडीआइ के रास्ते खुल जाएंगे,
जिनमें अभी इजाजत नहीं है। यानी डाउनस्ट्रीम होल्डिंग कंपनियों में एफडीआइ
लाकर उनके रास्ते रिटेल, विमानन और रक्षा उत्पादन जैसे क्षेत्रों के लिए
विदेशी कंपनियों के रास्ते खुल जाएंगे। परिचर्चा पत्र में यह सुझाव भी है
कि डाउनस्ट्रीम कंपनियों में एफडीआइ की सीमा को 49 प्रतिशत से अधिक भी रखा
जा सकता है।

डीआइपीपी ने पिछले हफ्ते ही एफडीआइ को लेकर चली आ रही अपनी परिचर्चा
में इस सुझाव को आगे बढ़ाया है। मल्टी ब्रांड रिटेल से लेकर विमानन क्षेत्र
के लिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के दरवाजे खोलने का दबाव उद्योग जगत लंबे
समय से बना रहा है। लेकिन सरकार इस पर पूरे बहस मुबाहिसे के बाद ही कोई
फैसला लेना चाहती है। इन क्षेत्रों को संवेदनशील मानते हुए सरकार सीधे तौर
पर एफडीआई की इजाजत देने से हिचकती रही है।

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