वो कहते हैं कि 27 मई को स्थानीय प्रशासन के अधिकारी हथियारबंद पुलिस वालों को साथ लेकर आए और पूरे गांव को घेर लिया गया।
किसान
विरोध करते रहे पर कुछ ही देर में खेतों में उग रही फसलों पर ज़िला
प्रशासन ने ट्रेक्टर और रोलर फेर दिए गए। खेतों की गीली मिट्टी पर मशीनों
के चौड़े पहियों के निशान कई दिन बाद भी साफ देखे जा सकते थे। बड़े-बड़े
टायरों की चपेट में आने से बच गए अरहर के छोटे-छोटे पौधे अब भी वहां खड़े
हैं।
धोखा : लगभग दो साल पहले जिक्रपुर के किसानों की जमीन भी राज्य सरकार ने ग्रेटर नोएडा से आगरा
के बीच बनाए जा रहे यमुना एक्सप्रेस वे और रिहाइशी इलाके बनाने के लिए ले
ली थी। बहुत से किसानों ने मुआवजा स्वीकार कर लिया, लेकिन अब वो कहते हैं
कि उन्हें सरकार ने ‘धोखे’ में रखा।
अभी
पिछले साल 14 अगस्त को यहां विरोध प्रदर्शन कर रहे किसानों पर पुलिस ने
गोली चलाई थी जिसमें एक चौदह साल के बच्चे सहित चार लोग मारे गए थे। कई
किसानों की शिकायत है कि उन्हें इस बात की जानकारी नहीं थी कि उनकी जमीन
सरकार ने प्राइवेट बिल्डरों को रिहाइशी इमारतें बनाने के लिए दे दी हैं।
ऋषिपाल
सिंह अत्री कहते हैं, ‘हमने अभी अपनी जमीन सरकार को देने का करार नहीं
किया है। हमने अपनी जमीन को जोता बोया। अभी कुछ दिन पहले प्रशासन चार पांच
गाड़ियों में पीएसी के जवानों को लाया और उनकी मदद से जबरदस्ती जमीन को
जुतवा दिया और हमारे खिलाफ नोटिस भेज दिए। पांच किसानों के नाम पुलिस
रिपोर्ट भी दर्ज कर दी।’
गांव
की महिलाएं और पुरुष मुझे वो खेत दिखाने ले गए जिनमें खड़ी फसलें उजाड़ दी
गई थीं। पैंतीस वर्ष की सुमन अपने ग़ुस्से को रोकने में नाकाम हो रही थीं।
उन्होंने कहा, ‘प्रशासन ने ठाड़े है के जुतवायो है सबरे खेतन में। चार
ग्राइंडर और चार जेसीवी (निर्माण कार्य में काम आने वाली बुलडोजर जैसी
मशीन) आई। पुलिस ने हम पर बंदूकें तानी। अपनी फसलों की बरबादी देखकर हम खूब
रोए।’
लेकिन
जिलाधिकारी अनिल कुमार इन सभी आरोपों को गलत बताते हैं। उन्होंने बीबीसी
को बताया, ‘ये जमीन आज से कई महीने पहले कानूनन ताज एक्सप्रेस अथॉरिटी को
ट्रांसफर कर दी गई थी और अथॉरिटी ने इसे निर्माण कंपनी को लीज पर दिया। जो
जमीन रेवेन्यू रिकॉर्ड में इनके नाम पर है ही नहीं उसमें किसानों ने 27 मई
से दो एक दिन पहले फसल बोने का प्रयास किया। इसके बाद कंपनी ने रिपोर्ट
दर्ज करवाई।’
करार : उन्होंने
कहा कि जिक्रपुर के नब्बे प्रतिशत किसानों ने अपनी जमीन देने के करार पर
दस्तखत कर दिए हैं। लेकिन मुनेश नाम की महिला ने कहा कि उन्हें पता ही नहीं
चला कि उनकी जमीन जेपी ग्रुप के पास चली गई है। ये जानकारी उन्हें तब मिली
जब जमीन की फ़र्द (दस्तावेज) निकाले गए। मुनेश की दस बीघा जमीन थी।
मुनेश
ने कहा, ‘तब हमें पता चला कि हमारी दस की दस बीघा जमीन चली गई है।’ ‘हमारी
ज्वार पलट दी, अरहर पलट दी। हम डीएम (ज़िलाधिकारी) के पास गए तो उन्होंने
कहा जमीन तुम्हारी कहां है, ये जमीन तो जेपी की है।’
मुनेश
का सवाल है कि हमने अपनी जमीन देने के लिए किसी करार पर दस्तखत नहीं किए
तो हमारी जमीन जेपी कंपनी की कैसे हो गई? ‘अगर जमीन जेपी की है तो प्रशासन
हमारे पास करार करवाने को आता ही क्यों है’, मुनेश से सवाल उठाया।
गांव
वालों ने बताया कि फसलों को रौंदा जाता देख कुछ महिलाएं रोने लगीं और
चक्कर खाकर गिर पड़ीं। वहां खड़ी एक महिला ने कहा कि पुलिस वालों ने
धमकियां दी और कहा ‘चार सोंटे पड़ेंगे इनके भूत भाग जाएंगे।’
राजो
बताती हैं कि उन्होंने अपनी जमीन देने के लिए कोई करार नहीं किया। उनके
पति की मृत्यु हो गई है। वो कहती हैं, ‘जमीन सब चली गई है अब हमारे बच्चे
क्या खाएंगे? उन्हें कौन पालेगा?’