गृहश्रमिकों को मान्यता

संतोष की
बात है कि आखिरकार दुनिया ने घरों में काम करने वाले कामगारों की फिक्र की
है। यह भी प्रशंसनीय है कि भारत ने अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के
100वें अधिवेशन में ऐसे कामगारों के हक में हुई संधि का समर्थन किया।




अब यह अपेक्षा स्वाभाविक है कि भारत सरकार जल्द इस संधि का अनुमोदन करे और
इसे लागू करने के लिए जरूरी कानूनी प्रावधान करे। यह दुखद है कि संपन्न एवं
मध्यवर्गीय घरों के तमाम काम करने वाले मजदूरों के हितों की रक्षा के लिए
आज तक विशिष्ट कानून नहीं हैं।




भारत में ऐसे मजदूरों की संख्या साढ़े चार से दस करोड़ तक बताई जाती है और
उनमें अधिकांश अति अमानवीय परिस्थितियों में काम करते हैं। इन कामगारों के
लिए न तो वेतन का कोई तय फॉमरूला है, न वे हक से कहीं छुट्टी मांग सकते
हैं। बहुतों को पिटाई या गाली-गलौज जैसे उत्पीड़न से गुजरना पड़ता है।




आईएलओ का अनुमान है कि दुनिया में घरेलू कामगारों में 83 फीसदी महिलाएं या
लड़कियां हैं, जिनमें से अनेक को यौन शोषण झेलना पड़ता है। ऐसे कामगार
उपलब्ध कराने वाली एजेंसियों के अस्तित्व में आने से मानव तस्करी की घटनाएं
तेजी से बढ़ी हैं।




नई संधि में इन सभी बातों पर गौर किया गया है। सबसे बड़ी जरूरत इन कामगारों
की तनख्वाह तय करने, उन्हें स्वास्थ्य, मातृत्व एवं विकलांगता संबंधी लाभ
और वृद्धावस्था पेंशन आदि की सुविधा देने की है। साथ ही संगठन बनाने के
उनके अधिकार को कानूनी मान्यता मिले, ताकि अपने हक में बनने वाले कानूनों
को लागू कराने के लिए वे संघर्ष कर सकें।




आईएलओ की एक रिपोर्ट में पिछले साल कहा गया था कि ऐसी मजदूरी की कीमत अक्सर
कम लगाई जाती है और उन लोगों की रक्षा के कानून बेहद कमजोर हैं। ताजा संधि
इसी कमी को दूर करने की कोशिश है। इसका तभी कोई मतलब होगा, जब सरकार उसे
उसकी भावना के मुताबिक लागू करे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *