पटनाः बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आज कहा कि जैविक खेती को
अपनाने के लिए राज्य सरकार किसानों हर तरह की सुविधा मुहैय्या करायेगी.
यहां के मौर्या होटल में आज से शुरू तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का
उदघाटन करते हुए नीतीश ने कहा कि बिहार सरकार ने राज्य में जैविक खेती को
काफ़ी महत्ता दी है और पिछले वर्ष से जैविक खेती को प्रोत्साहित करने के
लिए 250 करोड रुपये की लागत से एक विशेष योजना पर काम शुरू कर दिया गया है.
नीतीश ने कहा कि इस योजना के तहत बिहार के हर जिले में एक गांव को जैविक
गांव के रूप में विकसित करने के लिए चिह्नित किया गया है.
उन्होंने कहा कि वर्मी कम्पोस्ट के उत्पादन को मांग आधारित बनाया गया है
और पहले साल ही करीब 40 हजार किसानों ने इसका लाभ उठाया है और व्यवसायिक
स्तर पर वर्मी कम्पोस्ट बनाने के कार्यक्रम की शुरूआत की गयी है.
नीतीश ने कहा कि हमारे यहां गोबर का इस्तेमाल लोग जलावन के लिए भी करते
हैं और ईंधन का भी विकल्प होना चाहिए इसलिए वर्मी कम्पोस्ट के साथ-साथ
बायोगैस का संयत्र लगाने पर सरकार की ओर से 50 प्रतिशत का अनुदान देने की
योजना है और अगर मल पर आधारित बायोगैस की स्थापना करेंगे तो सरकार 75
प्रतिशत अनुदान देगी. उन्होंने कहा कि इस खरीफ़ के मौसम में लगभग एक लाख
क्विंटल ढैंचा की बीज निःशुल्क उपलब्ध कराया गया है और यह पूरी कोशिश है कि
मिट्टी की उर्वरा शक्ति बनी रहे. नीतीश ने कहा कि हम बायो-फ़र्टिलाईजर को
बढावा दे रहे हैं और बीज उत्पादन करने वाले किसानों को जैव उर्वरक मुफ्त
उपलब्ध कराया जा रहा है.
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि 2010-11 में लगभग एक लाख दस
हजार किसानों को राजोबियम और दो लाख 27 हजार किसानों को एजेटोबैक्टर और
फ़ास्फ़ेट सोलिबिलाईजिंग बैक्टिरिया पीएसबी उपलब्ध कराया गया है. उन्होंने
कहा कि बायो-फ़र्टिलाईजर में सरकार का 90 प्रतिशत अनुदान देने का विचार है
और जो बायो-पेस्टीसाईड्स अपनाएंगे उन्हें 50 प्रतिशत अनुदान देने की योजना
है.
सम्मेलन को कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह और मुख्यमंत्री के कृषि सलाहकार
मंगला राय, कृषि उत्पादन आयुक्त अशोक कुमार सिंहा और विभागीय सचिव एन
विजयालक्ष्मी ने संबोधित किया. इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने जैबिहार.काम नामक
वेबसाईट का भी उदघाटना किया. जैविक खेती पर आयोजित इस तीन दिवसीय सम्मेलन
में भारतीय कृषि विशेषज्ञों के साथ अमेरिका, न्यूजीलैंड. स्वीटजरलैंड,
जिम्बाबे, श्रीलंका तथा भूटान सहित करीब 6 अन्य देशों के कृषि वैज्ञानिक
भाग ले रहे हैं.