टाटा समूह को टा-टा नहीं कहेंगी ममता

जागरण ब्यूरो, कोलकाता
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को बंगाल में विकास की गति बढ़ाने के लिए टाटा
समूह की मदद की जरूरत महसूस हो रही है। वजह स्पष्ट है कि एक तो राज्य की
माली हालत खस्ता है, दूसरे अब ममता तृणमूल सुप्रीमो नहीं, बल्कि
मुख्यमंत्री हैं। यही वजह है कि मुख्यमंत्री बनने के बाद 18 जून को कोलकाता
में उद्योगपतियों के साथ होने जा रही उनकी पहली बैठक में टाटा भी आमंत्रित
किए गए हैं। बैठक में टाटा समूह के प्रतिनिधि के शामिल होने के पूरे आसार
हैं।
सिंगुर से तृणमूल के आंदोलन के चलते नैनो कारखाना बंगाल से गुजरात चला
गया। बावजूद इसके टाटा व ममता के बीच अप्रत्यक्ष रूप से ही सही बातचीत होती
रही है। सत्ता परिवर्तन के पहले तृणमूल सुप्रीमो की हैसियत से ममता ने
दो-तीन बैठक उद्योगपतियों के साथ की थी, जिसमें टाटा के प्रतिनिधि भी शामिल
हुए थे। आर्थिक विशेषज्ञ अभिरूप सरकार कहते हैं कि चूंकि तृणमूल ने
अनिच्छुक किसानों की भूमि वापसी को लेकर आंदोलन किया था। अत: सिंगुर पर
विधेयक बनाना ममता की बाध्यता थी। यह चुनावी वादा था और उसे पूरा करना
जरूरी था। ऐसा नहीं करने पर कहा जाता कि सत्ता में आते ही ममता वादा भूल
गई। अभिरूप कहते हैं कि टाटा भी इस बात को समझते हैं। ऐसे में पूर्व की
बातें राज्य के विकास में बाधक नहीं बनेंगी।
वह कहते हैं कि मुख्यमंत्री के रूप में यदि ममता उद्योगपतियों की बैठक बुला
रही हैं, तो यह अच्छी पहल है। ममता के सत्ता में आने पर टाटा की तरफ से
बधाई भेजी गई थी, जिसके जवाब में सरकार की तरफ से कहा गया था कि बंगाल के
विकास में हाथ बढ़ाएं। शनिवार की बैठक में प्रारंभिक दौर पर साफ हो जाएगा
कि नई सरकार को लेकर उनकी सोच क्या है, और वे कहां तक निवेश को इच्छुक हैं?
बंगाल की माली हालत सुधारने के लिए वित्तमंत्री अमित मित्रा भी भरसक कोशिश
कर रहे हैं। उनकी कोशिश है कि बैठक में देश के तमाम बड़े उद्योगपति शामिल
हों। हालांकि अमित के लिए ऐसे उद्योगपतियों को मनाना आसान नहीं है। ऐसी
स्थिति में वही उद्योगपति निवेश करने को इच्छुक होंगे, जिन्हें सरकार
गारंटी देने का वादा करेगी। बैठक में सौ से अधिक उद्योगपति आमंत्रित हैं,
जिनमें राहुल बजाज, अनिल अंबानी, गोदरेज आदि शामिल हैं।

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