नई सदी
में आर्थिक विकास की सबसे आकर्षक कहानी होने के भारत के रिकॉर्ड पर एक
बदनुमा दाग अपने समाज में महिलाओं की हालत है। हर अध्ययन हमारा ध्यान इस
चिंताजनक सूरत की तरफ खींचता है और इस कड़ी में सबसे ताजा सर्वे थॉमसन
रॉयटर फाउंडेशन का है, जिसमें महिलाओं के लिए सबसे खतरनाक जगहों की सूची
में भारत को चौथे नंबर पर रखा गया है।
इस सूची में भारत के ऊपर सिर्फ अफगानिस्तान, कोंगो और पाकिस्तान हैं। भारत
की यह बुरी तस्वीर मुख्य रूप से देश में कन्या भ्रूण हत्या, जन्म के बाद
कन्याओं की हत्या और स्त्रियों की जारी तस्करी से बनी है।
यह साफ है कि समाज की पुरातन मान्यताओं के जारी रहने और समाज सुधार की
परिघटना के थम जाने के कारण ये बुराइयां बढ़ती ही जा रही हैं। हाल में
ब्रिटिश पत्रिका लैंसेट ने अनुमान लगाया था कि 1980 से 2010 की अवधि में एक
करोड़ से भी ऊपर कन्या भ्रूण की हत्या कर दी गई।
सीबीआई के एक अनुमान के मुताबिक देश में अभी भी तीस लाख से ज्यादा वेश्याएं
हैं। लड़कियों की बड़े पैमाने पर तस्करी यौन और श्रम दोनों तरह के शोषण के
लिए होती है।
अत्याचार की ऐसी चरम स्थितियों से जो महिलाएं बच जाती हैं, उन्हें भी अक्सर
सार्वजनिक एवं कार्यस्थलों पर यौन उत्पीड़न या अन्य तरह की परेशानियों का
सामना करना पड़ता है, जबकि घरेलू हिंसा और दहेज हत्या जैसी घटनाएं भी आम
बनी हुई हैं।
यह विडंबना ही है कि राजनीति में ताकतवर महिलाओं के उभरने, कॉपरेरेट जगत
में उनके ऊंचे पदों तक पहुंचने और व्यक्तिगत प्रतिभा से खेल एवं संस्कृति
की दुनिया में नाम कमाने के बावजूद आम महिला की बेड़ियां नहीं टूट रही हैं।
यह सभी जागरूक समूहों के लिए प्राथमिक चिंता की बात होनी चाहिए, क्योंकि
आधी आबादी को खतरे में रखकर कोई समाज खुद को विकसित नहीं कह सकता
में आर्थिक विकास की सबसे आकर्षक कहानी होने के भारत के रिकॉर्ड पर एक
बदनुमा दाग अपने समाज में महिलाओं की हालत है। हर अध्ययन हमारा ध्यान इस
चिंताजनक सूरत की तरफ खींचता है और इस कड़ी में सबसे ताजा सर्वे थॉमसन
रॉयटर फाउंडेशन का है, जिसमें महिलाओं के लिए सबसे खतरनाक जगहों की सूची
में भारत को चौथे नंबर पर रखा गया है।
इस सूची में भारत के ऊपर सिर्फ अफगानिस्तान, कोंगो और पाकिस्तान हैं। भारत
की यह बुरी तस्वीर मुख्य रूप से देश में कन्या भ्रूण हत्या, जन्म के बाद
कन्याओं की हत्या और स्त्रियों की जारी तस्करी से बनी है।
यह साफ है कि समाज की पुरातन मान्यताओं के जारी रहने और समाज सुधार की
परिघटना के थम जाने के कारण ये बुराइयां बढ़ती ही जा रही हैं। हाल में
ब्रिटिश पत्रिका लैंसेट ने अनुमान लगाया था कि 1980 से 2010 की अवधि में एक
करोड़ से भी ऊपर कन्या भ्रूण की हत्या कर दी गई।
सीबीआई के एक अनुमान के मुताबिक देश में अभी भी तीस लाख से ज्यादा वेश्याएं
हैं। लड़कियों की बड़े पैमाने पर तस्करी यौन और श्रम दोनों तरह के शोषण के
लिए होती है।
अत्याचार की ऐसी चरम स्थितियों से जो महिलाएं बच जाती हैं, उन्हें भी अक्सर
सार्वजनिक एवं कार्यस्थलों पर यौन उत्पीड़न या अन्य तरह की परेशानियों का
सामना करना पड़ता है, जबकि घरेलू हिंसा और दहेज हत्या जैसी घटनाएं भी आम
बनी हुई हैं।
यह विडंबना ही है कि राजनीति में ताकतवर महिलाओं के उभरने, कॉपरेरेट जगत
में उनके ऊंचे पदों तक पहुंचने और व्यक्तिगत प्रतिभा से खेल एवं संस्कृति
की दुनिया में नाम कमाने के बावजूद आम महिला की बेड़ियां नहीं टूट रही हैं।
यह सभी जागरूक समूहों के लिए प्राथमिक चिंता की बात होनी चाहिए, क्योंकि
आधी आबादी को खतरे में रखकर कोई समाज खुद को विकसित नहीं कह सकता