आपको बता दें कि पेट्रोलियम मंत्रालय और उसकी सहयोगी संस्था डायरेक्ट्रेट जनरल ऑफ हाइड्रोकार्बन यानी डीजीएच ने मुकेश अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज समेत तीन निजी कंपनियों को तेल खोजने की छूट दी थी। कैग कि रिपोर्ट में बताया गया है कि आरआईएल को आंध्रा तट पर केजी बेसिन में तेल भंडारों का पता लगाने के लिए सरकार के साथ हुए करार की अनदेखी करने की इजाजत दी गई। कावेरी-गोदावरी बेसिन मे तेल भंडारों के अन्वेषण पर कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि इस प्रोजेक्ट पर काम शुरू होने से पहले ही आरआईएल के कॉन्ट्रैक्टरों ने गैस बेचकर काफी धन कमा लिया था और सरकार ने कॉन्ट्रैक्ट के तहत पूरा खर्च उठाया। और सरकारी अफसरों ने कंपनी की इस धांधली को अनदेखा कर दिया।
रिपोर्ट मे साफतौर पर कहा गया है कि रिलायंस ने 2004 में सरकार को बताया था कि के जी बेसिन में डेवलेपमेंट कॉस्ट की लागत लगभग 2.4 अरब डॉलर है, जबकि 2006 में इसे बढ़ाकर 8.8 अरब डॉलर कर दिया गया। इस दौरान सरकार ने कॉन्ट्रैक्ट के तहत पूरे प्रोजेक्ट का खर्ज उठाया जबकी मुकेश अंबनी की कंपनी ने गैस बेचकर काफी मुनाफ कमाया और सीधे तौर पर कॉन्ट्रैक्ट के नियमों का उल्लंघन भी किया। और पेट्रोलियम मंत्रालय चुपचार ये सबकुछ देखता रहा।
कैग ने अपनी रिपोर्ट में एक औऱ कंपनी केयर्न एनर्जी पर भी इसी तरह का आरोप लगया है। कैग के मुताबिक केयर्न इंडिया को रिलायंस इंडस्ट्रीज की तरह ही फायदा पहुंचाया गया है। यह कंपनी राजस्थान के बाड़मेर में तेल प्रोजेक्ट पर काम कर रही है।