शिवसेना
ने पीएम को लोकपाल के दायरे में लाने के सवाल पर बाबा रामदेव की हैरानी को
उनके ‘बहकने’ से जोड़ दिया है। पार्टी के मुखपत्र सामना में बुधवार को इस
बारे में प्रकाशित खबर का शीर्षक ही दिया गया है- बहके बाबा: लोकपाल पर
गोलमाल। रिपोर्ट में कहा गया है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे का
साथ देने वाले रामदेव अब अलग राग अलाप रहे हैं। सिविल सोसायटी के लोग पीएम
को लोकपाल के दायरे में लाने को कह रहे हैं पर सरकार लोकपाल पर गोलमाल कर
रही है। अब बाबा भी कह रहे हैं कि प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में
कैसे लाया जा सकता है? हालांकि बुधवार को बाबा रामदेव की ओर से यह सफाई भी
आई कि अन्ना और उनमें कोई मतभेद नहीं है।
बाबा खुद भ्रष्टाचार की
लड़ाई लड़ रहे हैं। वह 4 जून से दिल्ली में अनशन करने वाले हैं। उनके इस
आंदोलन को 25 लाख लोगों का ‘रजिस्टर्ड’ समर्थन मिला है (इन लोगों ने
मोबाइल फोन के जरिए बाबा के इस अभियान के लिए अपना समर्थन रजिस्टर्ड कराया
है)। पर लोकपाल के दायरे में प्रधानमंत्री को लाए जाने पर स्पष्ट राय
नहीं देने और इस पर हैरानी जताने की उनकी टिप्पणी को लगता है लोगों ने
पंसद नहीं किया। इस टिप्पणी की खबर पर दैनिकभास्कर डॉट कॉम के पाठकों की
प्रतिक्रियाओं से यही संकेत मिलता है। करीब ९५ फीसदी
प्रतिक्रियाएं समाजसेवी अन्ना हजारे के समर्थन में हैं। इनमें कहा गया है
कि प्रधानमंत्री को भी लोकपाल बिल के दायरे में रखा जाना चाहिए, जिससे
भ्रष्टाचार पर प्रभावी नियंत्रण रखा जा सके। केवल ५ फीसदी पाठकों ने ही
बाबा की बात का समर्थन किया है।
लोकपाल बिल का ड्राफ्ट करने वाली
कमेटी के सदस्य अन्ना हजारे और अन्य सिविल सोसायटी सदस्यों की मांग है
कि लोकपाल बिल के दायरे में प्रधानमंत्री को भी रखा जाना चाहिए, लेकिन
कमेटी के सरकारी सदस्य इससे सहमत नहीं हैं। बाबा रामदेव ने मंगलवार को इस
मुद्दे पर अन्ना हजारे से अलग राय जाहिर करते हुए संकेत दिया कि
प्रधानमंत्री को लोकपाल बिल के दायरे से बाहर रखा जाए। हालांकि उनका यह भी
कहना था कि यह जटिल मसला है, इस पर लोकतांत्रिक तरीके से निर्णय लिया जाना
चाहिए। इस खबर पर दैनिक भास्कर.कॉम के अनेक पाठकों ने अपनी प्रतिक्रिया
दी। करीब 95 फीसदी पाठकों की प्रतिक्रिया इस मुद्दे पर बाबा की राय से अलग
रही।
जयपुर के दिलीप सिंघल के अनुसार बाबा को लोकपाल बिल के दायरे
में प्रधानमंत्री को शामिल का समर्थन करना चाहिए और उन्हें इस मुद्दे पर
राजनीति नहीं करनी चाहिए। वे भ्रष्टाचार के मुद्दे पर लड़ रहे हैं और यह
तभी खत्म होगा, जब उच्च पदों पर बैठे लोग भी इसके दायरे में लाए जाएं।
ब्रिटेन से सविता ने इस मुद्दे पर बाबा रामदेव को अवसरवादी करार दिया।
उन्होंने भी कहा कि प्रधानमंत्री को लोकपाल बिल के दायरे में रखना चाहिए।
भोपाल के विजय कुमार शर्मा ने कहा कि बाबा कभी अन्ना की भाषा बोलते हैं और
कभी वे कांग्रेस के साथ दिखाई देतेहैं। ऑस्ट्रेलिया के मेलबॉर्न से मनदीप
ने कहा कि बाबा इतिहास देखें तो उन्हें पता चलेगा कि कई प्रधानमंत्री
भ्रष्टाचार के आरोप से घिरे हुए हैं। यदि लोकपाल बिल से प्रधानमंत्री को
बाहर रखेंगे तो भ्रष्टाचार कम नहीं होगा बल्कि और बढ़ेगा।
रांची के
दीपू मिश्रा ने कहा कि बाबा केवल अपना प्रचार करना चाहते हैं। वे काफी
महत्वाकांक्षी हैं और लोकपाल बिल पर उन्होंने अन्ना का विरोध कर, असली मंशा
दिखा दी है। ब्रिटेन के अनिल मौर्य ने प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को
लोकपाल बिल के दायरे में लाए जाने का समर्थन किया है। मेलबॉर्न,
ऑस्ट्रेलिया से मनदीप ने कहा कि बाबा इस मुद्दे पर इतिहास देखें तो उन्हें
पता चलेगा कि कई प्रधानमंत्री भ्रष्टाचार के आरोप से घिरे हुए हैं। यदि
लोकपाल बिल से प्रधानमंत्री को बाहर रखेंगे तो भ्रष्टाचार कम नहीं होगा
बल्कि और बढ़ेगा।
रांची के दीपू मिश्रा ने कहा कि बाबा केवल अपना
प्रचार करना चाहते हैं। वे काफी महत्वाकांक्षी हैं और लोकपाल बिल पर
उन्होंने अन्ना का विरोध कर, असली मंशा जाहिर कर दी है। ब्रिटेन के अनिल
मौर्य ने कहा कि प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री लोकपाल बिल के दायरे में लाए
जाने चाहिए। रमेश कुमार ने कहा कि बाबा ने अपने बयान में सुधार कर लिया है
और अब सभी को उनके आंदोलन का समर्थन करना चाहिए।
दिल्ली के धर्म
ने भी इस मुद्दे पर बाबा की कड़ी आलोचना की है। उन्होंने कहा कि कुछ तो
राजनेता देश को खा गए और अब बची खुची कसर बाबा पूरी करेंगे। मुंदड़ा से
अमित पाठक ने कहा कि वे बाबा की काफी इज्जत करते हैं, लेकिन यहां पर बाबा
गलत हैं। दिल्ली के लोकेश ने आशंका जताई है कि कहीं बाबा की भ्रष्टाचारियों
से सांठगांठ तो नहीं हो गई है। बिहार के मधुबनी से भारत ने कहा कि भारत के
किसी भी नागरिक को लोकपाल बिल के दायरे से बाहर नहीं रखना चाहिए।
पुणे
के दीपक अग्रवाल ने कहा कि जब अन्ना हजारे जन लोकपाल बिल के लिए लड़ रहे
हैं, तो बाबा ने भ्रष्टाचार का यह मुद्दा क्यों छेड़ दिया। जयपुर के डीएन
शास्त्री ने भी कहा कि कानून सभी के लिए समान होना चाहिए फिर वह कोई भी
क्यों न हो। हिसार से कुलदीप जांगड़ा ने भी कहा कि बाबा को अन्ना हजारे के
आंदोलन को कमजोर नहीं करना चाहिए। नीमच के चंद्रशेखर गौड़ ने कहा कि आखिर
प्रधानमंत्री को लोकपाल बिल के दायरे में रखे जाने से कौन डर रहा है। बाबा
को तो खुलकर इसका समर्थन करना चाहिए।
ने पीएम को लोकपाल के दायरे में लाने के सवाल पर बाबा रामदेव की हैरानी को
उनके ‘बहकने’ से जोड़ दिया है। पार्टी के मुखपत्र सामना में बुधवार को इस
बारे में प्रकाशित खबर का शीर्षक ही दिया गया है- बहके बाबा: लोकपाल पर
गोलमाल। रिपोर्ट में कहा गया है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे का
साथ देने वाले रामदेव अब अलग राग अलाप रहे हैं। सिविल सोसायटी के लोग पीएम
को लोकपाल के दायरे में लाने को कह रहे हैं पर सरकार लोकपाल पर गोलमाल कर
रही है। अब बाबा भी कह रहे हैं कि प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में
कैसे लाया जा सकता है? हालांकि बुधवार को बाबा रामदेव की ओर से यह सफाई भी
आई कि अन्ना और उनमें कोई मतभेद नहीं है।
बाबा खुद भ्रष्टाचार की
लड़ाई लड़ रहे हैं। वह 4 जून से दिल्ली में अनशन करने वाले हैं। उनके इस
आंदोलन को 25 लाख लोगों का ‘रजिस्टर्ड’ समर्थन मिला है (इन लोगों ने
मोबाइल फोन के जरिए बाबा के इस अभियान के लिए अपना समर्थन रजिस्टर्ड कराया
है)। पर लोकपाल के दायरे में प्रधानमंत्री को लाए जाने पर स्पष्ट राय
नहीं देने और इस पर हैरानी जताने की उनकी टिप्पणी को लगता है लोगों ने
पंसद नहीं किया। इस टिप्पणी की खबर पर दैनिकभास्कर डॉट कॉम के पाठकों की
प्रतिक्रियाओं से यही संकेत मिलता है। करीब ९५ फीसदी
प्रतिक्रियाएं समाजसेवी अन्ना हजारे के समर्थन में हैं। इनमें कहा गया है
कि प्रधानमंत्री को भी लोकपाल बिल के दायरे में रखा जाना चाहिए, जिससे
भ्रष्टाचार पर प्रभावी नियंत्रण रखा जा सके। केवल ५ फीसदी पाठकों ने ही
बाबा की बात का समर्थन किया है।
लोकपाल बिल का ड्राफ्ट करने वाली
कमेटी के सदस्य अन्ना हजारे और अन्य सिविल सोसायटी सदस्यों की मांग है
कि लोकपाल बिल के दायरे में प्रधानमंत्री को भी रखा जाना चाहिए, लेकिन
कमेटी के सरकारी सदस्य इससे सहमत नहीं हैं। बाबा रामदेव ने मंगलवार को इस
मुद्दे पर अन्ना हजारे से अलग राय जाहिर करते हुए संकेत दिया कि
प्रधानमंत्री को लोकपाल बिल के दायरे से बाहर रखा जाए। हालांकि उनका यह भी
कहना था कि यह जटिल मसला है, इस पर लोकतांत्रिक तरीके से निर्णय लिया जाना
चाहिए। इस खबर पर दैनिक भास्कर.कॉम के अनेक पाठकों ने अपनी प्रतिक्रिया
दी। करीब 95 फीसदी पाठकों की प्रतिक्रिया इस मुद्दे पर बाबा की राय से अलग
रही।
जयपुर के दिलीप सिंघल के अनुसार बाबा को लोकपाल बिल के दायरे
में प्रधानमंत्री को शामिल का समर्थन करना चाहिए और उन्हें इस मुद्दे पर
राजनीति नहीं करनी चाहिए। वे भ्रष्टाचार के मुद्दे पर लड़ रहे हैं और यह
तभी खत्म होगा, जब उच्च पदों पर बैठे लोग भी इसके दायरे में लाए जाएं।
ब्रिटेन से सविता ने इस मुद्दे पर बाबा रामदेव को अवसरवादी करार दिया।
उन्होंने भी कहा कि प्रधानमंत्री को लोकपाल बिल के दायरे में रखना चाहिए।
भोपाल के विजय कुमार शर्मा ने कहा कि बाबा कभी अन्ना की भाषा बोलते हैं और
कभी वे कांग्रेस के साथ दिखाई देतेहैं। ऑस्ट्रेलिया के मेलबॉर्न से मनदीप
ने कहा कि बाबा इतिहास देखें तो उन्हें पता चलेगा कि कई प्रधानमंत्री
भ्रष्टाचार के आरोप से घिरे हुए हैं। यदि लोकपाल बिल से प्रधानमंत्री को
बाहर रखेंगे तो भ्रष्टाचार कम नहीं होगा बल्कि और बढ़ेगा।
रांची के
दीपू मिश्रा ने कहा कि बाबा केवल अपना प्रचार करना चाहते हैं। वे काफी
महत्वाकांक्षी हैं और लोकपाल बिल पर उन्होंने अन्ना का विरोध कर, असली मंशा
दिखा दी है। ब्रिटेन के अनिल मौर्य ने प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को
लोकपाल बिल के दायरे में लाए जाने का समर्थन किया है। मेलबॉर्न,
ऑस्ट्रेलिया से मनदीप ने कहा कि बाबा इस मुद्दे पर इतिहास देखें तो उन्हें
पता चलेगा कि कई प्रधानमंत्री भ्रष्टाचार के आरोप से घिरे हुए हैं। यदि
लोकपाल बिल से प्रधानमंत्री को बाहर रखेंगे तो भ्रष्टाचार कम नहीं होगा
बल्कि और बढ़ेगा।
रांची के दीपू मिश्रा ने कहा कि बाबा केवल अपना
प्रचार करना चाहते हैं। वे काफी महत्वाकांक्षी हैं और लोकपाल बिल पर
उन्होंने अन्ना का विरोध कर, असली मंशा जाहिर कर दी है। ब्रिटेन के अनिल
मौर्य ने कहा कि प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री लोकपाल बिल के दायरे में लाए
जाने चाहिए। रमेश कुमार ने कहा कि बाबा ने अपने बयान में सुधार कर लिया है
और अब सभी को उनके आंदोलन का समर्थन करना चाहिए।
दिल्ली के धर्म
ने भी इस मुद्दे पर बाबा की कड़ी आलोचना की है। उन्होंने कहा कि कुछ तो
राजनेता देश को खा गए और अब बची खुची कसर बाबा पूरी करेंगे। मुंदड़ा से
अमित पाठक ने कहा कि वे बाबा की काफी इज्जत करते हैं, लेकिन यहां पर बाबा
गलत हैं। दिल्ली के लोकेश ने आशंका जताई है कि कहीं बाबा की भ्रष्टाचारियों
से सांठगांठ तो नहीं हो गई है। बिहार के मधुबनी से भारत ने कहा कि भारत के
किसी भी नागरिक को लोकपाल बिल के दायरे से बाहर नहीं रखना चाहिए।
पुणे
के दीपक अग्रवाल ने कहा कि जब अन्ना हजारे जन लोकपाल बिल के लिए लड़ रहे
हैं, तो बाबा ने भ्रष्टाचार का यह मुद्दा क्यों छेड़ दिया। जयपुर के डीएन
शास्त्री ने भी कहा कि कानून सभी के लिए समान होना चाहिए फिर वह कोई भी
क्यों न हो। हिसार से कुलदीप जांगड़ा ने भी कहा कि बाबा को अन्ना हजारे के
आंदोलन को कमजोर नहीं करना चाहिए। नीमच के चंद्रशेखर गौड़ ने कहा कि आखिर
प्रधानमंत्री को लोकपाल बिल के दायरे में रखे जाने से कौन डर रहा है। बाबा
को तो खुलकर इसका समर्थन करना चाहिए।