नई दिल्ली.
भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए लोकपाल विधेयक का मसौदा तैयार कर रही दस
सदस्यों वाली ड्राफ्ट समिति की सोमवार को हुई बैठक में लोकपाल कानून के
दायरे में कौन-कौन से पद और संस्थाएं शामिल हों, इस पर केंद्र सरकार के
मंत्रियों और सिविल सोसाइटी के प्रतिनिधि के तौर पर समिति में शामिल लोगों
के बीच जमकर बहस हुई।
सिविल सोसाइटी के नुमाइंदे के तौर पर ड्राफ्ट
समिति के सदस्य अरविंद केजरीवाल ने बताया कि समिति में शामिल केंद्रीय
वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने लोकपाल बिल के दायरे में प्रधानमंत्री को
लाए जाने का विरोध किया। लेकिन बाद में उन्होंने कहा कि यह उनका निजी विचार
है। वहीं, केंद्रीय मानव संसाधन एवं विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने सेना और
चुनाव आयोग को इस प्रस्तावित विधेयक के तहत लाने पर यह कहते हुए आपत्ति
दर्ज कराई कि सेना के भ्रष्टाचार से जुड़े मसले सुलझाने के लिए कोर्ट
मार्शल का तरीका पहले से ही मौजूद है। बैठक के दौरान इन मुद्दों पर जमकर
बहस हुई। समिति के एक सदस्य एडवोकेट प्रशांत भूषण ने कहा कि हालांकि
मंत्रियों ने समिति की बैठक में अभी तक निर्णायक रूप से नहीं कुछ कहा है,
लेकिन उनकी राय थी कि प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में लाना ठीक नहीं
होगा।
सिटीजन चार्टर और आम लोगों की शिकायतों को लोकपाल के दायरे
में लाए जाने पर ही सरकार और हजारे के समर्थकों के बीच सहमति बन पाई।
सरकार की ओर ड्राफ्ट समिति में शामिल सदस्यों और सिविल सोसाइटी की तरफ से
शामिल सदस्यों के बीच जब ज़्यादातर मामलों में सहमति नहीं बनी तो सरकार ने
राज्य सरकारों को चिट्ठी लिखकर उनकी राय पूछी है। इन मामलों पर ड्राफ्ट
समिति की 6 जून को होने वाली बैठक में विचार किया जाएगा।