जयपुर.
वाहनों, एसी, रेफ्रिजरेटर, उद्योगों से निकलने वाली ग्रीन हाउस गैसों
(हानिकारक) की सूची में जयपुर देश में काफी आगे है। इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट
फॉर एन्वायरनमेंट एंड डवलपमेंट की हाल ही जारी रिपोर्ट के अनुसार जयपुर में
प्रति व्यक्ति सालाना ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन 1.63 टन है, जो
गुड़गांव को छोड़कर सर्वाधिक है।
हालांकि इसमें मुंबई की स्थिति का अध्ययन नहीं किया गया है। जयपुर में हर
साल करीब 56 लाख टन ग्रीन हाउस गैसें वातावरण में घुलती हैं। प्रति व्यक्ति
सालाना ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में जयपुर ने दिल्ली, कोलकाता,
चेन्नई, हैदराबाद जैसे बड़े शहरों को पछाड़ दिया है। करीब पांच लाख टन
ग्रीन हाउस गैसें तो शहर में रोजाना चलने वाले करीब 16 लाख वाहनों से
निकलती हैं। इतनी ही गैसें शहर के पांच लाख घरों, होटलों, कॉम्प्लेक्स आदि
में फ्रिज और एसी से निकलती हैं।
डियोडरेंट से भी नुकसान: डियोडरेंट से भी क्लोरो फ्लोरो हाइड्रो
कार्बन जैसी ग्रीन हाउस गैस निकलती है। ये अस्थमा की बीमारी फैलाते हैं। –
डॉ. वीरेंद्रसिंह अस्थमा रोग विशेषज्ञ, एसएमएस
10 साल में दुगुना हुआ जयपुर में उत्सर्जनरु वर्ष 2000 में जयपुर में ग्रीन
हाउस गैसों का उत्सर्जन करीब 0.70 टन प्रति व्यक्ति था, जो अब बढ़कर 1.63
टन प्रति व्यक्तिप्रतिवर्ष हो गया है। विशेषज्ञों के अनुसार शहर में
अंधाधुंध बढ़े वाहनों, एसी व फ्रिज के उपयोग के कारण ग्रीन हाउस गैसों का
उत्सर्जन बेतहाशा बढ़ा है।
शहर में घनी आबादी और ग्रीन हाउस गैसों के हवा से भारी होने के कारण यहां
तापमान बढ़ रहा है और हीट आईलैंड बढ़ रहे हैं। ग्रीन हाउस गैसों को शहर से
बाहर निकलने की जगह भी नहीं मिल रही, जो घातक है। सरकार को टूरिज्म के
सेक्टर से जुड़े शहर के इलाकों में ट्रैफिक बैन कर इको फ्रैंडली जोन घोषित
करना चाहिए। – प्रो. पी.पी. बाकरे, अध्यक्ष, राज्य पर्यावरण विशेषज्ञ
मूल्यांकन समिति
बढ़ाना होगा पब्लिक ट्रांसपोर्ट: शहर में रहने के बाद पैसा आते ही
आमजन को लगता है पीढ़ियों में पहली बार कार खरीद रहे हैं, घर में पहला एसी
लग रहा है तो कैसे मना करें। शहरीकरण की इसी होड़ भरी लाइफ स्टाइल के कारण
ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन बढ़ रहा है। शहर में दिनों दिन कंक्रीट के
जंगल बढ़ रहे हैं। जो पेड़ हैं, उनका भी सांस लेना मुश्किल हो रहा है तो वे
इंसान को क्या प्राणवायु देंगे? आने वाली पीढ़ियों को रहने लायक पर्यावरण
देना है तो हरियाली बढ़ानी होगी और निजी कार आदि की जगह पब्लिक ट्रांसपोर्ट
का उपयोग बढ़ाना होगा। – डॉ. टी.आई. खान, पर्यावरण विज्ञान केंद्र,
राजस्थान यूनिवर्सिटी
वाहनों, एसी, रेफ्रिजरेटर, उद्योगों से निकलने वाली ग्रीन हाउस गैसों
(हानिकारक) की सूची में जयपुर देश में काफी आगे है। इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट
फॉर एन्वायरनमेंट एंड डवलपमेंट की हाल ही जारी रिपोर्ट के अनुसार जयपुर में
प्रति व्यक्ति सालाना ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन 1.63 टन है, जो
गुड़गांव को छोड़कर सर्वाधिक है।
हालांकि इसमें मुंबई की स्थिति का अध्ययन नहीं किया गया है। जयपुर में हर
साल करीब 56 लाख टन ग्रीन हाउस गैसें वातावरण में घुलती हैं। प्रति व्यक्ति
सालाना ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में जयपुर ने दिल्ली, कोलकाता,
चेन्नई, हैदराबाद जैसे बड़े शहरों को पछाड़ दिया है। करीब पांच लाख टन
ग्रीन हाउस गैसें तो शहर में रोजाना चलने वाले करीब 16 लाख वाहनों से
निकलती हैं। इतनी ही गैसें शहर के पांच लाख घरों, होटलों, कॉम्प्लेक्स आदि
में फ्रिज और एसी से निकलती हैं।
डियोडरेंट से भी नुकसान: डियोडरेंट से भी क्लोरो फ्लोरो हाइड्रो
कार्बन जैसी ग्रीन हाउस गैस निकलती है। ये अस्थमा की बीमारी फैलाते हैं। –
डॉ. वीरेंद्रसिंह अस्थमा रोग विशेषज्ञ, एसएमएस
10 साल में दुगुना हुआ जयपुर में उत्सर्जनरु वर्ष 2000 में जयपुर में ग्रीन
हाउस गैसों का उत्सर्जन करीब 0.70 टन प्रति व्यक्ति था, जो अब बढ़कर 1.63
टन प्रति व्यक्तिप्रतिवर्ष हो गया है। विशेषज्ञों के अनुसार शहर में
अंधाधुंध बढ़े वाहनों, एसी व फ्रिज के उपयोग के कारण ग्रीन हाउस गैसों का
उत्सर्जन बेतहाशा बढ़ा है।
शहर में घनी आबादी और ग्रीन हाउस गैसों के हवा से भारी होने के कारण यहां
तापमान बढ़ रहा है और हीट आईलैंड बढ़ रहे हैं। ग्रीन हाउस गैसों को शहर से
बाहर निकलने की जगह भी नहीं मिल रही, जो घातक है। सरकार को टूरिज्म के
सेक्टर से जुड़े शहर के इलाकों में ट्रैफिक बैन कर इको फ्रैंडली जोन घोषित
करना चाहिए। – प्रो. पी.पी. बाकरे, अध्यक्ष, राज्य पर्यावरण विशेषज्ञ
मूल्यांकन समिति
बढ़ाना होगा पब्लिक ट्रांसपोर्ट: शहर में रहने के बाद पैसा आते ही
आमजन को लगता है पीढ़ियों में पहली बार कार खरीद रहे हैं, घर में पहला एसी
लग रहा है तो कैसे मना करें। शहरीकरण की इसी होड़ भरी लाइफ स्टाइल के कारण
ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन बढ़ रहा है। शहर में दिनों दिन कंक्रीट के
जंगल बढ़ रहे हैं। जो पेड़ हैं, उनका भी सांस लेना मुश्किल हो रहा है तो वे
इंसान को क्या प्राणवायु देंगे? आने वाली पीढ़ियों को रहने लायक पर्यावरण
देना है तो हरियाली बढ़ानी होगी और निजी कार आदि की जगह पब्लिक ट्रांसपोर्ट
का उपयोग बढ़ाना होगा। – डॉ. टी.आई. खान, पर्यावरण विज्ञान केंद्र,
राजस्थान यूनिवर्सिटी