मेहनत हमेशा रंग लाती है. और जब मौसम हो फ़लों का तब तो किसानों की तकदीर ही खुल जाती है और उनके हाथ फ़ल नहीं सोना उगाने लगते हैं.
जयनगर : सीमावर्ती जयनगर स्थित कमला नदी में इन दिनों किसानों के द्वारा
सोना उपजाया जा रहा है. प्रखंड के जयनगर, बेला, डोरवार, कोरहिया, गोबराही
सहित कई अन्य क्षेत्रों के किसानों के द्वारा 1000 एकड़ से अधिक कमला नदी
के बालू पर गरमी मौसम का फ़ल तरबूज, खीरा, ककड़ी फ़ल बड़े पैमाने पर उपजाया
जा रहा है.
चूंकि कमला नदी के बालू पर जिन फ़लों की खेती किसानों के द्वारा की जा
रही है . उससे किसान कुछ ही महीनों में मालोमाल हो जाते है. इसलिए क्षेत्र
के सैकड़ों किसानों के द्वारा इसकी खेती व्यापक स्तर पर की जा रही है.
बताते चलें कि 1985 दशक में उत्तर प्रदेश के किसानों के द्वारा जयनगर
कमला नदी के बालू पर तरबूजा, ककड़ी, खीरा की खेती की जाती थी. यहां के
स्थानीय किसान खेती में मजदूर के रूप में काम करते थे.
चूंकि यूपी के किसान यहां के स्थानीय किसानों को सिर्फ़ मजदूरी देकर
लाखों रुपया मुनाफ़ा कमा कर यूपी चले जाते थे. उस स्थिति को देखकर स्थानीय
किसानों ने भी स्वयं खेती करने की ठान ली.
1990 के दशक से वही स्थानीय किसान जो यूपी के किसानों के साथ मजदूरी पर
काम किया करते थे खुद कमला के बालू पर इन मलों की खेती करने लगे जो आज
विस्तृत रूप ले लिया है. कहते हैं कि दन खेती में जितना पूंजी लगाया जाता
है उससे 10 गुणा किसान को फ़ायदा होता है.
किसान उमेश यादव, गंगा चौरवाड़ सहित अन्य किसानों का कहना है कि फ़रवरी
माह से इस खेती की प्रक्रिया में लग जाते हैं. जून माह तक खेती समाप्त हो
जाती है. 3 से 4 माह में कड़ी मेहनत और पूंजी की आवश्यकता पड़ता है. कमला
नदी पर पैदा की जा रही इन फ़लों का स्वाद मीठा और स्वादिष्ट होता है.
मुजफ्फ़रपुर, दरभंगा, पटना, असम, पश्चिम बंगाल सहित अन्य राज्यों एवं
शहरों के किसान यहां से इन फ़लों को ले जाता है. उधर दूसरी तरफ़ लगभग 8 से
10 सालों से अधिक मुनाफ़े कमाने की लालच में किसान इन फ़लों की खेती में
ऑक्सीटॉक्सीन दवाओं का प्रयोग कर खूबसूरत फ़ल को जहरीला बना रहे हैं.
विशेष सूत्रों का कहना है कि तरबूजा, ककड़ी, खीरा के पौधों के जड़ों में
आक्सीटॉक्सीन दवा की इंजेक्शन के प्रयोग से फ़ल जल्द साइज में बहुत बड़ा
होकर समय से पहले पक कर तैयार हो जाते हैं.
डॉ. अजीत कुमार सिंह एवं डॉ. राम लल्ला गाभी ने इस बाबत प्रभात खबर को
बताया कि आक्सीटॉक्सीन के प्रयोग से विकसित किया गया फ़ल प्रतिकूल असर
डालता है तथा मनुष्य विशेष रोग से ग्रसित हो जाते हैं. बुद्धिजीवियों का
कहना है कि सरकार को इस जहरीले ऑक्सीटाक्सीन दवाओं पर प्रतिबंध लगानी
चाहिए, एवं स्थानीय प्रशासन को भी इस गंभीर समस्या के प्रति सचेत रहनी
चाहिए.