वैज्ञानिकों की कमी से जूझ रहा है देश : प्रवीन अरोड़ा

करनाल. नित
नई रिसर्च कर विदेशों में अपना डंका बजाने वाले हमारे देश में इस समय
वैज्ञानिकों की भारी कमी सामने आ रही है। स्थिति यह है कि निर्धारित पदों
में से भी करीब 20 प्रतिशत पद खाली पड़े हैं।


जोकि चिंता का विषय है। ऐसे में दूसरे देशों को साइंस एंड टेक्नोलॉजी में कंपीटिशन देना भी चुनौतीपूर्ण रहता है।




यह खुलासा कृषि वैज्ञानिक चयन बोर्ड के चेयरमैन डा. सीडी माई ने दैनिक
भास्कर से बातचीत में किया। वे एनडीआरआई में चल रहे राष्ट्रीय सेमिनार में
शिरकत करने के लिए आए हुए थे। बकौल डा. माई देश में हर साल करीब छह हजार
वैज्ञानिकों की जरूरत होती है। वैज्ञानिकों की कमी को दूर करने के लिए
आईसीएआर हर साल पोस्ट भी निकालती है, लेकिन यहां पर भी अच्छे वैज्ञानिक
नहीं निकल पा रहे हैं, क्योंकि नवोदित वैज्ञानिकों को टीचिंग की बजाय
रिसर्च वर्क अधिक करवाया जाता है।




गत वर्ष निकाली गई पोस्ट के लिए करीब 28 हजार लोगों ने आवेदन किए थे, इनमें
से सिर्फ 290 वैज्ञानिक ही सिलेक्ट हुए। अक्टूबर माह में मत्स्य,
एग्रोनोमिक, वेटरनरी साइंस सहित अन्य विषयों के करीब 300 वैज्ञानिकों की
पोस्ट निकाली जाएगी।




साउथ इंडिया से आ रहे हैं वैज्ञानिक




डा. सीडी माई ने माना कि एक समय होता था जब देश में नार्थ इंडिया के
वैज्ञानिकों का जलवा था। हर संस्थान से एक से बढ़कर एक वैज्ञानिक आ रहे थे,
लेकिन अब नार्थ की बजाय साउथ इंडिया से अधिक वैज्ञानिक सामने आ रहे हैं।
पंतनगर, हिसार व पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी से कभी अधिक वैज्ञानिक
निकलते थे, लेकिन अब साउथ से वै™ानिक अधिक आ रहे हैं।




बढ़ाना होगा टीचिंग स्टैंडर्ड




डा. सीडी माई ने बताया कि वैज्ञानिक सिर्फ रिसर्च पर ही ध्यान देते हैं,
जबकि टीचिंग स्टैंडर्ड को बढ़ाने की तरफ ध्यान नहीं दिया जाता है। कंपीटीशन
के इस युग में टीचिंग स्टैंडर्ड भी बढ़ाना होगा। देश भर के अंडर ग्रेजुएट व
पोस्ट ग्रेजुएट संस्थानों की स्टडी करने पर यह बात सामने आई है कि वहां पर
सिर्फ रिसर्च पर जोर दिया जाता है, जबकि टीचिंग की तरफ कम ध्यान दिया जाता
है।




आने वाले 25 सालों में बढ़िया वैज्ञानिकों की संख्या बढ़ाने के लिए रिसर्च
के साथ साथ टीचिंग स्टैंडर्ड बढ़ाना होगा। डा. सीडी माई ने बताया कि
वैज्ञानिकों को और ज्यादा ज्ञान देने के लिए विदेशों में भी ट्रेनिंग दिलाई
जा रही है। आईसीएआर की तरफ से वैज्ञानिकों को विदेशों में भेजा जा रहा है।
वहां पर वे नैनो टेक्नोलॉजी, पोस्ट हार्वेस्टिंग, प्रिजर्वेशन, बायो
टेक्नोलॉजी की ट्रेनिंग ले रहे हैं। इससे देश के वैज्ञानिकों की क्षमता में
और बढ़ोतरी होगी।

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