इलाहाबाद: उत्तरप्रदेश में मायावती सरकार को करारा झटका देते हुए इलाहाबाद
उच्च न्यायालय ने आज गौतम बुद्ध नगर जिले में सौ एकड से ज्यादा अधिग्रहित
भूमि की अधिसूचना को खारिज कर दिया. ग्रेटर नोएडा में योजनाबद्ध औद्योगिक
विकास के लिये भूमि का अधिग्रहण किया गया था.
न्यायमूर्ति सुनील अंबावानी और न्यायमूर्ति काशीनाथ पांडेय की खंडपीठ ने
जिले के शाहबारी गांव के निवासियों की कई याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करते
हुए कहा कि भूमि अधिग्रहण की पूरी प्रक्रिया, शक्ति प्रदर्शन कर की गई और
जमीन को उनके मालिकों को लौटाने का आदेश दिया. पीठ ने भूमि अधिग्रहण के
लिये राज्य सरकार द्वारा दस जून 2009 और नौ नवंबर 2009 को जारी दो
अधिसूचनाओं को रद्द कर दिया. दस जून 2009 को जारी अधिसूचना के तहत राज्य
सरकार ने गांव में 156 . 93 एकड़ जमीन अधिग्रहित करने का प्रस्ताव रखा था,
जबकि नौ नवंबर 2009 को आधिकारिक राजपत्र में प्रकाशित कर भूमि अधिग्रहण की
घोषणा कर दी थी.
आदेश पारित करते हुए अदालत ने कहा कि साफ़ दिखाई दे रहा है कि भूमि
अधिग्रहण की पूरी प्रक्रिया ताकत के बल पर की गई. अदालत ने कहा, ग्रेटर
नोएडा इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट अथॉरिटी इससे पूरी तरह अवगत था और शाहबेरी
गांव एवं आसपास के गांवों की भूमि पर आसान शर्तों पर बिल्डर बहुमंजिली
इमारतें खड़ी करने की योजना बना रहे थे. अदालत ने कहा, एक तरफ़ लोक हित में
योजनाबद्ध औद्योगिक विकास के लिये भूमि अधिग्रहण का अनुरोध किया गया लेकिन
जीनोएडा ने राज्य सरकार को सूचित किये बगैर बोर्ड की बैठक कर भूमि को
आवासीय उद्देश्यों के लिये परिवर्तित कर दिया ताकि बिल्डर वहां आवासीय
परिसरों का निर्माण कर मुनाफ़ा कमा सकें. इसने कहा, भूमि को 850 रुपये
प्रति वर्गमीटर की दर से अधिग्रहित करने का प्रस्ताव था, जबकि एक महीने के
अंदर ही इसे बिल्डरों को दस हजार रुपये प्रति वर्गमीटर की दर से देना था और
वह भी आवंटन पर पांच फ़ीसदी कीमत का भुगतान कर.
सरकार द्वारा जारी अधिसूचना और फ़िर जीनोएडा की सारी कार्रवाईयों को खारिज
करते हुए अदालत ने आदेश दिया, प्रतिवादी भूमि का अधिकार इसके मालिकों को
वापस करें.