कभी दाता, आज मोहताज

हाल कुक्कुट प्रक्षेत्र बेला का, कभी उत्तर बिहार में मुर्गीपालन में स्वरोजगार का सबसे बड़ा मददगार, आज है बदहाल

मो. शमशाद, मुजफ्फरपुर : मुर्गी पालन को स्वरोजगार बनाने वालों के लिए
कभी सबसे बड़ा मददगार रहा बेला स्थित कुक्कुट प्रक्षेत्र आज खुद एक-एक चूजे
के लिए मोहताज है। हालात ये हैं कि प्रक्षेत्र अपना अस्तित्व बचाने की
जद्दोजहद कर रहा है। काफी अरसे से चूजा सप्लाई नहीं होने से अब लोगों ने
निराश होकर इधर का रूख भी बंद कर दिया है। ऐसे लोग निजी एजेंसियों की शरण
में जा चुके हैं।

वर्ष 2005 तक प्रक्षेत्र का डंका मुजफ्फरपुर, दरभंगा, मधुबनी,
समस्तीपुर, सीताममढ़ी, शिवहर, पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण, गोपालगंज तक
में बजता था। मुर्गी ग्राम योजना, ग्रामीण कुक्कुट विकास योजना, महादलित
मुर्गीपालन योजना आदि के तहत यहां से कम कीमत पर चैब्रो, कलिंगा, ब्राउना,
ग्रामप्रिया, ग्रामरानी, ग्रामराजा व कैरीप्रिया आदि प्रजाति के चूजे दिये
जाते थे। यहां से अंडे भी कम कीमत पर मिलते थे। प्रक्षेत्र द्वारा लोगों को
मुर्गीपालन का गुर भी बताया जाता था। मगर समय के साथ सब कुछ भ्रष्ट
अधिकारियों की करतूतों और जलजमाव की बलि चढ़ने लगा। सरकार ने भी इस ओर अपनी
आंखें बंद कर ली है। हालांकि अधिकारियों का दावा है कि इसकी पुरानी
अस्मिता वापस लाने की कवायद शुरू हो गयी है। जल्द ही ये एक बार फिर से
स्वरोजगार में लोगों का मददगार बनेगा।

दस एकड़ में फैला है प्रक्षेत्र

प्रक्षेत्र लगभग दस एकड़ में फैला है। यहां एक हैचरी भवन (अंडा से बच्चा
निकलने की जगह), तीन बूडर हाउस (चूजा रखने की जगह), तीन ग्रोअर हाउस (8 से
18 सप्ताह की मुर्गी रखने की जगह), चार लेयर हाउस (अंडा देने वाली मुर्गी
को रखने की जगह) व एक ब्रिडिंग पैन (नर-मादा को क्रास कराने की जगह) है।

खजाने में पड़ी हे जीर्णोद्धार की राशि

प्रक्षेत्र के जीर्णोद्धार के लिए सरकार ने 2009 में लगभग 26 लाख एवं
2010 में 2 करोड़ 61 लाख रुपये का आवंटन किया था। मगर भवन निर्माण विभाग की
लापरवाही के कारण अब तक कार्य आरंभ नहीं हो सका है।

बोले अधिकारी

‘पुराने भवनों का मरम्मत का कार्य शुरू हो गया है। नये भवन के लिए भी इस
सप्ताह टेंडर निकलने की उम्मीद है। प्रक्षेत्र के विकास में सबसे बड़ी
बाधा जलजमाव की समस्या का निराकरण किया जा रहा है। पिछले दिनों प्रक्षेत्र
में लगभग 480 चूजे आए हैं। जल्द ही प्रक्षेत्र अपनी पुरानी पहचान को
प्राप्त कर लेगा।’

डा. उज्जवल कुमार, सहायक निदेशक कुक्कुट प्रक्षेत्र, बेला

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