ग्वालियर.
‘जिंदगी के सारे दुख झेले लेकिन अपने बच्चों को कभी तकलीफ नहीं होने दी।
खुद भूखी सोई, लेकिन बच्चों को कभी भूखा नहीं सोने दिया। दिनभर मजदूरी करके
जो भी कमाई होती थी, उससे उनका पालन-पोषण किया।
अब, जब मैं कुछ कर सकने लायक नहीं हूं, तो बेटे व बहू ने घर से निकाल
दिया।’ यह पीड़ा है ९क् वर्षीय एक वृद्धा की जो तानसेन रोड स्थित न्यू
रेलवे कॉलोनी के एक छोटे से मंदिर के चबूतरे पर अपने अंतिम दिन काट रही है।
कभी गांधीनगर में उक्त वृद्धा शरमनिया कुशवाह का अपना मकान था, पति व दो
बेटों की बीमारी से मौत के बाद उसके दुर्दिन शुरू हो गए। बचे एकमात्र बेटे
को उसने अपना सहारा समझा था, लेकिन उसी ने मुंह मोड़ लिया।
पड़ताल के क्रम में दैनिक भास्कर को शरमनिया ने बताया, ‘कभी तीन बेटे, एक
बेटी व पति के साथ रहकर मैं बहुत खुश थी। मैं और मेरे पति ने दिनरात
मेहनत-मजदूरी करके जो थोड़ा-बहुत पैसा जोड़ा, उससे गांधी नगर में वर्ष 1950
में छोटा सा प्लाट खरीदा और एक-एक ईंट जोड़कर मकान खड़ा किया था।
इस बीच मेरे दो बेटे बीमारी से चल बसे। वर्ष 1975 में पति भी गुजर गए। जैसे-तैसे अपने बेटे मोहन तथा बेटी रश्मि की शादी की।
शादी के बाद मेरे पति की आखिरी निशानी मकान को बेटे मोहन ने बेच दिया, इसके
बाद हम लोग किराए के कमरों में रहने के लिए मजबूर हुए। इस बीच बेटे मोहन
का परिवार बढ़ा तो मैं बेटे-बहू को बोझ नजर आने लगी।’
वह बोली, ‘बहू शीला कहने लगी कि तीन लड़के और तीन लड़कियों का पेट हमें
पालना है। रहने का कोई ठौर नहीं है, ऐसे में हम तुम्हें कहां रखें और क्या
खिलाएं? बेटे मोहन ने भी बहू की हां में हां मिलाते हुए आखिरकार मुझे घर से
बाहर कर दिया।
इसके बाद मैं कभी खेड़ापति मंदिर तो कभी अचलेश्वर मंदिर में भिखारियों की
भीड़ में शामिल हुई और अब भटकते-भटकते यहां पहुंच गई हूं।’ शरमनिया दो
महीने से न्यू रेलवे कॉलोनी में झंडाधारी हनुमान की गली में एक चबूतरे पर
अपना गुजर-बसर कर रही है। मोहल्ले के लोग ही शरमनिया को सुबह और शाम खाना
खिलाते हैं।
उधर,वरिष्ठ नोगिर सेवा संस्थान के संयोजक भूपेंद्र जैन ने बताया कि वृद्धा
शरमनिया को संस्था की ओर से सोमवार नौ मई को नारायण वद्धाश्रम में दाखिल
कराया जाएगा। उसकी देखरेख की जिम्मेदारी संस्था की ओर से की जाएगी।
आश्रय भवन पहुंची शरमनिया
न्यू रेलवे कॉलोनी के निवासियों ने दूरभाष पर दोपहर एक बजे कलेक्टर आकाश
त्रिपाठी को शरमनिया कुशवाह के संबंध में बताया तो कलेक्टर ने रेडक्रॉस
सोसायटी के जेडी शर्मा को बुजुर्ग महिला की मदद करने के निर्देश दिए।
जेडी शर्मा ने ऑनलाइन सर्विस एसोसिएशन के आरबी सिंह को महिला को लाने के
लिए भेजा। एसोसिएशन के वाहन में महिला को दोपहर दो बजे आश्रय भवन लाया गया।
आरबी सिंह ने बताया कि सोमवार को महिला का मेडीकल चेकअप कराकर उसके रहने
की व्यवस्था किसी वृद्धाश्रम में की जाएगी।
हम भी हैं सड़क पर, कैसे रखें मां को
शरमनिया के बेटे मोहन से मां को घर से निकालने के संबंध में पूछने पर उसने
बताया कि मेरी मां ही नहीं बल्कि मेरा पूरा परिवार सड़क पर है। रेलवे
कॉलोनी के गेट पर लगी यह चाय की गुमटी ही मेरा घर, दुकान सबकुछ है।
ऐसे में मैं अपनी मां को कहां रखूं। मेरी क्षमता नहीं है कि मैं अपने परिवार के साथ अपनी मां को भी साथ रख सकूं।
‘जिंदगी के सारे दुख झेले लेकिन अपने बच्चों को कभी तकलीफ नहीं होने दी।
खुद भूखी सोई, लेकिन बच्चों को कभी भूखा नहीं सोने दिया। दिनभर मजदूरी करके
जो भी कमाई होती थी, उससे उनका पालन-पोषण किया।
अब, जब मैं कुछ कर सकने लायक नहीं हूं, तो बेटे व बहू ने घर से निकाल
दिया।’ यह पीड़ा है ९क् वर्षीय एक वृद्धा की जो तानसेन रोड स्थित न्यू
रेलवे कॉलोनी के एक छोटे से मंदिर के चबूतरे पर अपने अंतिम दिन काट रही है।
कभी गांधीनगर में उक्त वृद्धा शरमनिया कुशवाह का अपना मकान था, पति व दो
बेटों की बीमारी से मौत के बाद उसके दुर्दिन शुरू हो गए। बचे एकमात्र बेटे
को उसने अपना सहारा समझा था, लेकिन उसी ने मुंह मोड़ लिया।
पड़ताल के क्रम में दैनिक भास्कर को शरमनिया ने बताया, ‘कभी तीन बेटे, एक
बेटी व पति के साथ रहकर मैं बहुत खुश थी। मैं और मेरे पति ने दिनरात
मेहनत-मजदूरी करके जो थोड़ा-बहुत पैसा जोड़ा, उससे गांधी नगर में वर्ष 1950
में छोटा सा प्लाट खरीदा और एक-एक ईंट जोड़कर मकान खड़ा किया था।
इस बीच मेरे दो बेटे बीमारी से चल बसे। वर्ष 1975 में पति भी गुजर गए। जैसे-तैसे अपने बेटे मोहन तथा बेटी रश्मि की शादी की।
शादी के बाद मेरे पति की आखिरी निशानी मकान को बेटे मोहन ने बेच दिया, इसके
बाद हम लोग किराए के कमरों में रहने के लिए मजबूर हुए। इस बीच बेटे मोहन
का परिवार बढ़ा तो मैं बेटे-बहू को बोझ नजर आने लगी।’
वह बोली, ‘बहू शीला कहने लगी कि तीन लड़के और तीन लड़कियों का पेट हमें
पालना है। रहने का कोई ठौर नहीं है, ऐसे में हम तुम्हें कहां रखें और क्या
खिलाएं? बेटे मोहन ने भी बहू की हां में हां मिलाते हुए आखिरकार मुझे घर से
बाहर कर दिया।
इसके बाद मैं कभी खेड़ापति मंदिर तो कभी अचलेश्वर मंदिर में भिखारियों की
भीड़ में शामिल हुई और अब भटकते-भटकते यहां पहुंच गई हूं।’ शरमनिया दो
महीने से न्यू रेलवे कॉलोनी में झंडाधारी हनुमान की गली में एक चबूतरे पर
अपना गुजर-बसर कर रही है। मोहल्ले के लोग ही शरमनिया को सुबह और शाम खाना
खिलाते हैं।
उधर,वरिष्ठ नोगिर सेवा संस्थान के संयोजक भूपेंद्र जैन ने बताया कि वृद्धा
शरमनिया को संस्था की ओर से सोमवार नौ मई को नारायण वद्धाश्रम में दाखिल
कराया जाएगा। उसकी देखरेख की जिम्मेदारी संस्था की ओर से की जाएगी।
आश्रय भवन पहुंची शरमनिया
न्यू रेलवे कॉलोनी के निवासियों ने दूरभाष पर दोपहर एक बजे कलेक्टर आकाश
त्रिपाठी को शरमनिया कुशवाह के संबंध में बताया तो कलेक्टर ने रेडक्रॉस
सोसायटी के जेडी शर्मा को बुजुर्ग महिला की मदद करने के निर्देश दिए।
जेडी शर्मा ने ऑनलाइन सर्विस एसोसिएशन के आरबी सिंह को महिला को लाने के
लिए भेजा। एसोसिएशन के वाहन में महिला को दोपहर दो बजे आश्रय भवन लाया गया।
आरबी सिंह ने बताया कि सोमवार को महिला का मेडीकल चेकअप कराकर उसके रहने
की व्यवस्था किसी वृद्धाश्रम में की जाएगी।
हम भी हैं सड़क पर, कैसे रखें मां को
शरमनिया के बेटे मोहन से मां को घर से निकालने के संबंध में पूछने पर उसने
बताया कि मेरी मां ही नहीं बल्कि मेरा पूरा परिवार सड़क पर है। रेलवे
कॉलोनी के गेट पर लगी यह चाय की गुमटी ही मेरा घर, दुकान सबकुछ है।
ऐसे में मैं अपनी मां को कहां रखूं। मेरी क्षमता नहीं है कि मैं अपने परिवार के साथ अपनी मां को भी साथ रख सकूं।