भोपाल.
‘मप्र में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) भ्रष्टाचार के दलदल में फंसी
है। लगभग हर दुकान पर रिश्वतखोरी और कालाबाजारी का बोलबाला है। बिना रिश्वत
दिए यहां कोई काम नहीं होता। अपने फायदे के लिए नौकरशाह भी चाहते हैं
पीडीएस में भ्रष्टाचार चलता रहे।’
यह टिप्पणी किसी विपक्षी दल की नहीं है बल्कि पीडीएस की छानबीन के लिए
सुप्रीमकोर्ट के निर्देश पर बनी एक सदस्यीय जस्टिस डीपी वाधवा कमेटी की है।
कमेटी ने सितंबर 2010 में भोपाल, होशंगाबाद, छिंदवाड़ा, बैतूल सहित अन्य
जिलों का दौरा कर पीडीएस की हकीकत जानी थी। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट मार्च
2011 में सुप्रीमकोर्ट को सौंपी है। रिपोर्ट के अनुसार ज्यादातर राशन
दुकानों से बड़ी राशि रिश्वत के रूप में उगाही जाती है। इन दुकानों को
खाद्यान्न एवं केरोसिन आवंटन में भी रिश्वत चलती है।
राजनीतिक दलों के सार्वजनिक कार्यक्रमों के लिए हर माह राशि देनी पड़ती है,
अगर न दें तो खाद्य निरीक्षक परेशान करते हैं। यही नहीं नौकरशाही भी चाहती
है कि पीडीएस में भ्रष्ट व्यवस्था कायम रहे।
ग्रामीण समितियां घाटे में : ग्रामीण क्षेत्रों में राशन प्राथमिक
कृषि सहकारी समिति के जरिए वितरित होता है। यह समितियां घाटे में चल रही
हैं। करीब 800 समितियों को बंद करने का प्रस्ताव विचाराधीन है। इन समितियों
का संचालन सहकारिता विभाग के जिम्मे है, लेकिन विभाग न तो समीक्षा करता है
न निगरानी। इन समितियों का घाटा कम करने पर विचार तक नहीं किया जा रहा है।
समितियों के चयन का मापदंड भी राजनीतिक दल करते हैं इसलिए इनकी भूमिका पर
सवाल उठते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में एक सहकारी समिति के जिम्मे आठ-आठ
दुकाने हैं। खाद्य अधिकारियों को हर दुकान से कमीशन मिलता है। इसलिए इन
दुकानों की समीक्षा और निगरानी पर कोई ध्यान नहीं देता।
बाधवा कमेटी की अनुशसाएं
– हर ग्राम पंचायत में राशन दुकान खोली जाए
– सार्वजनिक वितरण प्रणाली का कम्प्यूटरीकरण हो
– परिवहन व्यवस्था में बदलाव किया जाए
– तुलाई व्यवस्था इलेक्ट्रॉनिक की जाए
– राशन दुकानों के लिए लोक अदालत लगाई जाएं
– खाद्य नियंत्रण आदेश का वास्तविक क्रियान्वयन हो
– निगरानी व्यवस्था ताकतवर एवं जबावदेही बने
ट्रक के ट्रक हो जाते हैं गायब
कमेटी के अनुसार खाद्य विभाग से संचालकों को एक क्विंटल गेहूं पर सिर्फ 15
रु और 100 लीटर केरोसिन पर 20 रु कमीशन मिलता है। इससे भ्रष्टाचार बढ़ रहा
है।
अनाज और तेल के बड़े हिस्से की कालाबजारीहोती है। शिकायत पर दुकान संचालकों पर मामूली सा जुर्माना, एफआईआर तक नहीं होती।
भारतीय खाद्य निगम एवं नागरिक आपूर्ति निगम के डिपो से अनाज राशन दुकानें
पहुंचाने की दूरी ज्यादा होती है। ऐसे में बीच में ही खाद्यान्न से भरे
ट्रक ही गायब कर दिए जाते हैं।
इसलिए बनाई कमेटी
जानना कि दुकानदार की नियुक्तिकैसे होती है।
दुकानदारों को कमीशन देने की व्यवस्था क्या है।
विजिलेंस टीम कैसे काम करती हैं।
परिवहन की दरें क्या है, टेंडर व्यवस्था कैसी है
भोपाल में 700 राशन की दुकानें,अधिकांश नेताओं की
राजधानी में अधिकांश दुकानें भाजपा और कांग्रेस के प्रभावशाली नेताओं, उनके
परिजनों या समर्थकों के नाम हैं। भोपाल नगर निगम परिषद के अध्यक्ष कैलाश
मिश्रा की करबला रोड पर अलग-अलग नाम से तीन दुकानें हैं। इनमें से एक गंगा
महिला प्राथमिक उपभोक्ता सहकारी भंडार खुद के नाम से है।
भाजपा पार्षद अशोक पांडे की दशहरा टीटी नगर में जय मां संतोषी महिला और
चंद्रशेखर आजाद उपभोक्ता भंडार के नाम से दो दुकान, दोनों का संचालन एक ही
दुकान से हो रहा है।
नगर निगम के एमआईसी सदस्य श्याम नारायण सिंह की विट्ठल मार्केट में,भाजपा
विधायक विश्वास सारंग के प्रतिनिधि सतीश नायक की अशोका गार्डन में,स्थानीय
शासन मंत्री बाबूलाल गौर के समर्थक राजेश खंडेलवाल की बरखेड़ा बीएचईएल
में,कांग्रेस विधायक आरिफ अकील और उनके भाई आमीर अकील की लक्ष्मी टॉकीज
इलाके में मिट्टी तेल का लाइसेंस है।
पूर्व पार्षद मोहम्मद सरवर की रोशनपुरा में,कांग्रेस नेता सुल्तान मियां की
इतवारा में शिक्षित नवयुवक प्राथमिकता उपभोक्ता भंडार के नाम से दुकान है।
ऐसे कई अन्य नेताओं की दुकानें राजधानी में अलग-अलग नाम से चल रही हैं।
20,788
दुकानें हैं प्रदेश में
16,773
ग्रामीण क्षेत्रों में
4015
शहरी क्षेत्रों में
145
लाख राशन कार्ड
52
लाख बीपीएल
76
लाख एपीएल
17
लाख एएवाई
‘मप्र में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) भ्रष्टाचार के दलदल में फंसी
है। लगभग हर दुकान पर रिश्वतखोरी और कालाबाजारी का बोलबाला है। बिना रिश्वत
दिए यहां कोई काम नहीं होता। अपने फायदे के लिए नौकरशाह भी चाहते हैं
पीडीएस में भ्रष्टाचार चलता रहे।’
यह टिप्पणी किसी विपक्षी दल की नहीं है बल्कि पीडीएस की छानबीन के लिए
सुप्रीमकोर्ट के निर्देश पर बनी एक सदस्यीय जस्टिस डीपी वाधवा कमेटी की है।
कमेटी ने सितंबर 2010 में भोपाल, होशंगाबाद, छिंदवाड़ा, बैतूल सहित अन्य
जिलों का दौरा कर पीडीएस की हकीकत जानी थी। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट मार्च
2011 में सुप्रीमकोर्ट को सौंपी है। रिपोर्ट के अनुसार ज्यादातर राशन
दुकानों से बड़ी राशि रिश्वत के रूप में उगाही जाती है। इन दुकानों को
खाद्यान्न एवं केरोसिन आवंटन में भी रिश्वत चलती है।
राजनीतिक दलों के सार्वजनिक कार्यक्रमों के लिए हर माह राशि देनी पड़ती है,
अगर न दें तो खाद्य निरीक्षक परेशान करते हैं। यही नहीं नौकरशाही भी चाहती
है कि पीडीएस में भ्रष्ट व्यवस्था कायम रहे।
ग्रामीण समितियां घाटे में : ग्रामीण क्षेत्रों में राशन प्राथमिक
कृषि सहकारी समिति के जरिए वितरित होता है। यह समितियां घाटे में चल रही
हैं। करीब 800 समितियों को बंद करने का प्रस्ताव विचाराधीन है। इन समितियों
का संचालन सहकारिता विभाग के जिम्मे है, लेकिन विभाग न तो समीक्षा करता है
न निगरानी। इन समितियों का घाटा कम करने पर विचार तक नहीं किया जा रहा है।
समितियों के चयन का मापदंड भी राजनीतिक दल करते हैं इसलिए इनकी भूमिका पर
सवाल उठते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में एक सहकारी समिति के जिम्मे आठ-आठ
दुकाने हैं। खाद्य अधिकारियों को हर दुकान से कमीशन मिलता है। इसलिए इन
दुकानों की समीक्षा और निगरानी पर कोई ध्यान नहीं देता।
बाधवा कमेटी की अनुशसाएं
– हर ग्राम पंचायत में राशन दुकान खोली जाए
– सार्वजनिक वितरण प्रणाली का कम्प्यूटरीकरण हो
– परिवहन व्यवस्था में बदलाव किया जाए
– तुलाई व्यवस्था इलेक्ट्रॉनिक की जाए
– राशन दुकानों के लिए लोक अदालत लगाई जाएं
– खाद्य नियंत्रण आदेश का वास्तविक क्रियान्वयन हो
– निगरानी व्यवस्था ताकतवर एवं जबावदेही बने
ट्रक के ट्रक हो जाते हैं गायब
कमेटी के अनुसार खाद्य विभाग से संचालकों को एक क्विंटल गेहूं पर सिर्फ 15
रु और 100 लीटर केरोसिन पर 20 रु कमीशन मिलता है। इससे भ्रष्टाचार बढ़ रहा
है।
अनाज और तेल के बड़े हिस्से की कालाबजारीहोती है। शिकायत पर दुकान संचालकों पर मामूली सा जुर्माना, एफआईआर तक नहीं होती।
भारतीय खाद्य निगम एवं नागरिक आपूर्ति निगम के डिपो से अनाज राशन दुकानें
पहुंचाने की दूरी ज्यादा होती है। ऐसे में बीच में ही खाद्यान्न से भरे
ट्रक ही गायब कर दिए जाते हैं।
इसलिए बनाई कमेटी
जानना कि दुकानदार की नियुक्तिकैसे होती है।
दुकानदारों को कमीशन देने की व्यवस्था क्या है।
विजिलेंस टीम कैसे काम करती हैं।
परिवहन की दरें क्या है, टेंडर व्यवस्था कैसी है
भोपाल में 700 राशन की दुकानें,अधिकांश नेताओं की
राजधानी में अधिकांश दुकानें भाजपा और कांग्रेस के प्रभावशाली नेताओं, उनके
परिजनों या समर्थकों के नाम हैं। भोपाल नगर निगम परिषद के अध्यक्ष कैलाश
मिश्रा की करबला रोड पर अलग-अलग नाम से तीन दुकानें हैं। इनमें से एक गंगा
महिला प्राथमिक उपभोक्ता सहकारी भंडार खुद के नाम से है।
भाजपा पार्षद अशोक पांडे की दशहरा टीटी नगर में जय मां संतोषी महिला और
चंद्रशेखर आजाद उपभोक्ता भंडार के नाम से दो दुकान, दोनों का संचालन एक ही
दुकान से हो रहा है।
नगर निगम के एमआईसी सदस्य श्याम नारायण सिंह की विट्ठल मार्केट में,भाजपा
विधायक विश्वास सारंग के प्रतिनिधि सतीश नायक की अशोका गार्डन में,स्थानीय
शासन मंत्री बाबूलाल गौर के समर्थक राजेश खंडेलवाल की बरखेड़ा बीएचईएल
में,कांग्रेस विधायक आरिफ अकील और उनके भाई आमीर अकील की लक्ष्मी टॉकीज
इलाके में मिट्टी तेल का लाइसेंस है।
पूर्व पार्षद मोहम्मद सरवर की रोशनपुरा में,कांग्रेस नेता सुल्तान मियां की
इतवारा में शिक्षित नवयुवक प्राथमिकता उपभोक्ता भंडार के नाम से दुकान है।
ऐसे कई अन्य नेताओं की दुकानें राजधानी में अलग-अलग नाम से चल रही हैं।
20,788
दुकानें हैं प्रदेश में
16,773
ग्रामीण क्षेत्रों में
4015
शहरी क्षेत्रों में
145
लाख राशन कार्ड
52
लाख बीपीएल
76
लाख एपीएल
17
लाख एएवाई