भोपाल.
प्रदेश में किसानों की हालत सुधारने के लिए सरकार ने मप्र कृषक आयोग को
फिर से जीवित करने के साथ ही किसान विकास परिषद बनाने का फैसला लिया है।
हाल ही में मुख्यमंत्री चौहान ने कृषि विभाग की समीक्षा के दौरान आयोग को
फिर से गठित करने के निर्देश दिए हैं। उन्होंने कृषि विकास परिषद के गठन पर
भी सहमति जताई। यह परिषद कृषि की नई तकनीक,शोध एवं अनुसंधान पर जोर देगी।
इसलिए बंद हुआ था आयोग : खेती को लाभ का धंधा बनाने और किसानों के
जीवन स्तर को ऊंचा उठाने सहित कृषि विकास की नीतियां, कार्यक्रमों एवं
उपायों की अनुशंसा करने के लिए 19 सितंबर 06 को आयोग का गठन किया गया
था,लेकिन भारतीय किसान संघ की सिफारिश पर 31 दिसंबर 2010 को इसे बंद कर
दिया गया।
संघ का कहना था कि इसे संवैधानिक दर्जा दिया जाए या इसे बंद कर दिया जाए।
सरकार ने दूसरे विकल्प को मान लिया। आयोग ने अपने चार वर्ष 3 माह के
कार्यकाल में सात प्रतिवेदन राज्य सरकार को सौंपे। इसमें 811 अनुशंसा की
गई, लेकिन 162 अभी भी लंबित हैं।
सुझाव देने तक सीमित: आयोग के पास कोई अधिकार एवं शक्तियां नहीं
थीं। सुनवाई का अधिकार नहीं था। इसकी भूमिका कार्यशाला में सुझाव देने और
किसानों से संवाद करने तक सीमित थी।
चार साल में आयोग का खर्च: आयोग ने 13 सितंबर 2006 से 31 दिसंबर
2010 तक एक करोड़ 29 लाख 62 हजार 710 रुपए खर्च किए। इसमें यात्रा,
टेलीफोन,वेतन भत्ते,कार्यालय व्यय, वाहनों का क्रय सेमीनार, कार्यशाला,
सहित आदि पर व्यय शामिल हैं।
कृषक आयोग के नए सिरे से गठन पर सहमति हो गई है।""
एमएम उपाध्याय,प्रमुख सचिव किसान कल्याण तथा कृषि विकास विभाग
आयोग को अधिकार संपन्न बनाया जाए। इसे संवैधानिक दर्जा दिया जाए। तभी इसका गठन सार्थक होगा।""
शिवकुमार शर्मा,अध्यक्ष भारतीय किसान संघ
प्रदेश में किसानों की हालत सुधारने के लिए सरकार ने मप्र कृषक आयोग को
फिर से जीवित करने के साथ ही किसान विकास परिषद बनाने का फैसला लिया है।
हाल ही में मुख्यमंत्री चौहान ने कृषि विभाग की समीक्षा के दौरान आयोग को
फिर से गठित करने के निर्देश दिए हैं। उन्होंने कृषि विकास परिषद के गठन पर
भी सहमति जताई। यह परिषद कृषि की नई तकनीक,शोध एवं अनुसंधान पर जोर देगी।
इसलिए बंद हुआ था आयोग : खेती को लाभ का धंधा बनाने और किसानों के
जीवन स्तर को ऊंचा उठाने सहित कृषि विकास की नीतियां, कार्यक्रमों एवं
उपायों की अनुशंसा करने के लिए 19 सितंबर 06 को आयोग का गठन किया गया
था,लेकिन भारतीय किसान संघ की सिफारिश पर 31 दिसंबर 2010 को इसे बंद कर
दिया गया।
संघ का कहना था कि इसे संवैधानिक दर्जा दिया जाए या इसे बंद कर दिया जाए।
सरकार ने दूसरे विकल्प को मान लिया। आयोग ने अपने चार वर्ष 3 माह के
कार्यकाल में सात प्रतिवेदन राज्य सरकार को सौंपे। इसमें 811 अनुशंसा की
गई, लेकिन 162 अभी भी लंबित हैं।
सुझाव देने तक सीमित: आयोग के पास कोई अधिकार एवं शक्तियां नहीं
थीं। सुनवाई का अधिकार नहीं था। इसकी भूमिका कार्यशाला में सुझाव देने और
किसानों से संवाद करने तक सीमित थी।
चार साल में आयोग का खर्च: आयोग ने 13 सितंबर 2006 से 31 दिसंबर
2010 तक एक करोड़ 29 लाख 62 हजार 710 रुपए खर्च किए। इसमें यात्रा,
टेलीफोन,वेतन भत्ते,कार्यालय व्यय, वाहनों का क्रय सेमीनार, कार्यशाला,
सहित आदि पर व्यय शामिल हैं।
कृषक आयोग के नए सिरे से गठन पर सहमति हो गई है।""
एमएम उपाध्याय,प्रमुख सचिव किसान कल्याण तथा कृषि विकास विभाग
आयोग को अधिकार संपन्न बनाया जाए। इसे संवैधानिक दर्जा दिया जाए। तभी इसका गठन सार्थक होगा।""
शिवकुमार शर्मा,अध्यक्ष भारतीय किसान संघ