भोपाल.
बीटी बैंगन को घातक बताकर जोरदार विरोध करने वाली राज्य सरकार ने अब
‘जहरीले’ मक्के के प्रदेश में होने वाले फील्ड ट्रायल पर चुप्पी साध ली
है,जबकि केंद्र ने ट्रायल का फैसला राज्यों पर छोड़ रखा है।
वैज्ञानिकों ने आगाह किया है कि जेनेटिकली मॉडिफाइड (जीएम) मक्के के फील्ड
ट्रायल से मक्के की अन्य फसलें हमेशा के लिए प्रदूषित हो सकती हैं। इसी
आधार पर बिहार सरकार ने अपने यहां फील्ड ट्रायल से इनकार कर दिया है।
जीएम फसलों और उनके ट्रायल को मंजूरी देने वाली जेनेटिक इंजीनियरिंग
एप्रूवल कमेटी (जीईएसी) ने दिसंबर में प्रदेश में जीएम मक्का के फील्ड
ट्रायल की मंजूरी दी थी। ये ट्रायल जबलपुर स्थित डायरेक्टोरेट ऑफ वीड साइंस
रिसर्च (डीडब्ल्यूएसआर)में बहुराष्ट्रीय कंपनी मोनसेंटो द्वारा खरीफ सीजन
में किए जाने हैं।
पिछले माह केंद्रीय पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने जीईएसी को निर्देश दिए
थे कि राज्य सरकारों की आपत्ति पर किसी भी जीएम फसल के फील्ड ट्रायल रद्द
कर दिए जाएं।
मप्र क्यों चुप? : कृषि मंत्री रामकृष्ण कुसमरिया ने पिछले साल 28
जनवरी को केंद्रीय पर्यावरण मंत्री को पत्र लिखकर बीटी बैंगन का विरोध किया
था। तब राज्य सरकार इसके ट्रायल को इसलिए नहीं रोक पाई, क्योंकि यह उसके
अधिकार क्षेत्र के बाहर का मामला था।
अब पर्यावरण मंत्रालय ने इसका अधिकार राज्यों को दे दिया है। इसके बावजूद
मप्र ने कोई पहल नहीं की। इस बीच केंद्र ने विरोध जताने के लिए जो समय दिया
था, वह भी गुजर चुका है। हालांकि 11 मई को नई दिल्ली में जीईएसी की बैठक
होने वाली है। इससे पहले राज्य द्वारा आग्रह करने पर ट्रायल पर रोक लग सकती
है।
मप्र में मक्का
प्रदेश के आर्थिक सर्वेक्षण 2010-11 के अनुसार मप्र में वर्ष 2009-10 में
आठ लाख 12 हजार हैक्टेयर क्षेत्रफल में मक्के की फसल बोई गई। इस साल मक्के
का उत्पादन एक लाख एक हजार मिट्रिक टन रहा।
क्या हैं जीएम फसलें
जीएम यानी जेनेटिकली मॉडिफाइड फसल। इसमें जेनेटिकल इंजीनियरिंग तकनीक का
इस्तेमाल कर जीवित जीवाणु को किसी फसल के डीएनए में ट्रांसफर किया जाता है।
इससे पौधे का जहरीलापन बढ़ जाता है, वे कीट और खरपतवार प्रतिरोधी हो जाते
हैं। हालांकि विरोधी इससे सहमत नहीं हैं।
क्या है जीईएसी
जेनेटिक इंजीनियरिंग एप्रूवल कमेटी। इस गठन केंद्रीय वन एवं पर्यावरण
मंत्रालय के तहत किया गया है। जीएम फसलों और उनके ट्रायल को लेकर फैसला
करने का अधिकार इसके पास है। कृषि विशेषज्ञ एमएस स्वामीनाथन, जी पद्मनाभन,
एम विजयनऔर पुष्पमित्रा भार्गव कमेटी में सदस्य हैं।
बेहद घातक फील्ड ट्रॉयल : पुष्पमित्रा
‘किसी भी जीएम फसल के फील्ड ट्रायल बहुत ही घातक होते हैं। चूंकि जीएम
फसलों का परीक्षण खेतों में किया जाता है। इससे पड़ोस के खेतों में गैर
बीटी फसलें प्रदूषित हो सकती हैं। कालांतर में हमारे पारंपरिक बीज भी पूरी
तरह से बर्बाद हो सकते हैं। इसका नतीजा यह होगा कि बीजों के लिए किसान कुछ
चुनिंदा कंपनियों पर निर्भर रह जाएंगे।
विकासशील देशों में बीजों पर नियंत्रण रखने की बहुराष्ट्रीय कंपनियों की यह
बड़ी साजिश है। मप्र सरकार को भी बिहार की तर्ज पर जीएम मक्के के ट्रायल
का विरोध करना चाहिए।’
(डॉ पुष्पमित्रा भार्गव देश के प्रमुख मॉलीक्यूलर बायोलॉजिस्ट हैं। वे
हैदराबाद स्थित सेंटर फॉर सेलुलर एंड मॉलीक्यूलर बायोलॉजी के डायरेक्टर रह
चुके हैं। )
सीएम से बात करूंगा : कृषि मंत्री
हमें तो अब तक यही मालूम था कि फील्ड ट्रायल में राज्य सरकार कोई दखल नहीं
दे सकती, लेकिन अब यदि केंद्र ने राज्यों को ऐसा अधिकार दे रखा है तो मैं
मुख्यमंत्री से बातचीत करूंगा।""
रामकृष्ण कुसमरिया, कृषि मंत्री
पर्यावरण पर भी पड़ेगा असर : देसाई
मक्का किसानों, मजदूरों तथा आदिवासियों का भोजन है। यह स्वास्थ्य से जुड़ा
मसला तो है ही, इसका असर पर्यावरण, जैव विविधता और बीजों की स्वायत्तता पर
भी पड़ेगा।""
नीलेश देसाई, बीज स्वराज अभियान (जीएम फसलों के विरोध में अग्रणी संगठन)
बीटी बैंगन को घातक बताकर जोरदार विरोध करने वाली राज्य सरकार ने अब
‘जहरीले’ मक्के के प्रदेश में होने वाले फील्ड ट्रायल पर चुप्पी साध ली
है,जबकि केंद्र ने ट्रायल का फैसला राज्यों पर छोड़ रखा है।
वैज्ञानिकों ने आगाह किया है कि जेनेटिकली मॉडिफाइड (जीएम) मक्के के फील्ड
ट्रायल से मक्के की अन्य फसलें हमेशा के लिए प्रदूषित हो सकती हैं। इसी
आधार पर बिहार सरकार ने अपने यहां फील्ड ट्रायल से इनकार कर दिया है।
जीएम फसलों और उनके ट्रायल को मंजूरी देने वाली जेनेटिक इंजीनियरिंग
एप्रूवल कमेटी (जीईएसी) ने दिसंबर में प्रदेश में जीएम मक्का के फील्ड
ट्रायल की मंजूरी दी थी। ये ट्रायल जबलपुर स्थित डायरेक्टोरेट ऑफ वीड साइंस
रिसर्च (डीडब्ल्यूएसआर)में बहुराष्ट्रीय कंपनी मोनसेंटो द्वारा खरीफ सीजन
में किए जाने हैं।
पिछले माह केंद्रीय पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने जीईएसी को निर्देश दिए
थे कि राज्य सरकारों की आपत्ति पर किसी भी जीएम फसल के फील्ड ट्रायल रद्द
कर दिए जाएं।
मप्र क्यों चुप? : कृषि मंत्री रामकृष्ण कुसमरिया ने पिछले साल 28
जनवरी को केंद्रीय पर्यावरण मंत्री को पत्र लिखकर बीटी बैंगन का विरोध किया
था। तब राज्य सरकार इसके ट्रायल को इसलिए नहीं रोक पाई, क्योंकि यह उसके
अधिकार क्षेत्र के बाहर का मामला था।
अब पर्यावरण मंत्रालय ने इसका अधिकार राज्यों को दे दिया है। इसके बावजूद
मप्र ने कोई पहल नहीं की। इस बीच केंद्र ने विरोध जताने के लिए जो समय दिया
था, वह भी गुजर चुका है। हालांकि 11 मई को नई दिल्ली में जीईएसी की बैठक
होने वाली है। इससे पहले राज्य द्वारा आग्रह करने पर ट्रायल पर रोक लग सकती
है।
मप्र में मक्का
प्रदेश के आर्थिक सर्वेक्षण 2010-11 के अनुसार मप्र में वर्ष 2009-10 में
आठ लाख 12 हजार हैक्टेयर क्षेत्रफल में मक्के की फसल बोई गई। इस साल मक्के
का उत्पादन एक लाख एक हजार मिट्रिक टन रहा।
क्या हैं जीएम फसलें
जीएम यानी जेनेटिकली मॉडिफाइड फसल। इसमें जेनेटिकल इंजीनियरिंग तकनीक का
इस्तेमाल कर जीवित जीवाणु को किसी फसल के डीएनए में ट्रांसफर किया जाता है।
इससे पौधे का जहरीलापन बढ़ जाता है, वे कीट और खरपतवार प्रतिरोधी हो जाते
हैं। हालांकि विरोधी इससे सहमत नहीं हैं।
क्या है जीईएसी
जेनेटिक इंजीनियरिंग एप्रूवल कमेटी। इस गठन केंद्रीय वन एवं पर्यावरण
मंत्रालय के तहत किया गया है। जीएम फसलों और उनके ट्रायल को लेकर फैसला
करने का अधिकार इसके पास है। कृषि विशेषज्ञ एमएस स्वामीनाथन, जी पद्मनाभन,
एम विजयनऔर पुष्पमित्रा भार्गव कमेटी में सदस्य हैं।
बेहद घातक फील्ड ट्रॉयल : पुष्पमित्रा
‘किसी भी जीएम फसल के फील्ड ट्रायल बहुत ही घातक होते हैं। चूंकि जीएम
फसलों का परीक्षण खेतों में किया जाता है। इससे पड़ोस के खेतों में गैर
बीटी फसलें प्रदूषित हो सकती हैं। कालांतर में हमारे पारंपरिक बीज भी पूरी
तरह से बर्बाद हो सकते हैं। इसका नतीजा यह होगा कि बीजों के लिए किसान कुछ
चुनिंदा कंपनियों पर निर्भर रह जाएंगे।
विकासशील देशों में बीजों पर नियंत्रण रखने की बहुराष्ट्रीय कंपनियों की यह
बड़ी साजिश है। मप्र सरकार को भी बिहार की तर्ज पर जीएम मक्के के ट्रायल
का विरोध करना चाहिए।’
(डॉ पुष्पमित्रा भार्गव देश के प्रमुख मॉलीक्यूलर बायोलॉजिस्ट हैं। वे
हैदराबाद स्थित सेंटर फॉर सेलुलर एंड मॉलीक्यूलर बायोलॉजी के डायरेक्टर रह
चुके हैं। )
सीएम से बात करूंगा : कृषि मंत्री
हमें तो अब तक यही मालूम था कि फील्ड ट्रायल में राज्य सरकार कोई दखल नहीं
दे सकती, लेकिन अब यदि केंद्र ने राज्यों को ऐसा अधिकार दे रखा है तो मैं
मुख्यमंत्री से बातचीत करूंगा।""
रामकृष्ण कुसमरिया, कृषि मंत्री
पर्यावरण पर भी पड़ेगा असर : देसाई
मक्का किसानों, मजदूरों तथा आदिवासियों का भोजन है। यह स्वास्थ्य से जुड़ा
मसला तो है ही, इसका असर पर्यावरण, जैव विविधता और बीजों की स्वायत्तता पर
भी पड़ेगा।""
नीलेश देसाई, बीज स्वराज अभियान (जीएम फसलों के विरोध में अग्रणी संगठन)