भ्रष्टाचार
के खिलाफ़ इस समय भारत में हल्ला बोल कार्यक्रम चल रहा है. भ्रष्टाचार के
इस रोग से मुक्ति के लिए दुनिया के ज्यादातर देशों की जनता छटपटा रही है.
तमाम देशों में भ्रष्टाचार रोकने के लिए संस्थाएं भी हैं. लेकिन क्या
करप्शन फ्री समाज का बनना संभव है?
दुनिया में भ्रष्टाचार उजागर करने में ’ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल‘ सबसे आगे रहा है. जिस देश में इस संस्था का मुख्यालय है, वह दुनिया के 20वें
भ्रष्टतम देशों में शुमार है. बर्लिन स्थित ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के
पास भी इसका जवाब नहीं है कि जर्मनी में भ्रष्टाचार पर नकेल कसें तो कैसे.
जर्मनी में खोखे-पटरी लगाने से लेकर सड़क बनाने और वी़जा देने तक में घपलों
की घुसपैठ है.
विदेशों में घूस देकर काम कराने में भी जर्मनी का जोड़ नहीं. 2008 में अमेरिका में ऐसे 120 मामले पकड़े गये थे. घूस देने के मामले में दुनिया भर में अमेरिका के बाद दूसरे नंबर पर रही जर्मन कंपनियों के खिलाफ़ 110 केस द़र्ज किये गये थे.जर्मनी की संघीय अपराध एजेंसी ने तीन साल पहले करप्शन के 8 ह़जार 569 केस द़र्ज किये थे. इस साल ग्लोबल हेल्थ फ़ंड में जर्मनों ने 20 अरब यूरो के जो फ्राड किये, उसकी जांच का निष्कर्ष आना बाकी है.
अमेरिका ग्लोबल हेल्थ फ़ंड का सबसे बड़ा सहयोगी देश है, जर्मनी दूसरे स्थान पर है. ग्लोबल हेल्थ फ़ंड के जरिये जिबोटी, मारिशानिया, माली जैसे देशों में एड्स, टीबी
और मलेरिया से कोई साढ़े चार हजार लोगों की जानें रोज बचायी जाती थी.
जर्मनों द्वारा भ्रष्टाचार के कारण अब सबकी जान सांसत में है. आज हालत यह
है कि ’पेपफ़ार‘, ’डीएफ़आइडी‘, ’यूएसएड‘, ’यूएनडीपी‘, गेट्स फ़ाउंडेशन, ’नोराड‘, विश्व बैंक जैसी नामी-गिरामी सहयोगी संस्थाओं को सफ़ाई देनी पड़ रही है. ऐसे लाखों एनजीओ हैं, जिन्होंने कई-कई वर्षो से ऑडिट तक नहीं कराये. भ्रष्टाचार के हमाम में कौन कपड़े में है, यह ढूंढ़ना अब मुश्किल है.
भारत में भ्रष्टाचार के खिलाफ़ इस समय जो हल्ला बोल कार्यक्रम चल रहा है, उसका
सूत्रधार जर्मनी ही है. यह संयोग की बात है कि लिश्टेंटाइन के एलजीटी बैंक
से निकल चुके कंप्यूटर कर्मी से टैक्स मारने वालों की जिस सीडी को जर्मनों
ने खरीदी, उसमें भारत की उन बड़ी मछलियों का भी पता लगा, जो भ्रष्टाचार के सागर में गोते लगा रही थीं. भ्रष्टाचार भारत के लिए कोई अचानक पैदा हुई बीमारी नहीं है.
ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में चाणक्य तक ने माना था कि भ्रष्टाचार राज्य व्यवस्था का अभिन्न अंग है. ’अर्थशास्त्र‘ में चाणक्य (कौटिल्य) ने राजकोष से 40 प्रकार
के घोटालों की चर्चा की थी. कौटिल्य ने कहाभी था कि राजस्व के टुकड़े पर
सरकारी कर्मचारियों को मुंह मारने से रोकना असंभव सी बात है.समय चक्र बदलने
के साथ-साथ भ्रष्टाचार में नये-नये अध्याय जुड़े. अब यह मानव सभ्यता का
अभिन्न अंग है. राजनीतिक भ्रष्टाचार को ’क्िलप्टोक्रेसी’नाम दिया गया है, जिसका शब्दार्थ है, ’चोरों का शासन‘. ऐसा अनुमान लगाया गया है कि पूरी दुनिया में एक महासंख डॉलर की घूसखोरी सालभर में होती है.
अफ्रीका से ऐशया तक दुनिया का कोई भी गोशा गबन, घोटाले से महफ़ू़ज नहीं है. नाइजीरिया के नेताओं ने 1960 से 99 तक 400 अरब डॉलर की लूट की. मैसाचुसेट्स विश्वविद्यालय के शोधार्थियों ने 30 सब-सहारा देशों में 1970 से 96 के बीच सरकारी धन में सेंध मारने पर जानकारी जुटाई, जिससे पता चला कि इन देशों के नेता और नौकरशाह इस अवधि में 187 अरब डॉलर लूट ले गये. अरब देशों में भी ऐसा ही हुआ.
प्रसिद्ध
अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन मानते हैं कि बाढ़-सुखाड़ जैसी प्राकृतिक आपदा पर
अधिकारियों की गिद्ध दृष्टि होती है. अमर्त्य सेन ने कभी बिहार को इस कलंक
का मॉडल मानते हुए कहा था कि इस प्रदेश में अन्न की सब्सिडी का 80 प्रतिशत अधिकारी लूट ले जाते हैं. विकसित देशों को छोड़ दें तो पूरी दुनिया में खाद्य सुरक्षा के लिए फ़ंड में इ़जाफ़ा होता रहा है, पर इसके साथ-साथ गरीबों के हक पर चोंच मारने वाले गिद्धों की संख्या भी तेजी से बढ़ी है.
करप्शन
और काले धन के खिलाफ़ भारत में आये उबाल से पहले दुनियाभर में हो रहे
कान्फ्रेंस और संगोष्ठियों पर दृष्टि डालें तो पता चलता है कि कोई ऐसा
महीना नहीं जहां दुनिया के किसी कोने में कदाचार को लेकर चिंता नहीं व्यक्त
की जा रही हो. उसी संख्या में भ्रष्टों पर निगाह रखने वाली संस्थाएं भी
दुनिया भर में बनती गयी.
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आइएएसीए हर साल कान्फ्रेंस कराती है और भ्रष्टाचार के खिलाफ़ संकल्प किये जाते हैं. मलयेशिया में पिछले साल ’ऑनेस्टी मंथ’ मनाया गया, लेकिन यह कागजी बनकर रह गया. थाई अधिकारी ’टैक्स फ़ार्मिग‘ के लिए बदनाम हैं. थाई समाज को भ्रष्टाचार मुक्त करने में राजा भूमिबोल अदुल्यादेज तक असहाय दिखते हैं.
पिछले साल दक्षिणी वियतनाम में जनरल न्यूग्येन वान थियू ने घूसखोरों को फ़ांसी पर लटका देने के आदेश पर हस्ताक्षर किये, फ़िर भी इस देश को घपलों से मुक्ित नहीं मिली है. ’ब्लैक मिस्ट‘ की आंधी से जापान की सरकार हिल गयी थी. वहां की संसद ’डाइट‘ में पिछले दिसंबर में भ्रष्टाचार से लड़ने और जनता का विश्वास जीतने का प्रस्ताव पास किया गया. संयुक्त राष्ट्र में स्थायी रूप से‘यूएनसीएसी‘ को भ्रष्टाचार के खिलाफ़ मोर्चा लेने के लिए बनाया गया है.
नेपाल में अख्तियारदुरुपयोगअनुसंधान आयोग, हांगकांग का इंडिपेंडेंट कमीशन अगेंस्ट करप्शन, मलयेशिया की एंटी करप्शन एकेडमी जैसी संस्थाएं हर देश में हैं. दुनिया भर में भ्रष्टाचार के रूप एक हैं, पर नाम अनेक. चीन में ’थान वू‘, थाईलैंड में ’छिन मुओंग’, जापान में ओशुकू और पाक में ’ऊपर की आमदनी‘ नाम से ही लगेगा कि हमारी तरह इन देशों की आम जनता भी भ्रष्टाचार के नर्क से मुक्ति चाहती है. लेकिन क्या करप्शन फ्री समाज का बनना संभव है?
ईयू-ऐशिया न्यूज के नयी दिल्ली स्थित संपादक हैं
के खिलाफ़ इस समय भारत में हल्ला बोल कार्यक्रम चल रहा है. भ्रष्टाचार के
इस रोग से मुक्ति के लिए दुनिया के ज्यादातर देशों की जनता छटपटा रही है.
तमाम देशों में भ्रष्टाचार रोकने के लिए संस्थाएं भी हैं. लेकिन क्या
करप्शन फ्री समाज का बनना संभव है?
दुनिया में भ्रष्टाचार उजागर करने में ’ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल‘ सबसे आगे रहा है. जिस देश में इस संस्था का मुख्यालय है, वह दुनिया के 20वें
भ्रष्टतम देशों में शुमार है. बर्लिन स्थित ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के
पास भी इसका जवाब नहीं है कि जर्मनी में भ्रष्टाचार पर नकेल कसें तो कैसे.
जर्मनी में खोखे-पटरी लगाने से लेकर सड़क बनाने और वी़जा देने तक में घपलों
की घुसपैठ है.
विदेशों में घूस देकर काम कराने में भी जर्मनी का जोड़ नहीं. 2008 में अमेरिका में ऐसे 120 मामले पकड़े गये थे. घूस देने के मामले में दुनिया भर में अमेरिका के बाद दूसरे नंबर पर रही जर्मन कंपनियों के खिलाफ़ 110 केस द़र्ज किये गये थे.जर्मनी की संघीय अपराध एजेंसी ने तीन साल पहले करप्शन के 8 ह़जार 569 केस द़र्ज किये थे. इस साल ग्लोबल हेल्थ फ़ंड में जर्मनों ने 20 अरब यूरो के जो फ्राड किये, उसकी जांच का निष्कर्ष आना बाकी है.
अमेरिका ग्लोबल हेल्थ फ़ंड का सबसे बड़ा सहयोगी देश है, जर्मनी दूसरे स्थान पर है. ग्लोबल हेल्थ फ़ंड के जरिये जिबोटी, मारिशानिया, माली जैसे देशों में एड्स, टीबी
और मलेरिया से कोई साढ़े चार हजार लोगों की जानें रोज बचायी जाती थी.
जर्मनों द्वारा भ्रष्टाचार के कारण अब सबकी जान सांसत में है. आज हालत यह
है कि ’पेपफ़ार‘, ’डीएफ़आइडी‘, ’यूएसएड‘, ’यूएनडीपी‘, गेट्स फ़ाउंडेशन, ’नोराड‘, विश्व बैंक जैसी नामी-गिरामी सहयोगी संस्थाओं को सफ़ाई देनी पड़ रही है. ऐसे लाखों एनजीओ हैं, जिन्होंने कई-कई वर्षो से ऑडिट तक नहीं कराये. भ्रष्टाचार के हमाम में कौन कपड़े में है, यह ढूंढ़ना अब मुश्किल है.
भारत में भ्रष्टाचार के खिलाफ़ इस समय जो हल्ला बोल कार्यक्रम चल रहा है, उसका
सूत्रधार जर्मनी ही है. यह संयोग की बात है कि लिश्टेंटाइन के एलजीटी बैंक
से निकल चुके कंप्यूटर कर्मी से टैक्स मारने वालों की जिस सीडी को जर्मनों
ने खरीदी, उसमें भारत की उन बड़ी मछलियों का भी पता लगा, जो भ्रष्टाचार के सागर में गोते लगा रही थीं. भ्रष्टाचार भारत के लिए कोई अचानक पैदा हुई बीमारी नहीं है.
ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में चाणक्य तक ने माना था कि भ्रष्टाचार राज्य व्यवस्था का अभिन्न अंग है. ’अर्थशास्त्र‘ में चाणक्य (कौटिल्य) ने राजकोष से 40 प्रकार
के घोटालों की चर्चा की थी. कौटिल्य ने कहाभी था कि राजस्व के टुकड़े पर
सरकारी कर्मचारियों को मुंह मारने से रोकना असंभव सी बात है.समय चक्र बदलने
के साथ-साथ भ्रष्टाचार में नये-नये अध्याय जुड़े. अब यह मानव सभ्यता का
अभिन्न अंग है. राजनीतिक भ्रष्टाचार को ’क्िलप्टोक्रेसी’नाम दिया गया है, जिसका शब्दार्थ है, ’चोरों का शासन‘. ऐसा अनुमान लगाया गया है कि पूरी दुनिया में एक महासंख डॉलर की घूसखोरी सालभर में होती है.
अफ्रीका से ऐशया तक दुनिया का कोई भी गोशा गबन, घोटाले से महफ़ू़ज नहीं है. नाइजीरिया के नेताओं ने 1960 से 99 तक 400 अरब डॉलर की लूट की. मैसाचुसेट्स विश्वविद्यालय के शोधार्थियों ने 30 सब-सहारा देशों में 1970 से 96 के बीच सरकारी धन में सेंध मारने पर जानकारी जुटाई, जिससे पता चला कि इन देशों के नेता और नौकरशाह इस अवधि में 187 अरब डॉलर लूट ले गये. अरब देशों में भी ऐसा ही हुआ.
प्रसिद्ध
अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन मानते हैं कि बाढ़-सुखाड़ जैसी प्राकृतिक आपदा पर
अधिकारियों की गिद्ध दृष्टि होती है. अमर्त्य सेन ने कभी बिहार को इस कलंक
का मॉडल मानते हुए कहा था कि इस प्रदेश में अन्न की सब्सिडी का 80 प्रतिशत अधिकारी लूट ले जाते हैं. विकसित देशों को छोड़ दें तो पूरी दुनिया में खाद्य सुरक्षा के लिए फ़ंड में इ़जाफ़ा होता रहा है, पर इसके साथ-साथ गरीबों के हक पर चोंच मारने वाले गिद्धों की संख्या भी तेजी से बढ़ी है.
करप्शन
और काले धन के खिलाफ़ भारत में आये उबाल से पहले दुनियाभर में हो रहे
कान्फ्रेंस और संगोष्ठियों पर दृष्टि डालें तो पता चलता है कि कोई ऐसा
महीना नहीं जहां दुनिया के किसी कोने में कदाचार को लेकर चिंता नहीं व्यक्त
की जा रही हो. उसी संख्या में भ्रष्टों पर निगाह रखने वाली संस्थाएं भी
दुनिया भर में बनती गयी.
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आइएएसीए हर साल कान्फ्रेंस कराती है और भ्रष्टाचार के खिलाफ़ संकल्प किये जाते हैं. मलयेशिया में पिछले साल ’ऑनेस्टी मंथ’ मनाया गया, लेकिन यह कागजी बनकर रह गया. थाई अधिकारी ’टैक्स फ़ार्मिग‘ के लिए बदनाम हैं. थाई समाज को भ्रष्टाचार मुक्त करने में राजा भूमिबोल अदुल्यादेज तक असहाय दिखते हैं.
पिछले साल दक्षिणी वियतनाम में जनरल न्यूग्येन वान थियू ने घूसखोरों को फ़ांसी पर लटका देने के आदेश पर हस्ताक्षर किये, फ़िर भी इस देश को घपलों से मुक्ित नहीं मिली है. ’ब्लैक मिस्ट‘ की आंधी से जापान की सरकार हिल गयी थी. वहां की संसद ’डाइट‘ में पिछले दिसंबर में भ्रष्टाचार से लड़ने और जनता का विश्वास जीतने का प्रस्ताव पास किया गया. संयुक्त राष्ट्र में स्थायी रूप से‘यूएनसीएसी‘ को भ्रष्टाचार के खिलाफ़ मोर्चा लेने के लिए बनाया गया है.
नेपाल में अख्तियारदुरुपयोगअनुसंधान आयोग, हांगकांग का इंडिपेंडेंट कमीशन अगेंस्ट करप्शन, मलयेशिया की एंटी करप्शन एकेडमी जैसी संस्थाएं हर देश में हैं. दुनिया भर में भ्रष्टाचार के रूप एक हैं, पर नाम अनेक. चीन में ’थान वू‘, थाईलैंड में ’छिन मुओंग’, जापान में ओशुकू और पाक में ’ऊपर की आमदनी‘ नाम से ही लगेगा कि हमारी तरह इन देशों की आम जनता भी भ्रष्टाचार के नर्क से मुक्ति चाहती है. लेकिन क्या करप्शन फ्री समाज का बनना संभव है?
ईयू-ऐशिया न्यूज के नयी दिल्ली स्थित संपादक हैं