नई दिल्ली.
केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल के बाद अब दूसरे केंद्रीय सलमान खुर्शीद ने
भी कहा है कि लोकपाल विधेयक से कुछ नहीं बदलेगा। ये दोनों मंत्री लोकपाल
बिल के लिए बनाई गई संयुक्त समिति के सरकारी सदस्य हैं। सिब्बल के बयान से
नाराज अन्ना हजारे ने कहा है कि यदि सिब्बल को प्रस्तावित लोकपाल बिल में
विश्वास नहीं है तो वे कमेटी से इस्तीफा दे दें। अन्ना हजारे ने यह भी कहा
है कि कमेटी में शामिल सभी 10 सदस्य अपनी संपत्ति का ब्योरा दें। अन्ना
हजारे ने यह मांग भी की है कि कमेटी की सभी बैठकों को पारदर्शी बनाने के
लिए बैठकों की वीडियो रिकॉर्डिंग हो।
सलमान खुर्शीद ने भी कहा है
कि लोकपाल बिल से बहुत कुछ नहीं बदलेगा। उन्होंने सिब्बल के बयान का समर्थन
करते हुए कहा कि भगवान है तब भी अपराध होते ही हैं।
इससे पहले
सिब्बल ने कहा कि जरूरत लोकपाल बिल की नहीं बल्कि व्यवस्था को बदलने की है।
उन्होंने उदाहरण देकर बताया कि जहां सुविधा ही नहीं है, वहां लोकपाल बिल
क्या करेगा। उन्होंने कहा था कि किसी गरीब को अपने मरीज को अस्पताल में
भर्ती करना होता है, लेकिन बिना किसी नेता के फोन बिना यह हो नहीं पाता,
वहां लोकपाल बिल क्या करेगा? एक गरीब बच्चे को स्कूल में दाखिला नहीं
मिलता। उनके लिए पर्याप्त स्कूल नहीं हैं और शिक्षा की व्यवस्था नहीं है,
ऐसे में लोकपाल बिल क्या करेगा? उन्होंने पूछा कि क्या लोकपाल बिल से
लोगों को सिलेंडर, बिजली, पानी, फोन जैसी जरूरी सुविधाएं मिल पाएंगी?
लेकिन
सिब्बल के इस बयान से अन्ना हजारे नाराज हो गए हैं। उन्होंने कहा कि यदि
सिब्बल को लोकपाल बिल में यकीन ही नहीं है तो वे कमेटी से इस्तीफा दे दें।
सभी सदस्य संपत्ति की घोषणा करें
अन्ना
हजारे ने कहा है कि कमेटी में ज्यादा पारदर्शिता लाने के लिए जरूरी है कि
सभी 10 सदस्य संपत्ति की घोषणा करें। कमेटी में पांच सरकारी सदस्य – प्रणव
मुखर्जी, कपिल सिब्बल, वीरप्पा मोइली, पी चिदंबरम और सलमान खुर्शीद और पांच
गैर सरकारी सदस्य – अन्ना हजारे, अऱविंद केजरीवाल, शांति भूषण, प्रशांत
भूषण और संतोष हेगड़े शामिल हैं।
वीडियोग्राफी हो कमेटी की बैठकों की
हजारे
ने यह भी कहा है कि संयुक्त समिति की बैठकों की रिकार्डिंग होना चाहिए।
उन्होंने कहा कि वे आम जनता से कुछ भी छुपाना नहीं चाहते और इसकी पूरी
प्रक्रिया पारदर्शी होना चाहिए। हजारे के साथी अरविंद केजरीवाल ने भी कहा
कि बैठकों की रिकॉर्डिंग करवाकर, इसे सभी नागरिकों के लिए उपलब्ध होना
चाहिए।
30 जून तक समिति सौंपेगी रिपोर्ट
बिल के ड्राफ्ट
के लिए नियुक्त संयुक्त समिति अपनी रिपोर्ट 30 जून तक सौंप देगी। इससे
जुलाई में संसद के सत्र में इसे पेश किया जा सकेगा। समितिके संयोजक मोइली
ने कहा कि सरकार लोकपाल विधेयक को जुलाई में संसद के मानसून सत्र में पेश
करने को प्रतिबद्ध है। मोइली ने पत्रकारों से बातचीत में कहा, ‘अगर सभी लोग
सहयोग करते हैं तो यह मानसून सत्र में ही पारित हो जाएगा।’
बीजेपी खुलकर बिल के समर्थन में
बीजेपी
ने आज कहा कि यदि मॉनसून सत्र में जन लोकपाल बिल लाया गया, तो वह इसे बिना
किसी झिझक के पास करने में सहयोग देगी। बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण
आडवाणी ने कहा कि यूपीए सरकार को इस बिल को न सिर्फ पेश करना चाहिए, बल्कि
पारित कराने के लिए कदम भी उठाने चाहिए।
अन्ना के आंदोलन की तारीफ
करते हुए आडवाणी ने कहा कि सिर्फ चार दिन में अन्ना और उनके समर्थक हजारों
लोगों ने सरकार को घुटने टेकने पर मजूबर कर दिया। जबकि स्पेक्ट्रम घोटाले
पर संयुक्त संसदीय समिति की मांग मानने में ही सरकार ने दो महीने का वक्त
लगा दिया था।
आडवाणी ने कहा कि सरकार जनता के दबाव के आगे इसलिए
झुकी, क्योंकि उसे डर था कि यह आंदोलन एक राष्ट्रव्यापी शक्ल लेकर नियंत्रण
से बाहर हो सकता है।
केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल के बाद अब दूसरे केंद्रीय सलमान खुर्शीद ने
भी कहा है कि लोकपाल विधेयक से कुछ नहीं बदलेगा। ये दोनों मंत्री लोकपाल
बिल के लिए बनाई गई संयुक्त समिति के सरकारी सदस्य हैं। सिब्बल के बयान से
नाराज अन्ना हजारे ने कहा है कि यदि सिब्बल को प्रस्तावित लोकपाल बिल में
विश्वास नहीं है तो वे कमेटी से इस्तीफा दे दें। अन्ना हजारे ने यह भी कहा
है कि कमेटी में शामिल सभी 10 सदस्य अपनी संपत्ति का ब्योरा दें। अन्ना
हजारे ने यह मांग भी की है कि कमेटी की सभी बैठकों को पारदर्शी बनाने के
लिए बैठकों की वीडियो रिकॉर्डिंग हो।
सलमान खुर्शीद ने भी कहा है
कि लोकपाल बिल से बहुत कुछ नहीं बदलेगा। उन्होंने सिब्बल के बयान का समर्थन
करते हुए कहा कि भगवान है तब भी अपराध होते ही हैं।
इससे पहले
सिब्बल ने कहा कि जरूरत लोकपाल बिल की नहीं बल्कि व्यवस्था को बदलने की है।
उन्होंने उदाहरण देकर बताया कि जहां सुविधा ही नहीं है, वहां लोकपाल बिल
क्या करेगा। उन्होंने कहा था कि किसी गरीब को अपने मरीज को अस्पताल में
भर्ती करना होता है, लेकिन बिना किसी नेता के फोन बिना यह हो नहीं पाता,
वहां लोकपाल बिल क्या करेगा? एक गरीब बच्चे को स्कूल में दाखिला नहीं
मिलता। उनके लिए पर्याप्त स्कूल नहीं हैं और शिक्षा की व्यवस्था नहीं है,
ऐसे में लोकपाल बिल क्या करेगा? उन्होंने पूछा कि क्या लोकपाल बिल से
लोगों को सिलेंडर, बिजली, पानी, फोन जैसी जरूरी सुविधाएं मिल पाएंगी?
लेकिन
सिब्बल के इस बयान से अन्ना हजारे नाराज हो गए हैं। उन्होंने कहा कि यदि
सिब्बल को लोकपाल बिल में यकीन ही नहीं है तो वे कमेटी से इस्तीफा दे दें।
सभी सदस्य संपत्ति की घोषणा करें
अन्ना
हजारे ने कहा है कि कमेटी में ज्यादा पारदर्शिता लाने के लिए जरूरी है कि
सभी 10 सदस्य संपत्ति की घोषणा करें। कमेटी में पांच सरकारी सदस्य – प्रणव
मुखर्जी, कपिल सिब्बल, वीरप्पा मोइली, पी चिदंबरम और सलमान खुर्शीद और पांच
गैर सरकारी सदस्य – अन्ना हजारे, अऱविंद केजरीवाल, शांति भूषण, प्रशांत
भूषण और संतोष हेगड़े शामिल हैं।
वीडियोग्राफी हो कमेटी की बैठकों की
हजारे
ने यह भी कहा है कि संयुक्त समिति की बैठकों की रिकार्डिंग होना चाहिए।
उन्होंने कहा कि वे आम जनता से कुछ भी छुपाना नहीं चाहते और इसकी पूरी
प्रक्रिया पारदर्शी होना चाहिए। हजारे के साथी अरविंद केजरीवाल ने भी कहा
कि बैठकों की रिकॉर्डिंग करवाकर, इसे सभी नागरिकों के लिए उपलब्ध होना
चाहिए।
30 जून तक समिति सौंपेगी रिपोर्ट
बिल के ड्राफ्ट
के लिए नियुक्त संयुक्त समिति अपनी रिपोर्ट 30 जून तक सौंप देगी। इससे
जुलाई में संसद के सत्र में इसे पेश किया जा सकेगा। समितिके संयोजक मोइली
ने कहा कि सरकार लोकपाल विधेयक को जुलाई में संसद के मानसून सत्र में पेश
करने को प्रतिबद्ध है। मोइली ने पत्रकारों से बातचीत में कहा, ‘अगर सभी लोग
सहयोग करते हैं तो यह मानसून सत्र में ही पारित हो जाएगा।’
बीजेपी खुलकर बिल के समर्थन में
बीजेपी
ने आज कहा कि यदि मॉनसून सत्र में जन लोकपाल बिल लाया गया, तो वह इसे बिना
किसी झिझक के पास करने में सहयोग देगी। बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण
आडवाणी ने कहा कि यूपीए सरकार को इस बिल को न सिर्फ पेश करना चाहिए, बल्कि
पारित कराने के लिए कदम भी उठाने चाहिए।
अन्ना के आंदोलन की तारीफ
करते हुए आडवाणी ने कहा कि सिर्फ चार दिन में अन्ना और उनके समर्थक हजारों
लोगों ने सरकार को घुटने टेकने पर मजूबर कर दिया। जबकि स्पेक्ट्रम घोटाले
पर संयुक्त संसदीय समिति की मांग मानने में ही सरकार ने दो महीने का वक्त
लगा दिया था।
आडवाणी ने कहा कि सरकार जनता के दबाव के आगे इसलिए
झुकी, क्योंकि उसे डर था कि यह आंदोलन एक राष्ट्रव्यापी शक्ल लेकर नियंत्रण
से बाहर हो सकता है।