भ्रष्टाचार निरोधी जन लोकपाल बिल के नाम से मीडिया की सुर्खियों में छाये इस मसौदे में कहा गया है कि लोकपाल-लोकायुक्त की नियुक्ति की प्रक्रिया पारदर्शी और जन-भागीदारी पर आधारित हो, साथ ही इस संस्था को जन-साधारण की पहुंच के दायरे में लाया जाय़ ताकि ऊंचे पदों पर बैठा कोई भी व्यक्ति कभी भी अपने रसूख या किसी विशेषाधिकार के प्रयोग से अपने ऊपर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों को दबाने में कामयाब ना हो।साथ ही इस बात की निशानदेही की गई है कि लोकपाल नामक संस्था भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले के जानो-माल की हिफाजत करेगी।
गौरतलब है कि विगत 11-12 मार्च को शिलांग में सूचना के अधिकार के तीसरे राष्ट्रीय सम्मेलन में यही बातें आरटीआई के बारे में कही कई थीं। इस सम्मेलन में नागरिक संगठनों और जन-आंदोलन के कार्यकर्ताओं ने मांग की थी कि सूचना आयुक्त की नियुक्ति में पारदर्शिता और जनता की भागीदारी हो और आरटीआई के तहत अर्जी डालने की प्रक्रिया इतनी सहज हो कि वह अव्वल-अदने हरेक की पहुंच में आ सके।यह भी कहा गया था कि भ्रष्टाचार की निशानदेही करने के लिए कोई व्यक्ति आगे आये तो उसके जानो-माल की हिफाजत की कानूनी व्यवस्था होनी चाहिए।(देखें-इस सिलसिले में तैयार आईएम4चेंज का न्यूज एलर्ट)
जन लोकपाल बिल को अमल में लाने की मांग के साथ जंतर-मंतर पर अन्ना हजारे और सुप्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ताओं की अगुवाई में जुटे नागरिक-संगठनों ने सरकारी लोकपाल बिल की आलोचना प्रस्तुत की है और अपने जन लोकपाल विधेयक में सरकारी बिल का समग्र विकल्प प्रस्तुत किया है।नागरिक संगठनों का कहना है कि एक के बाद हुए घोटालों के सिलेसिले से परेशान मौजूदा यूपीए सरकार ने अपनी छवि को संवारने के लिए लोकपाल नामक संस्था बहाल करने का प्रस्ताव किया है। उसका इरादा ऊंचे स्तरों पर होने वाले भ्रष्टाचार पर लगाम कसने का है। नागरिक संगठनों का कहना है कि सरकार ने जो इलाज सुझाया है वह खुद बीमारी से कहीं ज्यादा खतरनाक है और लोकपाल की बहाली का सरकारी विधेयक अगर पारित हो गया तो भ्रष्टाचार-निरोधी मौजूदा व्यवस्था को मजबूत करने की जगह यह उसे आगे के लिए और ज्यादा निष्प्रभावी बना देगा।
(आईएम4चेंज का हिन्दी संस्करण इस बात को विनम्रतापूर्वक स्वीकार करता है कि यहां प्रस्तुत सामग्री विषय पर मौजूद विविध जानकारियों का सार-संकलन है। यहां प्रस्तुत अधिकतर सामग्री इडिया अगेस्ट करप्शन.ओआरजी औरपीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च की वेवसाइट से साभार जुटायी गई है।)
नागरिक संगठनों द्वारा प्रस्तावित जन लोकपाल बिल की मुख्य बातें-
1.केद्रीय स्तर पर लोकपाल और राज्य स्तर पर लोकायुक्त नाम से संस्था बनायी जाय।
2.सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग के समान लोकपाल-लोकायुक्त की संस्था सरकार से पूर्ण रुपेण स्वायत्त हो ताकि कोई भी नौकरशाह या मंत्री उसे प्रभावित करने में सक्षम ना हो सके।
3.भ्रष्टाचार के आरोपी लोगों के खिलाफ मामलों को लगातार कई बरसों तक अदालत में खींचना बंद हो- किसी भी ऐसे आरोप के क्रम में चल रही जांच अधिक से अधिक एक साल के अंदर पूरी हो जानी चाहिए ताकि ताकि भ्रष्ट राजनेता, अधिकारी या जज को जांच के फैसले के तुरंत बाद सज़ा काटने के लिए जेल भेजे जा सकें।
4.किसी भ्रष्ट व्यक्ति के कारण सरकारी राजस्व को जितना नुकसान हुआ है वह रकम आरोप की पुष्टी होने के साथ वसूल ली जाय।.
5.जन-साधारण को फायदा-: किसी भी नागरिक का कोई भी काम किसी भी सरकारी दफ्तर में तयशुदा समय में पूरा नहीं होता तो लोकपाल नाम की संस्था दोषी अधिकारी पर जुर्माना आयद करेगी और जुर्माने की यह रकम वसूली के बाद शिकायतकर्ता को हर्जाने के तौर पर दी जाएगी।.
6.इसका एक मतलब यह भी हुआ कि अगर आपका राशनकार्ड, पासपोर्ट या फिर मतदाता पहचान-पत्र नहीं बनाया जा रहा, पुलिस कोई केस दर्ज नहीं कर रही या फिर कोई और काम सरकारी दफ्तर में निर्धारित अवधि में नहीं हो रहा तो इसकी शिकायत आप लोकपाल के पास कर सकते हैं। लोकपाल आपके इस काम को एक महीने की अवधि में करायेगा। अगर कहीं आपको यह नजर आये कि राशन उठाने में फर्जीवाड़ा हो रहा है, सड़कें बनाने में निर्धारित गुणवत्ता का पालन नहीं हो रहा या पंचायत को सरकारी सामाजिक सुरक्षा योजना के नाम पर मिली रकम के साथ फर्जीवाड़ा हो रहा है तो आप लोकपाल के पास इस बात की भी शिकायत कर सकते हैं। लोकपाल(या लोकायुक्त) शिकायत की जांच ज्यादा से ज्यादा एक साल की अवधि में पूरा करेगा और जांच के आधार पर चलने वाले मुकदमे का फैसला अगले साल के अंदर अंदर आ जाएगा। इस तरह से दोषी व्यक्ति हद से हद दो साल के अंदर जेल में होगा।
7.सरकार चाहे तो भी कमजोर या फिर भ्रष्ट व्यक्ति को लोकपाल या लोकायुक्त के रुप में नियुक्त नहीं कर पायेगी क्योंकि लोकपाल नामक संस्था के सदस्यों का चयन स्वयं जजों, नागरिकों और संविधानिक निकायों के माध्यम से होगा। इसमें राजनेताओं की दखल नहीं होगी और पूरी प्रक्रिया को पारदर्शी तथा भागीदारी आधारित बनाया जाएगा।.
8.चूंकि लोकपाल-लोकायुक्त नामक संस्था के कामकाज की पूरी प्रक्रिया पारदर्शी होगी इसलिए यह आशंका भी नहीं रह जाती कि इसके सदस्यों,अधिकारियों-कर्मचारियों में से कोई कभी भ्रष्टाचार कर पाएगा। लोकपाल नामक संस्था के किसी भी अधिकारी-कर्मचारी के विरुद्ध शिकायत की जाती है तो उसकी जांच होगी और शिकायत सही पाये जाने पर संबंधित सदस्य को दो महीने के अंदर हटा दिया जाएगा।
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9.सीवीसी और सीबीआई के विजिलेंस और एंटी-करप्शन विभाग को एक साथ मिला दिया जाएगा और इसे लोकपाल नामक संस्था में ही निहित कर दिया जाएगा। किसी भी जज, राजनेता या अधिकारी के खिलाफ होने वाली शिकायतकीजांच और उसके आधार पर चलाया जाना वाले मुकदमे की कार्यवाही लोकपाल नामक संस्था स्वतंत्र रुप से करेगी और इसके लिए संस्था की अपनी मशीनरी होगी।
10.लोकपाल नामक संस्था की जिम्मेवारी होगी कि वह भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले लोगों के जान-माल की सुरक्षा मुहैया कराये।
सरकार द्वार प्रस्तावित लोकपाल बिल-2010 की आलोचना-
(सरकार का इरादा इसे एक अध्यादेश के जरिए पास करवाने का है)
नागरिक संगठनों ने सरकार द्वारा प्रस्तावित लोकपाल बिल-2010 की निम्नलिखित आलोचना प्रस्तुत की है-
लोकपाल किसी भी मामले में ना तो स्वेच्छा से एक्शन लेने के लिए स्वतंत्र है और ना ही उसके पास जन-साधारण भ्रष्टाचार के बारे में अपनी कोई शिकायत भेज सकता है। बिल के अनुसार शिकायत की अर्जी सिर्फ लोकसभा के स्पीकर या राज्यसभा के अध्यक्ष को भेजी जा सकती है। लोकसभा के स्पीकर या राज्यसभा के अध्यक्ष जिस शिकायत को लोकपाल के पास अपनी संस्तुति के साथ भेजेंगे केवल उनपर ही लोकपाल नामक संस्था विचार करेगी।एक तो इससे लोकपाल के कामकाज का दायरा संकुचित होता है, दूसरे इससे सरकार के हाथ में अपने राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ एक और औजार लग जाएगा क्योंकि लोकसभा का स्पीकर हमेशा सत्ताधारी दल का होता है। इसके सहारे सरकार अपने राजनेताओं पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप को दबाने का काम भी कर सकती है।
1.सरकारी बिल में लोकपाल नामक संस्था को परामर्शदायी संस्था के तौर पर गढ़ने की बात कही गई है। लोकपाल किसी केस की जांच के बाद उसपर खुद कार्रवाई नहीं करेगा बल्कि अपनी रिपोर्ट किसी अन्य सक्षम संस्था को भेजेगा और यह संस्था ही तय करेगी कि लोकपाल की रिपोर्ट के आधार पर आगे की कार्रवाई करनी है या नहीं। बिल में सक्षम संस्था की परिभाषा करते हुए कहा गया है कि अगर भ्रष्टाचार का आरोप काबीना मंत्रियों पर लगता है तो लोकपाल इसकी शिकायत पर तैयार अपनी जांच रिपोर्ट सिर्फ प्रधानमंत्री को भेज सकता है। गठबंधनी सरकार के इस दौर में सरकार अपने समर्थक दलों के आधार पर चल रही है। ऐसे में प्रधानमंत्री के लिए अपने ही काबीना मंत्रियों के खिलाफ लोकपाल की रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई कर पाना व्यवहारिक रुप से संभव नहीं है।.
2.सरकारी बिल कानूनी तौर पर संगत नहीं जान पड़ता। लोकपाल को किसी तरह का पुलिस-पावर नहीं दिया गया है। इस वजह से लोकपाल कोई एफआईआर दर्ज नहीं कर सकता। जाहिर है, लोकपाल अगर किसी शिकायत की जांच करता है तो प्रारंभिक जांच कही जाएगी। लोकपाल की रिपोर्ट किन्हीं हालात में स्वीकार भी कर ली जाती है तो ऐसे में सवाल बनेगा कि अदालत में चार्जशीट कौन दायर करेगा और अभियोजन पक्ष की तरफ से अदालत में जो वकील मुकदमा लड़ेगा उसकी नियुक्ति कौन करेगा।बिल ऐसी बातों पर चुप है।
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3.बिल में यह नहीं बताया गया है कि पारित हो जाने के बाद सीबीआई की भूमिका क्या होगी। बिल से यह स्पष्ट नहीं होता कि क्या लोकपाल और सीबीआई एक ही केस पर अपनी जांच अलग-अलग करेंगे या एकसाथ। यह भी साफ नहीं होता कि लोकपाल नामक संस्था बनने के बाद सीबीआई राजनेताओं पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच करेगी या नहीं। अगर, सीबीआई से ऐसी शक्ति वापस ले ली जातीहै तो इसका मतलब होगा फिलहाल मौजूद भ्रष्टाचार निरोधी व्यवस्था को आगे के लिए नकारा बना देना।
4.बिल में में विधान है कि अगर कोई झूठी शिकायत करता है तो उसे गंभीर दंड दिया जाएगा। ऐसे में अगर कोई शिकायत झूठी पायी जाती है तो लोकपाल को शक्ति दी गई है कि वह शिकायती को जेल भेज सके। लेकिन, शिकायत सही पायी जाती है तो विधेयक में ऐसा कोई विधान नहीं है कि लोकपाल दोषी को दंड दे सके। जाहिर है, भ्रष्टाचार के खिलाफ शिकायत करने वाले ऐसे विधान से हतोत्साहित होंगे।
5.लोकपाल के न्यायाधिकार में सांसद, मंत्री और प्रधानमंत्री को तो रखा गया है लेकिन अधिकारियों को नहीं। सामान्य अनुभव यही कहता है कि राजनेता और अधिकारी अलग-अलग भ्रष्टाचार में लिप्त नहीं होते।भ्रष्टाचार का कोई भी मामला हो, राजनेता और अधिकारी की मिलीभगत होती है।इस तरह देखें तो सरकारी बिल के हिसाब से भ्रष्टाचार के किसी भी मामले में यह जरुरी होगा कि सीवीसी और लोकपाल दोनों जांच करें। सीवीसी भ्रष्टाचार के मामले में नौकरशाह की भूमिका जांचेगी और लोकपाल राजनेता की भूमिका की जांच करेगा। ऐसे में जाहिरा तौर केस के रिकार्डस् एक एजेंसी के पास रहेगे। सरकार जिस तरीके से काम करती है, उससे साफ है कि एक एजेंसी दूसरे एजेंसी से अपने रिकार्ड का साझा नहीं करेगी।यह भी मुमकिन है कि एक ही केस की जांच के मामले में दोनों संस्थाएं (लोकपाल और सीवीसी) परस्पर विरुद्ध निष्कर्ष पर पहुंचें। कहा जा सकता है कि सरकारी बिल भ्रष्टाचार की किसी भी जांच को सिरे से खत्म कर देने का विधान कर रहा है।.
6.बिल के अनुसार लोकपाल नामक संस्था के तीन सदस्य होंगे और तीनों अवकाश-प्राप्त न्यायधीश। यह स्पष्ट नहीं होता कि आखिर सदस्यों में हर किसी का न्यायपालिका से ही चुना जाना क्योंकर जरुरी माना गया।अवकाश-प्राप्त जजों के लिए इतने सारे पद सृजित करके सरकार एक तरह से सेवा-समाप्ति के कगार पर पहुंचे किसी जज को अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रही है। सेवाअवधि की समाप्ति-सीमा तक आ पहुंचे नौकरशाहों के मामले में यह बात पहले से ही देखने में आ रही है।
7.बिल में कहा गया है कि लोकपाल नामक संस्था के लिए नियुक्ति करने वाली समिति में उप-राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री दोनों सदनों के विपक्षी पार्टी के नेता, कानून मंत्रि और गृहमंत्री को शामिल किया जाएगा। उप-राष्ट्रपति को छोड़कर इनमें से सभी राजनेता हैं और लोकपाल से अपेक्षा है कि वह राजनेताओं के भ्रष्टाचार की जांच करे। यहां हितों का साफ संघर्ष नजर आ रहा है। चयन समिति का पलड़ा सदस्यों के मामले में सत्ताधारी दल के पक्ष में झुका हुआ है। व्यवहारिक रुप से देखें तो सत्ताधारी पार्टी ही अंतिम रुप से लोकपाल नामक संस्था के सदस्यों की चयनकर्ता है। जाहिर है, सत्ताधारी दल क्योंकर चाहेगा कि कोई निष्पक्ष और मजबूत लोकपाल बहाल हो।
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8.लोकपाल को ऐसी शक्ति नहीं दी गई है कि वह प्रधानमंत्री के खिलाफ भ्रष्टाचार की किसी शिकायत की जांच करे जबकि प्रधानमंत्री विदेश और रक्षा से जुड़े मामलों में एक महत्वपूर्ण भूमिका में होते हैं। इस तरह देखें तो बिल के अनुसार अगर रक्षा मामलों से जुड़ा कोई सौदे में (जैसे बोफोर्स) कोईघोटाला होताहै तो आगे से उसकी जांच लोकपाल के माध्यम से करवाना संभव नहीं होगा।
एक तुलनात्मक जायजा
भ्रष्टाचार निरोध |
नागरिक संगठनों का |
सबूतों के बावजूद फिलहाल |
केद्र |
कोई भी भ्रष्ट |
भ्रष्ट |
भ्रष्ट जज के खिलाफ कोई कार्रवाई करना |
लोकपाल-लोकायुक्त |
लोग भ्रष्टाचार की शिकायत तो करते हैं |
लोकपाल-लोकायुक्त |
खुद सीबीआई और |
लोकपाल-लोकायुक्त की संस्था जो भी काम |
भ्रष्टाचार निरोधी एजेंसियों का |
लोकपाल-लोकायुक्त नामक संस्था के |
सरकारी दफ्तरों में नागरिकों को |
लोकपाल-लोकायुक्त |
फिलहाल ऐसा कोई कानून नहीं है जिसके |
भ्रष्टाचार से अगर सरकारी राजस्व को |
भ्रष्टाचार के लिए दिया जाना वाला दंड |
दोषी पाये जाने पर न्यूनतम पाँच साल |
विशेष जानकारी के लिए देखें नीचे के लिंकस्-
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Why is RTI back in
news?, http://www.im4change.org/news-alert/why-is-rti-back-in-news-6740.html
Anna Hazare will go
on an indefinite fast from 5th April 2011 to bring anti-corruption law on the
lines of “Jan Lokpal Bill”,
http://indiaagainstcorruption.org/docs/Anna%20Hazare%27s%20fast%20unto%20death%20%28English%29.pdf
http://indiaagainstcorruption.org/anna.php
Draft anti-corruption
Bill,
http://www.indiaagainstcorruption.org/doc/civil_society_s_lokpal_bil.pdf
Draft Lokayukta Bill,
http://www.indiaagainstcorruption.org/doc/Lokayukta_Bill_ver_1.5.pdf
Govt.’s Lokpal Bill,
http://www.indiaagainstcorruption.org/doc/Govt._s_Lokpal_Bill_2010.pdf
Critique of Govt.’s
Lokpal Bill,
http://www.indiaagainstcorruption.org/doc/Critique_of_Govt._s_Lokpal_Bill_2010.pdf
Smell of a revolution
as crowds gather to back Hazare by Neha Tara Mehta, India Today, 7 April, 2011,
http://indiatoday.intoday.in/site/Story/134541/india/lokpal-bill-smell-of-a-revolution-as-crowds-gather-to-back-hazare.html
Lokpal Bill: United
in opposition, civil society a divided lot by Manoj Mitta, The Times of India,
7 April, 2011, http://timesofindia.indiatimes.com/india/Lokpal-Bill-United-in-opposition-civil-society-a-divided-lot/articleshow/7892019.cms
Why Hazare, others
oppose govt’s Lokpal Bill 2010, NDTV, 5 April, 2011, http://www.ndtv.com/article/india/why-hazare-others-oppose-govts-jan-lokpal-bill-2010-96609
What is the Jan
Lokpal Bill, why it’s important?, NDTV, 5 April,2011, http://www.ndtv.com/article/india/anna-hazares-fast-against-corruption-strikes-huge-chord-96593
Anna Hazare’s fast
against corruption strikes huge chord, NDTV, 6 April, 2011, http://www.ndtv.com/article/india/anna-hazares-fast-against-corruption-strikes-huge-chord-96593
The fatal flaws in
the government’s Lokpal Bill by Iftikhar Gilani, Tehelka, 5 April, 2011, http://tehelka.com/story_main49.asp?filename=Ws050411ACTIVISM.asp
Lokpal vs Jan Lokpal:
A study in contrast, India Today, 5 April, 2011, http://indiatoday.intoday.in/site/Story/134429/latest-headlines/lokpal-vs-jan-lokpal-a-study-in-contrast.html
Cracks appear in
Anna’s team, Govt plans to reach out by Seema Chishti and Maneesh Chhibber,
Express India, 7 April, 2011, http://www.expressindia.com/latest-news/Cracks-appear-in-Annas-team-Govt-plans-to-reach-out/772834/
Lokpal Bill:
Government vs Anna Hazare, IBN, 6 April, 2011, http://ibnlive.in.com/news/lokpal-bill-government-vs-anna-hazare/148415-3.html
Hazare fast: people
heckle, chase out politicos, IBN, 6 April, 2011, http://ibnlive.in.com/news/politicos-heckled-not-allowed-to-meet-hazare/148450-37-64.html
Sharad Pawar quits
GoM on Lokpal bill, IBN, 6 April, 2011, http://ibnlive.in.com/news/sharad-pawar-quits-gom-on-corruption/148466-37-64.html
Don’t insult this
movement, Hazare tells Manmohan, The Times of India, 6 April, 2011, http://timesofindia.indiatimes.com/india/Dont-insult-this-movement-Hazare-tells-Manmohan/articleshow/7884785.cms
Anna Hazare’s
anti-graft campaign gathers steam, IBN, 6 April, 2011, http://ibnlive.in.com/news/anna-hazares-antigraft-campaign-gathers-steam/148396-3.html
On day Anna Hazare
begins fast, NAC too calls for lokpal debate, The Times of India, 6 April,
2011, http://timesofindia.indiatimes.com/india/On-day-Anna-Hazare-begins-fast-NAC-too-calls-for-lokpal-debate/articleshow/7880511.cms
Lokpal Bill: Anna
Hazare continues fast, slams Congress for misleading people, The Times of
India, 6 April, 2011, http://timesofindia.indiatimes.com/india/Lokpal-Bill-Anna-Hazare-continues-fast-slams-Congress-for-misleading-people/articleshow/7882342.cms
Indian activist Anna
Hazare begins anti-graft fast, BBC, 5 April, 2011, http://www.bbc.co.uk/news/world-south-asia-12968151
Former soldier Anna
Hazare now fights for Lokpal Bill by Makarand Gadgil, Live Mint, 5 April, 2011,
http://www.livemint.com/2011/04/05224435/Former-soldier-Anna-Hazare-now.html
War against
corruption: Anna fasts for graft law by Rupashree Nanda, IBN, 6 April, 2011, http://ibnlive.in.com/news/war-against-corruption-anna-fasts-for-graft-law/148339-3.html
Hazare’s action
premature:Congress by Smita Gupta, The Hindu, 6 April, 2011, http://www.hindu.com/2011/04/06/stories/2011040662711200.htm
BJP seeks all-party
meeting on Lokpal Bill, The Hindu, 6 April, 2011, http://www.hindu.com/2011/04/06/stories/2011040655071100.htm
Mumbai rallies behind
Hazare in anti-corruption drive by Vinaya Deshpande, The Hindu, 6 April, 2011, http://www.hindu.com/2011/04/06/stories/2011040662701200.htm
He should have
waited, says Santosh Hegde by Sudipto Mondal, The Hindu, 6 April, 2011, http://www.hindu.com/2011/04/06/stories/2011040662691200.htm
Anna Hazare begins
fast-unto-death by Jiby Kattakayam, The Hindu, 6 April, 2011, http://www.hindu.com/2011/04/06/stories/2011040653261300.htm
Anna Hazare plans fast
unto death for strong Lokpal bill, IANS, 4 April, 2011, http://in.news.yahoo.com/anna-hazare-plans-fast-unto-death-strong-lokpal-20110404-071415-968.html
Anna Hazare’s fast
unto death for Jan Lokpal Bill begins today, NDTV, 5 April, 2011, http://www.ndtv.com/article/delhi/anna-hazares-fast-unto-death-for-jan-lokpal-bill-begins-today-96454
PMO appeals to Hazare
to give up fast plan by Smita Gupta, The Hindu, 5 April, 2011, http://www.hindu.com/2011/04/05/stories/2011040562881600.htm
Consultation shows
consensus on Lokpal Bill may not be easy by Smita Gupta, The Hindu, 4 April,
2011, http://www.hindu.com/2011/04/04/stories/2011040457531400.htm
Lokpal Bill: ‘no
precedent for a joint committee’ by Smita Gupta, The Hindu, 30 March, 2011, http://www.hindu.com/2011/03/30/stories/2011033066621700.htm
Aruna Roy, Magsaysay
award winner and former bureaucrat interviewed by Danish Raza, Governance Now,
21 March, 2011,
http://www.governancenow.com/views/interview/lobbies-backed-bureaucrats-working-sabotage-rti