जयपुर.
राजस्थान में पिछले दस साल में साक्षरता बढ़ाने के नाम पर भारी भरकम खर्च
करने के बावजूद महिला साक्षरता केवल पौने नौ फीसदी बढ़ सकी। यह देश में
सबसे कम है, जबकि बिहार, झारखंड जैसे पिछड़े माने जाने वाले राज्यों में
यहां की तुलना में दोगुने से भी ज्यादा साक्षरता बढ़ी है।
राज्य
में जनगणना के नतीजों ने कागजी दावों की पोल खोल दी है। वर्ष 2002-03 से
2010 तक बालिकाओं की प्राथमिक शिक्षा व महिला साक्षरता पर करीब 7600 करोड़
रु. खर्च किए गए, लेकिन साक्षरता 2001 के आंकड़े (43.85 फीसदी) से केवल
8.81 फीसदी ही बढ़ी। जबकि बिहार में यह 20 फीसदी, झारखंड में 17 फीसदी
बढ़ी। गौरतलब है कि राजस्थान में ही 1991 से 2001 में साक्षरता 23 फीसदी
बढ़ी थी और तब बजट भी बहुत कम (पूरे दशक का करीब 150 करोड़ रु.) था। ऐसे
में सवाल उठता है कि आखिर साढ़े सात हजार करोड़ रु. का कैसे इस्तेमाल हुआ
या हुआ भी नहीं ?
दो साल से सरकार में महिला साक्षरता सौ फीसदी
करने को लेकर केवल बैठकें हो रही हैं। साक्षरता की परिभाषा ही स्पष्ट नहीं
है। जो पढ़-लिख व समझ सके वह साक्षर माना जाता है, लेकिन जनगणना के दौरान
परिजन से पूछा गया कि अपना नाम लिख लेते हैं तो साक्षर मान लिया गया। जो
गलत है। – कुलभूषण कोठारी, यूनीसेफ के पूर्व वरिष्ठ सलाहकार (पॉलिसी एंड
प्लानिंग)
बचाव में सरकार: कुछ साल साक्षरता कार्यक्रम
रुक गए थे। अगली जुलाई से चाइल्ड ट्रेकिंग कार्यक्रम की रिपोर्ट के आधार
सभी बालिकाओं को स्कूल से जोड़ने के प्रयास करेंगे। – मास्टर भंवरलाल,
शिक्षा मंत्री