इंदौर।
मरीजों को सुविधाएं और बेहतर इलाज देने के नाम पर बड़ा मजाक साबित हो रही
है एमवाय की 14 करोड़ की नई ओपीडी बिल्डिंग। बिल्डिंग पर तो करोड़ों खर्च
कर दिए गए लेकिन मरीजों को दीवारों से नहीं सुविधाओं से वास्ता था, जिन पर न
सोचा गया न काम किया गया। हालत यह है कि हर दिन सैकड़ों की तादाद में यहां
आने वाले मरीजों को न लाने-ले जाने के लिए वार्डबॉय मिलते हैं और न पूछताछ
और पर्ची बनाने वाले बूथ पर कोई कर्मचारी। इतने बड़े अस्पताल में एक दर्जन
स्ट्रेचर और व्हील चेयर तक नहीं है। ऐसे में आप किसी भी वक्त अस्पताल में
इधर-उधर लंगड़ाते, गिरते-पड़ते, परिजन का सहारा लेकर आगे बढ़ते मरीजों की
हालत देखकर दु:खी हो सकते हैं।
नए अस्पताल में सबसे ज्यादा पूछे जाने वाले सवाल
पर्ची बनाने वाले कब आएंगे?
पर्ची का ऑफिस भी यहां पर शिफ्ट कर दिया गया है। इसके लिए कम्प्यूटर भी
यहां पर लगाए गए हैं। ओपीडी का समय दो बजे तक का है लेकिन पर्ची बनाने वाले
भी अधिकांश समय अपनी सीट से गायब रहते हैं।
वार्डबॉय भैया आप कहां हो?
मात्र पांच वार्डबॉय हैं, जो काम में लगे रहते हैं लेकिन अधीक्षक इनकी
संख्या १क्-१२ बता रहे हैं। न तो पर्याप्त व्हील चेयर है और न ही ट्रॉली।
इसके साथ ही व्हील चेयर और ट्रॉली चलाने वाले वार्डबॉय भी मौजूद नहीं रहते
हैं। कुछ संस्थाओं ने सुविधाएं दान में भी दी हैं लेकिन यह मुख्य बिल्डिंग
में ही घूमती रहती हैं। मरीज तो परेशान हैं ही, यह दानदाताओं की भावनाओं का
अपमान भी है।
जाएं कैसे, कोई सहारा है?
हाथ-पैर में फ्रैक्चर हो या गंभीर रूप से बीमार हो, मरीज को सीढ़ियों से
चढ़ना-उतरना पड़ता है। जिनके साथ कोई परिजन नहीं आता वे नीचे ही बैठे-बैठे
व्हील चेयर या ट्रॉली का इंतजार करते रहते हैं। जब तक कोई उनके लिए इसकी
व्यवस्था करता है तब तक डॉक्टर चले जाते हैं और उन्हें बिना इलाज के वापस
जाना पड़ता है।
एक्स-रे के लिए वापस जाना पड़ेगा?
एक्स-रे और पैथॉलॉजी की व्यवस्था अभी भी पुरानी बिल्डिंग में ही है। यह
बिल्डिंग करीब २क्क्-३क्क् मीटर दूर स्थित है। वहां से रिपोर्ट लेकर फिर
वापस आने तक समय खत्म हो जाता है और दूसरे दिन आना पड़ता है। दूसरे दिन उस
डॉक्टर की ड्यूटी नहीं होने की स्थिति में इलाज कम से कम एक हफ्ते के लिए
टल जाता है।
‘पूछताछ’ लेकिन किससे?
अधीक्षक डॉ. सलिल भार्गव के अनुसार पूछताछ केंद्र पर दो कर्मचारियों, दो
नर्सेस व एक एनजीओ के व्यक्ति की ड्यूटी है। डीबी स्टार ने चार बार देखातो
वहां पर कोई नहीं मिला। कर्मचारी कैलाश भरकरा अंदर घूमता मिला जबकि संजय
जासूस कही और ड्यूटी कर रहा था। नर्स सुशीला कुचेकर भी गायब मिली। बिल्डिंग
में कौन डिपार्टमेंट कहां है जैसी बातों का किसी को पता नहीं है। ऐसे में
केंद्र का ठीक से काम न करना मरीजों के लिए आफत है।
डॉक्टर साब कहां हैं?
डॉक्टर भी अपने ड्यूटी के प्रति बेफिक्र नजर आ रहे हैं। जबसे यहां पर ओपीडी
शिफ्ट हुई है डॉक्टर अपनी मनमर्जी से आ-जा रहे हैं। अधिकांश विभागों में
सीनियर डॉक्टर कम से कम नजर आते हैं और इनका काम जूनियर्स के भरोसे है। कई
विभागों में डॉक्टर के स्थान पर खाली कुर्सियां नजर आती हैं। दूर-दूर से आए
मरीज इंतजार ही करते रह जाते हैं।
हम सब कहां बैठें?
नए कमरों में डॉक्टरों के बैठने के लिए पुराना फर्निचर ही है। मरीजों को भी खड़े रहना पड़ता है।
मरीजों को सुविधाएं और बेहतर इलाज देने के नाम पर बड़ा मजाक साबित हो रही
है एमवाय की 14 करोड़ की नई ओपीडी बिल्डिंग। बिल्डिंग पर तो करोड़ों खर्च
कर दिए गए लेकिन मरीजों को दीवारों से नहीं सुविधाओं से वास्ता था, जिन पर न
सोचा गया न काम किया गया। हालत यह है कि हर दिन सैकड़ों की तादाद में यहां
आने वाले मरीजों को न लाने-ले जाने के लिए वार्डबॉय मिलते हैं और न पूछताछ
और पर्ची बनाने वाले बूथ पर कोई कर्मचारी। इतने बड़े अस्पताल में एक दर्जन
स्ट्रेचर और व्हील चेयर तक नहीं है। ऐसे में आप किसी भी वक्त अस्पताल में
इधर-उधर लंगड़ाते, गिरते-पड़ते, परिजन का सहारा लेकर आगे बढ़ते मरीजों की
हालत देखकर दु:खी हो सकते हैं।
नए अस्पताल में सबसे ज्यादा पूछे जाने वाले सवाल
पर्ची बनाने वाले कब आएंगे?
पर्ची का ऑफिस भी यहां पर शिफ्ट कर दिया गया है। इसके लिए कम्प्यूटर भी
यहां पर लगाए गए हैं। ओपीडी का समय दो बजे तक का है लेकिन पर्ची बनाने वाले
भी अधिकांश समय अपनी सीट से गायब रहते हैं।
वार्डबॉय भैया आप कहां हो?
मात्र पांच वार्डबॉय हैं, जो काम में लगे रहते हैं लेकिन अधीक्षक इनकी
संख्या १क्-१२ बता रहे हैं। न तो पर्याप्त व्हील चेयर है और न ही ट्रॉली।
इसके साथ ही व्हील चेयर और ट्रॉली चलाने वाले वार्डबॉय भी मौजूद नहीं रहते
हैं। कुछ संस्थाओं ने सुविधाएं दान में भी दी हैं लेकिन यह मुख्य बिल्डिंग
में ही घूमती रहती हैं। मरीज तो परेशान हैं ही, यह दानदाताओं की भावनाओं का
अपमान भी है।
जाएं कैसे, कोई सहारा है?
हाथ-पैर में फ्रैक्चर हो या गंभीर रूप से बीमार हो, मरीज को सीढ़ियों से
चढ़ना-उतरना पड़ता है। जिनके साथ कोई परिजन नहीं आता वे नीचे ही बैठे-बैठे
व्हील चेयर या ट्रॉली का इंतजार करते रहते हैं। जब तक कोई उनके लिए इसकी
व्यवस्था करता है तब तक डॉक्टर चले जाते हैं और उन्हें बिना इलाज के वापस
जाना पड़ता है।
एक्स-रे के लिए वापस जाना पड़ेगा?
एक्स-रे और पैथॉलॉजी की व्यवस्था अभी भी पुरानी बिल्डिंग में ही है। यह
बिल्डिंग करीब २क्क्-३क्क् मीटर दूर स्थित है। वहां से रिपोर्ट लेकर फिर
वापस आने तक समय खत्म हो जाता है और दूसरे दिन आना पड़ता है। दूसरे दिन उस
डॉक्टर की ड्यूटी नहीं होने की स्थिति में इलाज कम से कम एक हफ्ते के लिए
टल जाता है।
‘पूछताछ’ लेकिन किससे?
अधीक्षक डॉ. सलिल भार्गव के अनुसार पूछताछ केंद्र पर दो कर्मचारियों, दो
नर्सेस व एक एनजीओ के व्यक्ति की ड्यूटी है। डीबी स्टार ने चार बार देखातो
वहां पर कोई नहीं मिला। कर्मचारी कैलाश भरकरा अंदर घूमता मिला जबकि संजय
जासूस कही और ड्यूटी कर रहा था। नर्स सुशीला कुचेकर भी गायब मिली। बिल्डिंग
में कौन डिपार्टमेंट कहां है जैसी बातों का किसी को पता नहीं है। ऐसे में
केंद्र का ठीक से काम न करना मरीजों के लिए आफत है।
डॉक्टर साब कहां हैं?
डॉक्टर भी अपने ड्यूटी के प्रति बेफिक्र नजर आ रहे हैं। जबसे यहां पर ओपीडी
शिफ्ट हुई है डॉक्टर अपनी मनमर्जी से आ-जा रहे हैं। अधिकांश विभागों में
सीनियर डॉक्टर कम से कम नजर आते हैं और इनका काम जूनियर्स के भरोसे है। कई
विभागों में डॉक्टर के स्थान पर खाली कुर्सियां नजर आती हैं। दूर-दूर से आए
मरीज इंतजार ही करते रह जाते हैं।
हम सब कहां बैठें?
नए कमरों में डॉक्टरों के बैठने के लिए पुराना फर्निचर ही है। मरीजों को भी खड़े रहना पड़ता है।