शिमला
एआईपीआईएल की गुम्मा कार्टन फैक्टरी को निजी हाथों में बेचने को लेकर
हिमाचल प्रदेश किसान सभा जल्दी ही प्रदेश सरकार के खिलाफ प्रदेश व्यापी
आंदोलन छेड़ने जा रही है। इसके लिए हिमाचल किसान सभा ने बागबानों से
आंदोलन में जुड़ने का आह्वान किया है। हिमाचल किसान सभा ने प्रदेश सरकार पर
आरोप लगाया कि प्रदेश सरकार ने गैर कानूनी तरीके से फैक्टरी को एक कबाड़िए
के हाथों में 1.8 करोड़ रुपए में बेच दिया है। जबकि सरकार ने स्वंय ही इस
फैक्टरी की कीमत 28 करोड़ रुपए आंकी है। इस संदर्भ में कुछ माह पहले
हाईकोर्ट में हिमाचल किसान सभा ने याचिका भी दायर की थी।
जिसकी सुनवाई सोमवार को हाई कोर्ट में हो रही है। पत्रकार वार्ता में किसान
सभा के उपाध्यक्ष टिकेंद्र सिंह पंवार ने कहा कि भारत सरकार के महालेखा
नियंत्रक (सीएजी) ने भी इस संदर्भ में हिमाचल किसान सभा के रखे पक्ष को
पुख्ता किया है। जिसके लिए महालेखा नियंत्रक ने 2011 से 2012 तक लेखा
परिक्षा (ऑडिट) करने का फैसला लिया है। वहीं राष्ट्रमंडल सचिवालय (कॉमन
वैल्थ सेक्ट्रेट) जो एआपीआईएल की सहायक रही है। यदि इस संयत्र को पूर्ण
क्षमता से चलाया जाता तो यह घाटे के बजाए सरकार के लिए मुनाफे की मुर्गी
साबित होता। जबकि इस संयत्र को महज 3 फीसदी ही इस्तेमाल किया गया है। इसलिए
इस संयत्र को अभी 50 साल और चलाया जा सकता है।
बेचने से होगा भारी नुकसान
हिमाचल किसान सभा के जिला सचिव संजय चौहान ने कहा कि कि जापान तकनीक पर
आधारित महंगी और आधुनिक तकनीक के इस संयत्र को बंद करने से बागवानों को
भारी नुकसान होगा। गुम्मा कार्टन फैक्टरी जहां कार्टन के रेट तय करती आई
है, वहीं बागवानों बढ़िया तकनीक पर आधारित गत्ता भी मुहैया करवाती आई है।
इसके बंद होने से निजी कंपनियों की कार्टन फैक्टरियों को मनमाना रेट वसूलने
की आजादी मिलेगी। वहीं कार्टन महंगा होने से बागवानों पर अतिरिक्त आर्थिक
बोझ भी इससे बढ़ेगा। सरकार इसे निजी हाथों में सौंपने की तैयारी भी कर रही
है।
एआईपीआईएल की गुम्मा कार्टन फैक्टरी को निजी हाथों में बेचने को लेकर
हिमाचल प्रदेश किसान सभा जल्दी ही प्रदेश सरकार के खिलाफ प्रदेश व्यापी
आंदोलन छेड़ने जा रही है। इसके लिए हिमाचल किसान सभा ने बागबानों से
आंदोलन में जुड़ने का आह्वान किया है। हिमाचल किसान सभा ने प्रदेश सरकार पर
आरोप लगाया कि प्रदेश सरकार ने गैर कानूनी तरीके से फैक्टरी को एक कबाड़िए
के हाथों में 1.8 करोड़ रुपए में बेच दिया है। जबकि सरकार ने स्वंय ही इस
फैक्टरी की कीमत 28 करोड़ रुपए आंकी है। इस संदर्भ में कुछ माह पहले
हाईकोर्ट में हिमाचल किसान सभा ने याचिका भी दायर की थी।
जिसकी सुनवाई सोमवार को हाई कोर्ट में हो रही है। पत्रकार वार्ता में किसान
सभा के उपाध्यक्ष टिकेंद्र सिंह पंवार ने कहा कि भारत सरकार के महालेखा
नियंत्रक (सीएजी) ने भी इस संदर्भ में हिमाचल किसान सभा के रखे पक्ष को
पुख्ता किया है। जिसके लिए महालेखा नियंत्रक ने 2011 से 2012 तक लेखा
परिक्षा (ऑडिट) करने का फैसला लिया है। वहीं राष्ट्रमंडल सचिवालय (कॉमन
वैल्थ सेक्ट्रेट) जो एआपीआईएल की सहायक रही है। यदि इस संयत्र को पूर्ण
क्षमता से चलाया जाता तो यह घाटे के बजाए सरकार के लिए मुनाफे की मुर्गी
साबित होता। जबकि इस संयत्र को महज 3 फीसदी ही इस्तेमाल किया गया है। इसलिए
इस संयत्र को अभी 50 साल और चलाया जा सकता है।
बेचने से होगा भारी नुकसान
हिमाचल किसान सभा के जिला सचिव संजय चौहान ने कहा कि कि जापान तकनीक पर
आधारित महंगी और आधुनिक तकनीक के इस संयत्र को बंद करने से बागवानों को
भारी नुकसान होगा। गुम्मा कार्टन फैक्टरी जहां कार्टन के रेट तय करती आई
है, वहीं बागवानों बढ़िया तकनीक पर आधारित गत्ता भी मुहैया करवाती आई है।
इसके बंद होने से निजी कंपनियों की कार्टन फैक्टरियों को मनमाना रेट वसूलने
की आजादी मिलेगी। वहीं कार्टन महंगा होने से बागवानों पर अतिरिक्त आर्थिक
बोझ भी इससे बढ़ेगा। सरकार इसे निजी हाथों में सौंपने की तैयारी भी कर रही
है।
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