रायपुर। छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चम्पा जिले के किसानों ने सरकार पर जिले
की 40,000 एकड़ अत्यधिक उपजाऊ भूमि कोयला आधारित बिजली संयंत्रों की भेंट
चढ़ाने का आरोप लगाया है। राज्य सरकार का कहना है कि निजी उपजाऊ भूमि को
परियोजनाओं के दायरे से बाहर रखने के लिए वह हर सम्भव कोशिश करेगी।
जांजगीर-चम्पा जिले की 80 फीसदी भूमि सिंचित क्षेत्र में आती है। यहां
प्रति हेक्टेयर 34-35 क्विंटल धान की उपज होती है। देश के अन्य जिलों की
औसत उपज 16-17 क्विंटल है।
राज्य सरकार द्वारा बिजली कम्पनियों के साथ किए गए 34 समझौते के
फलस्वरूप अगले तीन से पांच सालों में यह जिला बिजली उत्पादन करने वाला एक
महत्वपूर्ण केंद्र बन जाएगा।
यदि सभी समझौतों पर अमल होगा, तो अकेले इस जिले से 40,000 मेगावाट
बिजली का उत्पादन तो होगा, लेकिन इस प्रक्रिया में जिले की 40,000 एकड़ बेहद
उपजाऊ भूमि कोयला-आधारित बिजली संयंत्रों की भेंट चढ़ जाएगी।
मुख्यमंत्री रमन सिंह ने हालांकि कहा है कि वे निजी उपजाऊ भूमि को इन
परियोजनाओं के दायरे से बाहर रखने कोशिश करेगे और इसमें अधिक से अधिक
सरकारी भूमि का इस्तेमाल करेगे।
नरियारा गांव के एक किसान नवनीत सिंह की चार एकड़ भूमि का एक बिजली
कम्पनी ने अधिग्रहण कर लिया है। उनकी भूमि पर साल में दो फसलें होती है।
उन्होंने कहा कि सरकार के इस कदम से हजारों किसानों की खुशहाली छिन जाएगी।
जनवरी में कम्पनियों द्वारा भूमि अधिग्रहण के विरोध में हुए एक
प्रदर्शन में गांव के लगभग 150 किसानों पर पुलिस ने लाठी बरसाई और कई लोगों
को गिरफ्तार किया। विरोध प्रदर्शन अब जिले के दूसरे हिस्सों में भी देखी
जाने लगी है।
प्रदर्शन की अगुवाई कर रहे पूर्व विधायक जवाहर दूबे ने कहा कि
कम्पनियां मामूली कीमत पर भूमि का अधिग्रहण कर रही है। यदि इसे रोका नहीं
गया तो कुछ ही सालों में हजारों किसान परिवार आत्महत्या करने को मजबूर हो
जाएंगे।
पंचायत सदस्य रघुवीर सिंह ने कहा कि कम्पनियों द्वारा किए जा रहे जबरन भूमि अधिग्रहण पर सरकार मौन है।
उन्होंने कहा कि सरकार ने इस जिले को इसलिए निशाना बनाया है, क्योंकि
यह जिला नक्सल प्रभाव से मुक्त है और सरकार को लगता है कि यहां कम्पनियों
को कोई परेशानी नहीं होगी।
पूर्व मुख्यमंत्री अजित जोगी ने आईएएनएस से कहा कि सरकार किसानों के हित की अनदेखी कर कम्पनियों के पक्ष में फैसले कर रही है।
उन्होंने कहा कि जिले में हर जगह किसान सरकार के फैसले से नाराज है।
राज्य में भारतीय जनता पार्टी की सरकार में 2003 से मुख्यमंत्री रहे रमण
सिंह का कहना है कि इन समझौतों से किसानों का कोई नुकसान नहीं होगा।
उन्होंने कहा कि यह निश्चित नहीं है कि उनके द्वारा किए गए सभी समझौतों
पर पालन हो, क्योंकि जिले में कोयले के सीमित भंडार को देखते हुए सभी
कम्पनियों को केंद्र सरकार से कोयले का आवंटन या कोयला क्षेत्र मिलने की
सम्भावना नहीं है।
सिंह ने कहा किवे पूरी कोशिश करेगे कि इन परियोजनाओं से उपजाऊ भूमि को बाहर रखा जाए।
उधर छत्तीसगढ़ के पूर्व वित्त मंत्री वीरेद्र पांडे ने कहा कि समझौते में शामिल सभी कम्पनियां यहां संयंत्र लगाने जा रही है।
उन्होंने कहा कि ये कम्पनियां उपजाऊ भूमि का उधिग्रहण कर रही है, जिन पर साल में दो फसलों की बुआई होती है।
उन्होंने कहा कि जिस प्रकार से सरकार ने इस जिले को बिजली परियोजनाओं
की भेंट चढ़ा दी है, उसे देखते हुए निश्चित है कि अगले पांच सालों में यह
जिला देश का सबसे प्रदूषित जिला बन जाएगा।