..तो नहीं मिल पाएगी हरियाणवी बहू

हिसार।
हरियाणा में कन्याएं यदि यूं ही जन्म से पहले मां की कोख में दम तोड़ती
रहीं तो प्रदेश का हर छठा योग्य कुंआरा हरियाणवी बहू से वंचित हो जाएगा।
आर्थिक रूप से देश के बेहतर प्रदेशों में शामिल हरियाणा का लिंगानुपात 839
पर आ टिका है। इसके चलते प्रदेश के प्रति हजार में से 161 युवक या तो शादी
नहीं कर पाएंगे या फिर वे अन्य प्रदेशों में शादी को बाध्य होंगे।




लिंगानुपात के अंतर के चलत प्रदेश के हजारों युवकों द्वारा गरीब प्रदेशों
से बहुएं खरीदने की घटनाओं में पिछले एक दशक से पहले ही वृद्धि का सिलसिला
जारी है। हरियाणा में लिंगानुपात के स्तर को लेकर केंद्रीय योजना आयोग तक
गंभीर रूप से चिंतित है और उसने प्रदेश सरकार को इस महत्वपूर्ण मसले पर सभी
वर्गो को लक्षित करके भ्रूण-हत्या के खिलाफ प्रभावी जनअभियान छेड़ने की
सलाह दी है। जनवरी 2011 के नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में कन्याओं
की जन्म दर फिलहाल एक हजार युवकों पर केवल 839 है। राजस्थान में यह संख्या
902, बिहार में 951 और झारखंड में 975 है। धर्म के आधार पर लिंगानुपात के
अध्ययन के मुताबिक हरियाणा में जैन धर्म के लोगों में कन्याओं की संख्या
प्रति हजार पर 911, सिखों में 893, मुस्लिमों में 870, हिंदुओं में 858 और
बौद्ध धर्म के अनुयायियों में 783 प्रति हजार है।




जिलेवार हालात का जिक्र करें तो लिंगानुपात के मामले में प्रति हजार
शिुशुओं के मुकाबले कन्या शिशुओं की दर कुरुक्षेत्र में जहां केवल 729 है
वहीं फरीदाबाद में यह संख्या सर्वाधिक 932 है। रेवाड़ी में प्रति हजार बाल
शिशुओं की तुलना में 739, अंबाला में 785, यमुनानगर में 794, सोनीपत में
795, झज्जर में 798, महेंद्रगढ़ में 803, जींद में 804, रोहतक में 808,
पानीपत में 823, कैथल में 831, गुड़गांव में 834, सिरसा में 835, पंचकूला
में 844, करनाल में 870, हिसार में 879, पलवल में 881, भिवानी में 885,
मेवात में 888, फतेहाबाद में 905 और फरीदाबाद में जन्म लेने वाली कन्याओं
की संख्या केवल 932 है। आंकड़ों से बिल्कुल साफ है कि प्राकृतिक रूप से
शिशुओं की तुलना में कन्याओं के अधिक जन्म लेने की संभावनाओं को
अल्ट्रासाउंड़ के बेतहाशा प्रयोग ने उलट दिया है।




ये हैं योजना आयोग के सुझाव


लिंगानुपात के गिरते स्तर को रोकने के लिए राज्य सरकार द्वारा उठाए गए
प्रशासनिक व कल्याणकारी कदमों से तो योजना आयोग संतुष्ट है, लेकिन वह अब इस
समस्या से सामाजिक तौर पर लोकजागृति के जरिए पार पाने पर जोर दे रहा है।
उल्लेखनीय है कि मौजूदा प्रदेश सरकार द्वारा कन्याओं को प्रोत्साहन देने के
सभी प्रयासों के बावजूद लिंगानुपात गिरने की समस्या जस की तस बनी हुई है।
इसका सबसे बड़ा कारण जन्म से पहले होने वाला लिंग परीक्षण है।

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