सुपौल.
बिहार का शोक कही जाने वाली नदी कोसी की बेटियां देश की राजधानी दिल्ली
समेत अन्य महानगरों में बेच डाली जाती हैं। कोसी के ग्रामीण इलाकों की इन
बेटियों को दलाल नौकरी और पैसे का लालच देकर झांसे में लेते हैं।
घोर
गरीबी से जूझ रहे इनके माता-पिता की आंखों में पैसे की लालच नयी चमक पैदा
कर देती है। दिल्ली में हर एक बेटी की कीमत तय की जाती है। पांच से पचास
हज़ार तक में इनकी बोली लगती है। महानगरों में काम दिलाने की बात कहकर बहार
गयीं ये बेटियां बड़े शहरों में घुटती रहती हैं। कईयों को तो दलाल अधिक
पैसे की लालाच में जिस्म की मंडियों में बेच देते हैं। इसके बाद उनका वहां
से निकलना असंभव सा हो जाता है। इसके बाद गुमनामी के घरे अंधेरे ही इनका
आशियाना बन जाते हैं।
एक साल में गायब हो गयी 130 बेटियां
आंकड़ों
की मानें तो वर्ष 2010 के जनवरी से वर्ष 2011 के फ़रवरी तक कोसी ने अपनी
130 बेटियों को खो दिया है। ये कहां है, इनका पता किसी के पास नहीं है।
इनमे से कुछ ही मामले थाने तक गए हैं। हर बार की तरह पुलिस का एक ही जवाब
आता है, हम कारवाई कर रहे हैं। कोसी इलाके के जिले सुपौल की 15, सहरसा की
25, मधेपुरा की 10, पूर्णिया की 38, कटिहार की 24 और किशनगंज की 18 बेटियां
गायब हैं।
जब सुनाई दास्तां तो उड़ गए होश
पिछले
दिनों दिल्ली से मुक्त करायी गयी पूर्णिया के रूपौली प्रखंड की रहने वाली
नगमा ने जब अपने बिकने से लेकर मुक्त होने तक की बात सुनाई तो सबके होश उड़
गए। उसने बताया कि आज से दो साल पहले उसे एक दलाल ने 6000 रुपये प्रति माह
की नौकरी का लालच देकर अपने साथ ले गया था। उसके साथ आसपास के जिलों की तीन
दर्जन से ज्यादा लड़कियां गयी थीं। मगर दिल्ली जाकर वे बिछड़ गयीं।
सभी
को एक-एक कर बेच दिया गया। इसके बाद इन सबसे दिनरात काम करवाया जाने लगा,
मारपीट की जाने लगी। शोषण चरम पर होने लगा। दिल्ली में नगमा की कीमत दस
हजार लगी। हालांकि, बाद में एक स्थानीय व्यक्ति के सहयोग से वह भाग निकलने
में कामयाब हो गयी। नगमा की मानें तो उसे अब नयी जिन्दगी मिल गयी है। इससे
पहले भी कुछ लड़कियों को मुक्त कराया गया है। उनकी दास्तां भी कुछ ऐसी ही
रही।
कईयों ने तो बताया कि उनके जिस्मों को हर कभी नोचा जाता था। इस मामले का खुलासा एक स्वयंसेवी संस्था ने भी किया था।
बिहार का शोक कही जाने वाली नदी कोसी की बेटियां देश की राजधानी दिल्ली
समेत अन्य महानगरों में बेच डाली जाती हैं। कोसी के ग्रामीण इलाकों की इन
बेटियों को दलाल नौकरी और पैसे का लालच देकर झांसे में लेते हैं।
घोर
गरीबी से जूझ रहे इनके माता-पिता की आंखों में पैसे की लालच नयी चमक पैदा
कर देती है। दिल्ली में हर एक बेटी की कीमत तय की जाती है। पांच से पचास
हज़ार तक में इनकी बोली लगती है। महानगरों में काम दिलाने की बात कहकर बहार
गयीं ये बेटियां बड़े शहरों में घुटती रहती हैं। कईयों को तो दलाल अधिक
पैसे की लालाच में जिस्म की मंडियों में बेच देते हैं। इसके बाद उनका वहां
से निकलना असंभव सा हो जाता है। इसके बाद गुमनामी के घरे अंधेरे ही इनका
आशियाना बन जाते हैं।
एक साल में गायब हो गयी 130 बेटियां
आंकड़ों
की मानें तो वर्ष 2010 के जनवरी से वर्ष 2011 के फ़रवरी तक कोसी ने अपनी
130 बेटियों को खो दिया है। ये कहां है, इनका पता किसी के पास नहीं है।
इनमे से कुछ ही मामले थाने तक गए हैं। हर बार की तरह पुलिस का एक ही जवाब
आता है, हम कारवाई कर रहे हैं। कोसी इलाके के जिले सुपौल की 15, सहरसा की
25, मधेपुरा की 10, पूर्णिया की 38, कटिहार की 24 और किशनगंज की 18 बेटियां
गायब हैं।
जब सुनाई दास्तां तो उड़ गए होश
पिछले
दिनों दिल्ली से मुक्त करायी गयी पूर्णिया के रूपौली प्रखंड की रहने वाली
नगमा ने जब अपने बिकने से लेकर मुक्त होने तक की बात सुनाई तो सबके होश उड़
गए। उसने बताया कि आज से दो साल पहले उसे एक दलाल ने 6000 रुपये प्रति माह
की नौकरी का लालच देकर अपने साथ ले गया था। उसके साथ आसपास के जिलों की तीन
दर्जन से ज्यादा लड़कियां गयी थीं। मगर दिल्ली जाकर वे बिछड़ गयीं।
सभी
को एक-एक कर बेच दिया गया। इसके बाद इन सबसे दिनरात काम करवाया जाने लगा,
मारपीट की जाने लगी। शोषण चरम पर होने लगा। दिल्ली में नगमा की कीमत दस
हजार लगी। हालांकि, बाद में एक स्थानीय व्यक्ति के सहयोग से वह भाग निकलने
में कामयाब हो गयी। नगमा की मानें तो उसे अब नयी जिन्दगी मिल गयी है। इससे
पहले भी कुछ लड़कियों को मुक्त कराया गया है। उनकी दास्तां भी कुछ ऐसी ही
रही।
कईयों ने तो बताया कि उनके जिस्मों को हर कभी नोचा जाता था। इस मामले का खुलासा एक स्वयंसेवी संस्था ने भी किया था।