गरीबों की पढ़ाई का खर्च नहीं देगी सरकार

शिमला।
प्रदेश सरकार ने शिक्षा का अधिकार कानून के तहत निजी स्कूलों में गरीबी
रेखा से नीचे रहने वाले बच्चों के लिए तय 25 फीसदी सीटों का खर्च उठाने से
साफ इनकार कर दिया है। सरकार का तर्क है कि जब डेढ़ से तीन किलोमीटर के
दायरे में सरकारी स्कूल खोले गए हैं तो फिर प्रदेश सरकार निजी स्कूलों में
गरीबों की पढ़ाई का खर्च क्यों उठाए। यह खर्च प्रदेश सरकार द्वारा वहन करने
की शर्त सही नहीं है। मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल जल्द ही केंद्रीय मानव
संसाधन विकास मंत्रालय के समक्ष यह मामला उठाएंगे। शिक्षा का अधिकार
कानून के तहत देश में छह से 14 वर्ष आयुवर्ग के बच्चों को अनिवार्य शिक्षा
उपलब्ध करवाने को कहा गया है। इसमें यह भी निर्णय लिया गया है कि गरीबी
रेखा से नीचे रहने वाले बच्चों को 25 फीसदी सीटों पर सरकारी एवं निजी
क्षेत्र में निशुल्क शिक्षा दी जाए और सरकार इसका खर्च स्वयं वहन करे।




निजी स्कूलों में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले बच्चों का खर्च उठाने पर
सरकार को आपत्ति है। सरकार का कहना है कि प्रदेश के दुर्गम एवं जनसंख्या
बहुल क्षेत्रों के अलावा अधिकांश स्थानों पर डेढ़ से तीन किलोमीटर के दायरे
में सरकारी स्कूल उपलब्ध हैं। ऐसे में निजी स्कूलों में जो बच्चे पढ़ रहे
हैं, उनको अभिभावक अपनी इच्छा से पढ़ा रहे हैं। इन बच्चों को सरकारी
स्कूलों में भी पढ़ाया जा सकता है। प्रदेश सरकार के इस निर्णय से निजी
स्कूलों में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले बच्चों को निशुल्क शिक्षा उपलब्ध
करवाने में दिक्कत आएगी। स्कूलों के संचालक अपने बूते यह खर्च उठाने को
तैयार नहीं हैं।




धूमल लिखेंगे मंत्रालय को पत्र


शिक्षा मंत्री ईश्वर दास धीमान का कहना है कि मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल
केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय को पत्र लिखेंगे। इसमें निजी स्कूलों
में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले बच्चों का खर्च उठाने के निर्णय को वापस
लेने की मांग की जाएगी।

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