बठिंडा।
एक तरफ जहां पंजाब के युवा नशे की दलदल में धंसते जा रहे हैं, वहीं गांव
जंगीराणा के न केवल युवक बल्कि युवतियां लोगों के लिए मिसाल कायम कर रही
हैं। बठिंडा से 25 किलोमीटर दूर स्थित इस गांव को यदि मालवा में जाना जाता
है तो वह इसलिए कि यहां हर दूसरे घर से एक सदस्य या तो फौज में है या फिर
पुलिस में। करीब साढ़े चार हजार की आबादी के इस गांव में सौ से अधिक युवा
सेना और पुलिस में हैं इनमें युवतियों की तादाद भी बहुतायत में है।
देश की सीमा पर डटीं गांव की लड़कियां गांव का नाम रोशन कर रही हैं तो अन्य
सेना व पुलिस में भर्ती होने के लिए दिन रात एक कर रही हैं। गांव में
पहुंची भास्कर टीम को गांव के सरपंच हरी सिंह ने कहा कि वह गांव की
लड़कियों पर गर्व महसूस करते हैं। यहां कि लड़कियों में देशप्रेम का जज्बा
ऐसा है कि यदि लड़की की शादी हो रही हो और उसे देश सेवा करने के लिए बुलाया
जाए तो वह शादी छोड़ दे। ऐसा ही जज्बा गांव के सरकारी स्कूल के ग्राउंड
में पहुंची टीम ने देखा। वहां पर युवक और युवतियां फौज व पुलिस भर्ती के
लिए खुद को तैयार करने के लिए दौड़ लगा रहे थे। गांव निवासी किसान बलदेव
सिंह की बेटी जसवीर कौर मध्यमवर्गीय परिवार से संबंधित पहली युवती है जिसने
बीएसएफ में जाकर गांव की युवतियों के लिए मिसाल पैदा की। गांव की हरजीत
कौर व कुलदीप कौर, दोनों बहनें गांव जंगीराणा में विवाहित हैं।
यह परिवार भी लोगों के लिए एक मिसाल है। कुलदीप कौर की छोटी बेटी सुखजीत
कौर पंजाब पुलिस में है जबकि बड़ी बेटी गुरजीत कौर ने विवाह के बाद भी
पुलिस में भर्ती होने के लिए प्रयास जारी रखे। आखिरकार 19वीं बार वह सफल
रही और हरियाणा पुलिस के लिए चुनी गई। इसी प्रकार कुलदीप कौर के दो बेटे
सेना में हैं। इन्हीं बहनों की प्रेरणा से गांव की किरणा कौर, परमजीत कौर,
पुष्पिंद्र कौर और बलजिंदर कौर बताती हैं कि वे पुलिस भर्ती के लिए रोजाना
सुबह 1 घंटा दौड़ लगाती हैं। गांव की एक पोस्ट ग्रेजुएट युवती भी करियर के
लिए तमाम अन्य क्षेत्रों को दरकिनार कर सेना में जाने की तैयारी में जुटी
है।
जंगबाजों के कारण नाम पड़ा जंगीराणा
फौजियों के गांव के नाम से मशहूर इस गांव का नाम ही यहां के नौजवानों की
बहादुरी से पड़ा। गांव के सरपंच हरी सिंह जो स्वयं पूर्व सैनिक हैं, 1971
की जंग लड़ चुके हैं। वे बताते हैं कि सेना से इस गांव का संबंध आजादी से
पहले का है। 1914-1918 के बीच हुए प्रथम विश्व युद्ध मंे इस गांव के 35 के
करीब सेनिकांे ने हिस्सा लिया था। इसकेबाद 1971 की जंग भी यहां के
रणबांकुरों ने लड़ाईलड़ी। गांव के लोगों की बहादुरी के चलते ही गांव को
जंगीराणा का नाम मिला।
एक तरफ जहां पंजाब के युवा नशे की दलदल में धंसते जा रहे हैं, वहीं गांव
जंगीराणा के न केवल युवक बल्कि युवतियां लोगों के लिए मिसाल कायम कर रही
हैं। बठिंडा से 25 किलोमीटर दूर स्थित इस गांव को यदि मालवा में जाना जाता
है तो वह इसलिए कि यहां हर दूसरे घर से एक सदस्य या तो फौज में है या फिर
पुलिस में। करीब साढ़े चार हजार की आबादी के इस गांव में सौ से अधिक युवा
सेना और पुलिस में हैं इनमें युवतियों की तादाद भी बहुतायत में है।
देश की सीमा पर डटीं गांव की लड़कियां गांव का नाम रोशन कर रही हैं तो अन्य
सेना व पुलिस में भर्ती होने के लिए दिन रात एक कर रही हैं। गांव में
पहुंची भास्कर टीम को गांव के सरपंच हरी सिंह ने कहा कि वह गांव की
लड़कियों पर गर्व महसूस करते हैं। यहां कि लड़कियों में देशप्रेम का जज्बा
ऐसा है कि यदि लड़की की शादी हो रही हो और उसे देश सेवा करने के लिए बुलाया
जाए तो वह शादी छोड़ दे। ऐसा ही जज्बा गांव के सरकारी स्कूल के ग्राउंड
में पहुंची टीम ने देखा। वहां पर युवक और युवतियां फौज व पुलिस भर्ती के
लिए खुद को तैयार करने के लिए दौड़ लगा रहे थे। गांव निवासी किसान बलदेव
सिंह की बेटी जसवीर कौर मध्यमवर्गीय परिवार से संबंधित पहली युवती है जिसने
बीएसएफ में जाकर गांव की युवतियों के लिए मिसाल पैदा की। गांव की हरजीत
कौर व कुलदीप कौर, दोनों बहनें गांव जंगीराणा में विवाहित हैं।
यह परिवार भी लोगों के लिए एक मिसाल है। कुलदीप कौर की छोटी बेटी सुखजीत
कौर पंजाब पुलिस में है जबकि बड़ी बेटी गुरजीत कौर ने विवाह के बाद भी
पुलिस में भर्ती होने के लिए प्रयास जारी रखे। आखिरकार 19वीं बार वह सफल
रही और हरियाणा पुलिस के लिए चुनी गई। इसी प्रकार कुलदीप कौर के दो बेटे
सेना में हैं। इन्हीं बहनों की प्रेरणा से गांव की किरणा कौर, परमजीत कौर,
पुष्पिंद्र कौर और बलजिंदर कौर बताती हैं कि वे पुलिस भर्ती के लिए रोजाना
सुबह 1 घंटा दौड़ लगाती हैं। गांव की एक पोस्ट ग्रेजुएट युवती भी करियर के
लिए तमाम अन्य क्षेत्रों को दरकिनार कर सेना में जाने की तैयारी में जुटी
है।
जंगबाजों के कारण नाम पड़ा जंगीराणा
फौजियों के गांव के नाम से मशहूर इस गांव का नाम ही यहां के नौजवानों की
बहादुरी से पड़ा। गांव के सरपंच हरी सिंह जो स्वयं पूर्व सैनिक हैं, 1971
की जंग लड़ चुके हैं। वे बताते हैं कि सेना से इस गांव का संबंध आजादी से
पहले का है। 1914-1918 के बीच हुए प्रथम विश्व युद्ध मंे इस गांव के 35 के
करीब सेनिकांे ने हिस्सा लिया था। इसकेबाद 1971 की जंग भी यहां के
रणबांकुरों ने लड़ाईलड़ी। गांव के लोगों की बहादुरी के चलते ही गांव को
जंगीराणा का नाम मिला।