साजिश के तहत बहुराष्ट्रीय कंपनियों को सौंपी जा रही है खेती: गिल

चंडीगढ़. भारत
की फूड सिक्योरिटी को बचाने के लिए कर्जाई होकर आत्महत्या करने वाले छोटे
किसानों की आमदनी बढ़ाने पर जोर देते हुए कृषि माहिरों ने कहा है, यदि इन
किसानों ने एकजुट होकर मरने के बजाय मारने के लिए आंदोलन छेड़ दिया तो इसके
नतीजे भयानक हो सकते हैं।




किसान स्वराज पॉलिसी पर शुरू हुई बहस में भाग लेने आए अधिकतर कृषि, आर्थिक
विशेषज्ञों और राजनीतिक पार्टियों के नेताओं का यही मानना था कि जो किसान
हमें खाने के लिए दे रहा है आखिर उसके बच्चे पढ़ाई से वंचित क्यों हो रहे
हैं। उसकी आजीविका को मल्टी नेशनल कंपनियों के हवाले क्यों किया जा रहा है?




क्रिड मंे खेती विरासत मिशन और क्रिड के संयुक्त सौजन्य से कराए गए पॉलिसी
मसौदे पर पंजाब और हरियाणा के कृषि विशेषज्ञों ने बहस छेड़ी। अलायंस फॉर
सस्टेनएबल एंड होलिस्टिक एग्रीकल्चर (आशा) की राष्ट्रीय को-ऑर्डिनेटर कविता
कुरुगंती ने ड्राफ्ट का प्रस्तुतीकरण देते हुए कृषि आधारित आजीविका की
आर्थिक निरंतरता, उत्पादक प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा, भूमि जल, वन और
सूचना आदि पर लोगों का नियंत्रण और आम लोगों को गैर विषले खाद्यान्न के
बजाय उचित खाद्यान्न उपलब्ध को सुनिश्चित करने पर बल दिया।




क्रिड के डायरेक्टर जनरल डॉ.सुच्च सिंह गिल छोटी किसानों को बचाने के लिए
को-आपरेटिव फार्मिग की जरूरत पर बल दिया। डॉ गिल ने आरोप लगाया कि ग्रामीण
शिक्षा और स्वास्थ्य को एक साजिश के तहत खत्म किया गया है। उन्होंने अनाज
स्टोरेज के लिए आधुनिक तरीके अपनाने पर जोर दिया। पंजाबी यूनिवर्सिटी के
प्रो.रंजीत सिंह घुम्मण, डॉ सुखपाल, हेमंत गोस्वामी ने भी इस मौके पर अपने
विचार रखे।

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