खेती ने भी किया वातावरण प्रदूषित

लुधियाना।
बेशक वाहनों के धूएं और इंडस्ट्री को पर्यावरण प्रदूषित करने के लिए
सर्वाधिक जिम्मेदार ठहराया जाता हो लेकिन खेती भी प्रदूषण बढ़ाने में पीछे
नहीं है। जंगलो की कटाई एवं भूमि का खेती के लिए उपयोग बीते डेढ़ दशक में
पर्यावरण प्रदूषित करने का बड़ा कारण बना है। विकासशील देशों का हिस्सा
इसमें ज्यादा है। कुछ ऐसी ही चीजों पर विचार किया पंजाब एग्रीकल्चरल
यूनिवर्सिटी (पीएयू) में पहुंचे वैज्ञानिकों ने। पर्यावरण बदलाव एवं उनका
फसलों पर प्रभाव जांचने के लिए विभिन्न विषयों के लगभग दो सौ माहिर पीएयू
पहुंचे हुए हैं। कांफ्रेंस का उद्घाटन पंजाब मंडी बोर्ड के चेयरमैन अजमेर
सिंह लक्खोवाल ने किया।




उन्होंने कहा कि दूसरी हरित क्रांति की तैयारी की जाए लेकिन इस बार किसान
गरीब नहीं होना चाहिए।कुलपति डा.मनजीत सिंह कंग ने कांफ्रेंस की अध्यक्षता
की। भारत जैसे विकासशील देशों में मौसम के बदलावों ने पहले ही कई
परेशानियां पैदा कर दी हैं। इन्हें रोकना जरूरी है। वातावरण में बढ़ रही
ग्रीन हाउस गैसों को बढ़ाने में 10 से 12 फीसदी हिस्सा खेती क्षेत्र का है।
वैज्ञानिकों ने इस बात पर जोर दिया कि फसल चक्र इस प्रकार से तय हो जिससे
भूमि की उपजाऊ शक्ति बनी रहे और पर्यावरण संबंधित समस्या न हो।
एग्रोफॉरेस्ट्री इसका हल हो सकती है। पीएयू के निदेशक खोज डा.सतबीर सिंह
गोसल ने कहा कि मीथेन, कार्बनडाइ ऑक्साइड, नाइट्रोजन आक्साइड आदि गैसें बढ़
रही हैं। इनसे जो बदलाव आ रहे हैं, उनका अंदाजा अभी से लगाना मुश्किल है।
कुछ प्रयासों से इन्हें रोका जा सकता है।




किसान खुदकुशी को न हों मजबूर




पंजाब राज्य मंडीकरण बोर्ड के चेयरमैन एवं भारतीय किसान यूनियन के प्रधान
अजमेर सिंह लक्खोवाल ने कहा कि सरकार के निर्णय अनुसार मंडी बोर्ड की आय
में से कुछ रकम पीएयू को रिसर्च कार्यो के लिए दी जानी चाहिए। लक्खोवाल ने
वैज्ञानिकों से गुहार लगाई कि इस बार दूसरी हरितRक्रांति के लिए काम करते
हुए इस बात का ध्यान रखें कि किसानों का नुकसान न हो। हरित क्रांति से अन्न
भंडार तो भरे लेकिन किसान खुदकुशी करने पर मजबूर हो गया। भूमि उर्वरता
गिरी है और कई समस्याएं आन पड़ी हैं।

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