भोपाल.
केंद्र सरकार ने बांस को लकड़ी की श्रेणी से अलग करते हुए घास मान लिया
है। अब बांस काटने और उसके परिवहन की मंजूरी नहीं लेना पड़ेगी। प्रदेश के
महाकौशल क्षेत्र के 17 जिलों में बांस की पैदावार बहुतायत होती है। वहां
इसकी ढुलाई की अनुमति लेना अनिवार्य थी।
वनस्पति शास्त्रियों के मुताबिक बांस घास का ही एक रूप है, लेकिन उसकी
उपयोगिता देखकर वन विभाग उसे टिंबर के तौर पर ही सहेजकर रखता है। बांस भी
तेंदू पत्ते की तरह राष्ट्रीयकृत वनोपज है। इन उत्पादों को सिर्फ शासन ही
बेच सकता है।
शासन बांस वाले जिलों से बांस लाकर उन जिलों में बेचता था जहां बांस नहीं
होता। केंद्र से बांस काटने की छूट मिलने के बाद अब इसे अराष्ट्रीयकृत
उत्पाद भी घोषित करना होगा। ऐसा होने से वन विभाग बांस को अपने डिपो के
मार्फत बेच नहीं पाएगा और बांस की पैदावार वाले क्षेत्र के ग्रामीण ही उसका
उपयोग कर सकेंगे।
फसल को हुआ था नुकसान
वर्तमान में प्रदेश में बांस की किल्लत है। 2005 में बांस की फसल को भारी
नुकसान हुआ था। उससे उबरने के लिए 2010 को वन विभाग ने बांस वर्ष घोषित
किया। पिछले साल वन विभाग, वन विकास निगम, मप्र लघु वनोपज संघ और संयुक्त
वन प्रबंधन ने बांस के पांच करोड़ के पौधे रोपे।
प्रधान मुख्य वन संरक्षक रमेश के दवे ने दैनिक भास्कर से कहा कि केंद्र ने
बांस को लघु वनोपज में शामिल कर लिया गया है। इससे बांस को स्थानीय ग्रामीण
तो काट सकेंगे लेकिन दूरस्थ क्षेत्रों में इसका इस्तेमाल करने वालों को
इसका लाभ नहीं नहीं मिल पाएगा। बालाघाट से बांस लाकर भोपाल में नहीं बेचा
जा सकेगा।
केंद्र ने ट्राइबल एक्ट के तहत आदिवासियों के हित में यह कदम उठाया है।
केंद्र सरकार ने बांस को लकड़ी की श्रेणी से अलग करते हुए घास मान लिया
है। अब बांस काटने और उसके परिवहन की मंजूरी नहीं लेना पड़ेगी। प्रदेश के
महाकौशल क्षेत्र के 17 जिलों में बांस की पैदावार बहुतायत होती है। वहां
इसकी ढुलाई की अनुमति लेना अनिवार्य थी।
वनस्पति शास्त्रियों के मुताबिक बांस घास का ही एक रूप है, लेकिन उसकी
उपयोगिता देखकर वन विभाग उसे टिंबर के तौर पर ही सहेजकर रखता है। बांस भी
तेंदू पत्ते की तरह राष्ट्रीयकृत वनोपज है। इन उत्पादों को सिर्फ शासन ही
बेच सकता है।
शासन बांस वाले जिलों से बांस लाकर उन जिलों में बेचता था जहां बांस नहीं
होता। केंद्र से बांस काटने की छूट मिलने के बाद अब इसे अराष्ट्रीयकृत
उत्पाद भी घोषित करना होगा। ऐसा होने से वन विभाग बांस को अपने डिपो के
मार्फत बेच नहीं पाएगा और बांस की पैदावार वाले क्षेत्र के ग्रामीण ही उसका
उपयोग कर सकेंगे।
फसल को हुआ था नुकसान
वर्तमान में प्रदेश में बांस की किल्लत है। 2005 में बांस की फसल को भारी
नुकसान हुआ था। उससे उबरने के लिए 2010 को वन विभाग ने बांस वर्ष घोषित
किया। पिछले साल वन विभाग, वन विकास निगम, मप्र लघु वनोपज संघ और संयुक्त
वन प्रबंधन ने बांस के पांच करोड़ के पौधे रोपे।
प्रधान मुख्य वन संरक्षक रमेश के दवे ने दैनिक भास्कर से कहा कि केंद्र ने
बांस को लघु वनोपज में शामिल कर लिया गया है। इससे बांस को स्थानीय ग्रामीण
तो काट सकेंगे लेकिन दूरस्थ क्षेत्रों में इसका इस्तेमाल करने वालों को
इसका लाभ नहीं नहीं मिल पाएगा। बालाघाट से बांस लाकर भोपाल में नहीं बेचा
जा सकेगा।
केंद्र ने ट्राइबल एक्ट के तहत आदिवासियों के हित में यह कदम उठाया है।