मुजफ्फरपुर.
55 साल की राजकुमारी हर रोज 30-40 किलोमीटर का सफर साइकिल से तय करती हैं।
पिछले 20 सालों से हर दिन साइकिल पर सवार होकर वह गांवों की ओर निकल जाती
हैं जहां औरतों को खेती के गुर सिखाती हैं।
आसपास के कई जिले उन्हें ‘किसान चाची’ के नाम से जानते हैं जहां उनका अचार,
मुरब्बा, सॉस जैसे खाद्य वस्तुओं को बनाने का प्रशिक्षण कार्यक्रम चलता
रहता है। अपने गांव आनंदपुर में उन्होंने 36 स्वयं सहायता समूह बनाए हैं
जिसमें 350 महिलाएं बकरी, मुर्गी, भैंस और मधुमक्खी पालन जैसे उद्योगों से
जुड़ खुद को आर्थिक रूप से मजबूत बना रही हैं।
राजकुमारी उर्फ ‘किसान चाची’ 19 साल की थीं, जब मां-बाप ने उन्हें ब्याह
दिया था। कम उम्र में शादी, बच्चे और फिर ससुराल के कायदे-कानून झेलना उनके
लिए मुश्किल हो गया था। तुर्रा ये कि सास सौतेली निकली। जब दूसरी बेटी
सुप्रिया पैदा हुई, तो सास ने घर बांट कर अलग कर दिया। पति कुछ करते नहीं
थे, सो फाके तक की नौबत आ गई।
राजकुमारी कहती हैं, ‘मैंने अपने पिता से पढ़ने की इच्छा जताई ताकि परिवार
की जिम्मेदारी उठा सकूं। शादी के छह साल बाद मैंने मायके जाकर मैट्रिक पास
किया।’ घर के बंटवारे में राजकुमारी और उनके पति के हिस्से एक एकड़ जमीन
आई, जिस पर अदरक और पपीते की खेती शुरू की।
राजकुमारी की लगन और जुनून को सबसे पहले सरैया प्रखंड में कृषि वैज्ञानिक
केंद्र पर काम कर रहीं वैज्ञानिक ज्योति सिन्हा ने पहचाना और उन्हें
प्रशिक्षण लेने के लिए राजेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय, पूसा भेज दिया। कुछ
ही समय बाद वह अपने प्रयोगों से पपीते, लीची, गुलाब आदि से अलग-अलग
प्रोडक्ट्स बनाने लगीं, जो कृषि-प्रदर्शनियों का हिस्सा बनने लगे। बरसों की
मेहनत के बाद उनके प्रोडक्ट्स की मांग बनने लगी।
पिछले साल मुख्यमंत्री नीतीश कुमार खुद उनके घर गए थे और उनकी मेहनत व लगन
से प्रभावित हुए थे। बकौल राजकुमारी, ‘कई कंपनियां मेरे उत्पाद को बाजार
में लाना चाहती थीं, लेकिन मुख्यमंत्री ने सारे उत्पादों को ‘किसान चाची’
के नाम से प्रदेश में बेचे जाने की घोषणा की है।’ उनके द्वारा बनाए गए
अचार, मुरब्बा, जैम, जेली को सुधा डेयरी अब बिहार के बाजार में पहुंचाएगी।
55 साल की राजकुमारी हर रोज 30-40 किलोमीटर का सफर साइकिल से तय करती हैं।
पिछले 20 सालों से हर दिन साइकिल पर सवार होकर वह गांवों की ओर निकल जाती
हैं जहां औरतों को खेती के गुर सिखाती हैं।
आसपास के कई जिले उन्हें ‘किसान चाची’ के नाम से जानते हैं जहां उनका अचार,
मुरब्बा, सॉस जैसे खाद्य वस्तुओं को बनाने का प्रशिक्षण कार्यक्रम चलता
रहता है। अपने गांव आनंदपुर में उन्होंने 36 स्वयं सहायता समूह बनाए हैं
जिसमें 350 महिलाएं बकरी, मुर्गी, भैंस और मधुमक्खी पालन जैसे उद्योगों से
जुड़ खुद को आर्थिक रूप से मजबूत बना रही हैं।
राजकुमारी उर्फ ‘किसान चाची’ 19 साल की थीं, जब मां-बाप ने उन्हें ब्याह
दिया था। कम उम्र में शादी, बच्चे और फिर ससुराल के कायदे-कानून झेलना उनके
लिए मुश्किल हो गया था। तुर्रा ये कि सास सौतेली निकली। जब दूसरी बेटी
सुप्रिया पैदा हुई, तो सास ने घर बांट कर अलग कर दिया। पति कुछ करते नहीं
थे, सो फाके तक की नौबत आ गई।
राजकुमारी कहती हैं, ‘मैंने अपने पिता से पढ़ने की इच्छा जताई ताकि परिवार
की जिम्मेदारी उठा सकूं। शादी के छह साल बाद मैंने मायके जाकर मैट्रिक पास
किया।’ घर के बंटवारे में राजकुमारी और उनके पति के हिस्से एक एकड़ जमीन
आई, जिस पर अदरक और पपीते की खेती शुरू की।
राजकुमारी की लगन और जुनून को सबसे पहले सरैया प्रखंड में कृषि वैज्ञानिक
केंद्र पर काम कर रहीं वैज्ञानिक ज्योति सिन्हा ने पहचाना और उन्हें
प्रशिक्षण लेने के लिए राजेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय, पूसा भेज दिया। कुछ
ही समय बाद वह अपने प्रयोगों से पपीते, लीची, गुलाब आदि से अलग-अलग
प्रोडक्ट्स बनाने लगीं, जो कृषि-प्रदर्शनियों का हिस्सा बनने लगे। बरसों की
मेहनत के बाद उनके प्रोडक्ट्स की मांग बनने लगी।
पिछले साल मुख्यमंत्री नीतीश कुमार खुद उनके घर गए थे और उनकी मेहनत व लगन
से प्रभावित हुए थे। बकौल राजकुमारी, ‘कई कंपनियां मेरे उत्पाद को बाजार
में लाना चाहती थीं, लेकिन मुख्यमंत्री ने सारे उत्पादों को ‘किसान चाची’
के नाम से प्रदेश में बेचे जाने की घोषणा की है।’ उनके द्वारा बनाए गए
अचार, मुरब्बा, जैम, जेली को सुधा डेयरी अब बिहार के बाजार में पहुंचाएगी।