सरकार के इंतजार में कुंवारी रह गईं हमारी बेटियां

रांची
मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के तहत सरकार ने 2010-11 में बीपीएल परिवारों
की 10 हजार बेटियों की शादी कराने का लक्ष्य रखा था, लेकिन वह मात्र एक
हजार लड़कियों के हाथ ही पीले करा सकी। नौ हजार सिर्फ इंतजार करती रह गईं।
इससे अभिभावकों को उनके विवाह के लिए जमीन बेचनी पड़ी या कर्ज लेना पड़ा।
कई तो पैसे के अभाव में अब तक कुंवारी हैं।




इस मद में 10 करोड़ रुपए आवंटित किए गए थे, जिसमें से सरकार डेढ़ करोड़ भी न
खर्च कर पाई। अगर सरकार मार्च तक अपना लक्ष्य पूरा न कर पाई तो गरीबों का
यह पैसा लैप्स हो जाएगा। योजना के तहत सरकार प्रत्येक नव दंपती को 10 हजार
रुपए का घरेलू सामान देती है।




2001-02 में शुरू हुई इस योजना का उद्देश्य बीपीएल परिवारों की उन बेटियों
की मदद करना था, जिनकी शादी पैसे के अभाव में समय पर नहीं हो पाती है। एक
दो वर्षो तक सरकार ने योजना को जमीन पर उतारने में सक्रियता दिखाई। 2004-05
आने तक यह हांफनेलगी।




इसमें नई जान फूंकने के लिए 2010-11 में योजना की राशि 10 हजार से बढ़ा कर
15 हजार कर दी गई। लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुआ। यह योजना अब फ्लॉप होती
नजर आ रही है।




अगले माह गुमला में सामूहिक विवाह




सभी जिलों के समाज कल्याण पदाधिकारियों को मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के
लिए आवेदन लेकर गरीबों को पैसे मुहैया कराने के निर्देश दिए गए हैं। अब तक
कम राशि खर्च हुई है, लेकिन विवाह का मौसम अब आया है। चार फरवरी को गुमला
और फिर सिमडेगा में सामूहिक विवाह का आयोजन करने का कार्यक्रम है। इसके बाद
हर जिले में बार-बारी से ऐसा होगा। ""


विमला प्रधान, समाज कल्याण मंत्री




झारखंड से आगे निकला बिहार




झारखंड की इस योजना को बिहार सरकार ने भी अपने यहां लागू किया। 10 हजार
रुपए के सामान की खरीद में होने वाली अनियमितता को समाप्त करने के लिए
बिहार सरकार नव दंपती के बैंक अकाउंट में ही सीधे पैसा डालती है। झारखंड
में सामान खरीद कर दिया जाता है, जिसमें भ्रष्टाचार व्याप्त है।

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