गंदा है, पर धंधा है- विमलेश मिश्र

विमलेश मिश्र, जमशेदपुर : ये दूसरों की गंदगी साफ करते, मगर खुद
नारकीय जीवन जी रहे हैं। गंदगी साफ करते-करते चर्म, टीबी व कुष्ठ जैसे
असाध्य रोग इन्हें घेर लेते हैं। अनुसूचित जाति के हैं, मगर सुविधा कुछ को
ही। पहले सफाई के लिए सरकार या कंपनी से नौकरी मिल जाती थी, अब ठेकेदार से
मिलने वाली मजदूरी पर जीवन टिका है। संसद ने कानून बना सिर पर मैला ढोने की
प्रथा तो समाप्त कर दी, लेकिन शिक्षा के अभाव में दूसरे काम के लायक नहीं।
विडम्बना यह कि कल्याण का कोई सरकारी कार्यक्रम भी स्वच्छकारों के लिए
नहीं है। स्थिति यह कि ‘गंदा है, पर धंधा है..’ की तर्ज पर जीवन गुजारने को
मजबूर हैं।

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लगभग 80 हजार है आबादी

जमशेदपुर शहर में धातकीडीह हरिजन बस्ती, टीएमएच के पीछे मेडिकल हरिजन
बस्ती, भालूबासा हरिजन बस्ती, 10 नं. हरिजन बस्ती, बर्मामाइंस हरिजन बस्ती,
केबुल हरिजन बस्ती, तार कंपनी हरिजन बस्ती, टेल्को हरिजन बस्ती और कदमा
स्टाफ क्वार्टर हरिजन बस्ती में स्वच्छकारों की लगभग 80 आबादी रहती है।
चूंकि खुद सफाई करते इसलिए इनकी बस्तियों में घर-दरवाजे तो चकाचक नजर आते,
लेकिन बिजली-पानी व अन्य नागरिक सुविधाएं शून्य हैं।

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राशन व लाल कार्ड से महरूम

अधिकांश स्वच्छकार गरीबी रेखा से जीवन-यापन करने के बावजूद राशन कार्ड,
लाल कार्ड से महरूम हैं। शायद ही किसी को वृद्धावस्था-विधवा पेंशन मिलती
हो। कुल मिलाकर जिन्होंने इस शहर को क्लीन सिटी, ग्रीन सिटी बनाया, आज वे
भुखमरी के कगार पर हैं।

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समूह बीमा व ऋण योजनाओं का लाभ नहीं

केंद्र सरकार के कल्याण मंत्रालय द्वारा स्वच्छकार समूह बीमा और उन्हें
लघु-कुटीर उद्योग के लिए बैंकों से ऋण दिलाने की योजना शुरू की गई, लेकिन
जिले में बसे स्वच्छकारों को इनका लाभ नहीं मिलता।

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बिना सुरक्षा उपकरण करते काम

स्वच्छकारों को बिना सुरक्षा उपकरण गहरे सीवर, नाले व मेन होल में गंदगी
साफ करने उतरना पड़ता है। बिना मॉस्क पहने 30-40 फीट गहरे सीवर या मेन होल
में गैस से स्वच्छकारों के बेहोश होने की घटनाएं अक्सर सामने आती हैं।

चर्म, टीबी व कुष्ठ का उपहार

गंदगी साफ करने के कारण अधिकांश स्वच्छकार संक्रामक रोगों से ग्रस्त
रहते हैं। सीवरेज, ड्रेनेज और कचरा, इन्हें चर्म-टीबी और कुष्ठ रोगी बना
देते हैं।

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इनसेट-

टिकट साइज फोटो सहित परिचर्चा :

‘हम लोग अपने हक के लिए बराबर आवाज उठाते रहे, लेकिन आज तक जिला
प्रशासन से कोई मदद नहीं मिली। बरसों पहले राज्य सरकार द्वारा स्वच्छकारों
के लिए ‘गरिमा’ नाम से एक कल्याण कार्यक्रम चला, मगर बाद में वह भी बंद हो
गया।’

बैजू मुखी, उपाध्यक्ष मुखी समाज

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‘कारपोरेट कंपनियों और स्थानीय निकायों में ठेकेदार स्वच्छकारों को बिना
सुरक्षा उपकरण दिए काम कराते हैं। बिना मॉस्क, दस्ताना और लांग बूट सफाई
का काम करने की वजह स्वच्छकारों को विभिन्न रोग घेर लेते हैं। स्वच्छकारों
को शैक्षणिक ऋण मिलना चाहिए।’

हरि मुखी, समाजसेवी

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‘कहां जाएं, किससे कहें। सुनने वाला कोई नहीं है। टीएमएच में ठेकेदार के
अंडर में काम करती हूं। 50 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से देता है। जितने रोज
बीमार पड़ी रहूं, उतने दिन की मजदूरी गायब। इतनी महंगाई में मुश्किल से
गुजारा होता है।’

बसंती देवी, सफाईकर्मी

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‘गंदगी साफ करते-करते चर्म रोग हो गया है। ऑक्सीजन कंपनी में गंदगी साफ
करने काकाम करता हूं। ठेकेदार 60 रुपये रोज देता है। इतने कम पैसों में
गुजारा नहीं हो पाता, तो दवाई के लिए कहां से रकम लाऊं। सरकारी अस्पताल में
जाने पर भी पैसे लगते हैं। कहां जाऊं, किससे कहूं।’

श्रीपति मुखी, सफाईकर्मी

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‘जुस्को में ठेकेदार के अंडर में काम करती हूं। सड़क-नाली सफाई करते-करते
जाने कौन-कौन से रोगों ने घेर लिया है। परिवार पालने की मजबूरी है, इसलिए
काम तो करना ही पड़ता है। सरकार व कंपनी की ओर से कोई मदद नहीं मिलती।’

जलेश्वरी देवी, सफाईकर्मी

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इनसेट- अधिकारी का वर्जन

‘पूर्वी सिंहभूम जिले में स्वच्छकारों के लिए अलग से कोई कल्याण
कार्यक्रम नहीं चलाया जाता। ये अनुसूचित जाति श्रेणी में आते हैं। इसलिए
अनुसूचित जाति को मिलने वाली सुविधाओं के ये भी पात्र हैं।’

फिलबियुस बारला, जिला कल्याण पदाधिकारी

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