यूनिक आईडी के खिलाफ अरुणा राय

जयपुर.
समाज को सरकारी तंत्र की संपूर्ण जानकारी होनी चाहिए या नहीं। इसी विषय पर
संवाद के साथ मंगलवार शाम जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल का समापन हुआ। सॉन्जॉय
राय ने अगले फेस्टिवल में निमंत्रण के साथ सभी का आभार जताया। समापन संवाद
में सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा राय ने कहा, सरकार प्रजा की नौकर है और नौकर
को कुछ भी छुपाने का अधिकार नहीं। अगर आपको किसी चीज की सूचना नहीं है तो
वह आपकी स्वाधीनता पर अंकुश है।




यूनिक आईकार्ड के वे खिलाफ हैं क्योंकि इससे हर आदमी की व्यक्तिगत जानकारी
जाएगी। ऐसे में इसके दुरुपयोग की आशंका है। इससे जातपात और अन्य वर्गीकरण
से नुकसान हो सकता है। लेखिका जयश्री मिश्रा ने कहा, आरटीआई जैसे कानून में
अपवाद हैं और होने भी चाहिए। उन अपवादों का गलत इस्तेमाल नहीं किया जाना
चाहिए। अशोक वाजपेयी ने कहा कि हमें अपनी मातृभाषा में बोलने का हक होना
चाहिए, इसलिए वे हिंदी में बोलेंगे। उन्होंने कहा कि राज बढ़ता जाता है तो
समाज घटता जाता है।




पत्रकार तरुण तेजपाल का कहना है कि यह संवाद एक मजाक है। यह हमारा
फंडामेंटल राइट है। स्वप्नदास गुप्ता ने कहा कि सभी सूचनाएं उपलब्ध नहीं
होनी चाहिए। क्योंकि कई चीजें हमारी सुरक्षा के लिहाज से छिपाई जाती हैं।
आभा ने भी संवाद में हिस्सा लिया।




पत्रकारिता नौकरी नहीं जिम्मेदारी है: हम जिस दौर में रह रहे हैं,
उसे याद रखने की कोई अहमियत ही नहीं है। हमारे चारों ओर तमाम पुरस्कार
समारोह, सालाना समारोह, गोष्ठियां और दूसरे किस्म के आयोजन हो रहे हैं। सभी
का दावा है कि ऐसा करके वे इतिहास के किसी न किसी हिस्से को समृद्ध करने
का काम कर रहे है।




सच्चाई ये है कि इनमें से कोई भी आयोजन वर्तमान को संवारने और भूत के
संरक्षित करने की जगह व्यावसायिक गतिविधियां संचालित कर रहे हैं। मीडिया और
समाज से जुड़े विषयों पर एल्केमी ऑफ राइटिंग एंड द चैलेंजेज ऑफ इंडिया पर
चर्चा हुई जिसमें तरुण तेजपाल ने मन्जू जोसेफ से बातचीत में कहा कि
पत्रकारिता नौकरी नहीं, जिम्मेदारी है। उन्होंने तहलका के स्टिंग ऑपरेशन से
आई परेशानियों पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि पत्रकार का काम केवल
उल्लास भरी खबरों को अवाम के सामने लाना नहीं है।




अपने इर्दगिर्द घटनाओं से लिखी किताब: अपनी अपनी किताबों पर सरिता
मांडना और कावेरी नांबिसन ने नमिता देवीदयाल के साथ चर्चा की। सरिता ने
अपनी किताब कर्नाटक के हिल स्टेशन कूर्ग में बिताए पलों को संजोया है। अपने
परिवार के साथ बिताए गए दिनों के संस्मरणों को आधार बनाते हुए एक पारसी
महिला देवी की काल्पनिक कथा का बखान इसमें किया है।




किताब लिखने में पांच साल लगे। क्योंकि वह किताब चार दशक पहले की है, ऐसे
में उन्हें इस पर काफी रिसर्चभी करनी पड़ी। कावेरी सर्जन हैं और अब साथ
में शब्दों का सृजन कर रही हैं। कावेरी ने कहा, वे गांव में प्रैक्टिस करती
हैं और वहां के माहौल से अच्छी तरह वाकिफ हैं। गांव के मरीजों व उनके
परिवार के करीबी होने के कारण उन्हें यह किताब लिखने की प्रेरणा जागृत हुई।

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