बिलासपुर.नक्सली
नेता बिनायक सेन व पीजूष गुहा के मामले में सोमवार को सुप्रीम कोर्ट के
सीनियर एडवोकेट राम जेठमलानी ने हाईकोर्ट में पैरवी की। सवा दो घंटे तक चली
बहस के दौरान उन्होंने कहा कि डा. सेन व पीजूष पर दंड प्रक्रिया संहिता की
धारा 121 ए (सरकार के खिलाफ युद्ध या राजद्रोह) कहीं से भी सिद्ध नहीं
होता।
उन्हें सिर्फ पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टी (पीयूसीएल) से संबंध रखने
के कारण या फिर कुछ पत्र बरामद होने के आधार पर सजा दी गई, लेकिन पीयूसीएल
ऐसा संगठन नहीं हैं, जिसे आतंकी या देशद्रोही कहा जा सके। बहस अधूरी रहने
के कारण सुनवाई मंगलवार को भी जारी रहेगी।
सेन व गुहा ने अपनी सजा के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील करने के साथ ही जमानत
याचिका भी प्रस्तुत की है। जस्टिस टीपी शर्मा, आरएल झंवर की डिवीजन बेंच
में इन दोनों मामलों की दोपहर सवा दो बजे से सुनवाई शुरू हुई। जेठमलानी ने
अकेले ही लगातार सवा दो घंटे तक बहस की।
आज सुरेंद्र सिंह करेंगे पैरवी
मामले में अभियुक्तों की ओर से पक्ष रखने के बाद जेठमलानी दिल्ली रवाना हो
गए। आज मामले में जबलपुर हाईकोर्ट के वरिष्ठ वकील सुरेंद्र सिंह पक्ष
रखेंगे।
जेठमलानी के तर्क
-बरामद पत्रों से कहीं भी स्पष्ट नहीं होता कि डॉ. बिनायक सेन, पीजूष गुहा
और नारायण सान्याल किसी अवैध या आतंकी गतिविधि में लिप्त थे।
-डॉक्टर होने के नाते परिजनों के कहने पर डॉ. सेन इलाज करने के लिए सान्याल
का इलाज करने उनसे मिलते थे, जिसकी उन्होंने हर बार अनुमति भी ली।
-पीयूसीएल से जुड़े होने के आधार पर किसी को देशद्रोही नहीं ठहराया जा
सकता। -दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 124 के तहत अगर कोई व्यक्ति या संगठन
जो शासकीय व्यवस्था को कोसते हों या सुधारने की कोशिश करते हों, तो उसे
राज्य के खिलाफ युद्ध नहीं माना जाएगा।
-आरोपियों को तो पुलिस ने गिरफ्तार करने के बाद यह तक नहीं बताया कि उनका दोष क्या है।
-उन्हें सुनवाई का तक अवसर नहीं गया, जो प्राकृतिक न्याय और संविधान में उल्लेखित अभिव्यक्ति की आजादी के खिलाफ है।
‘मैं पैसे के लिए नहीं आया’
बहस की शुरुआत में राम जेठमलानी ने इस बात पर पीड़ा जताई कि जब वे रायपुर
एयरपोर्ट में उतरे तो उनका स्वागत ‘वापस जाओ’ और ‘भाड़े के टट्टू’ जैसे
नारों से किया गया। हाईकोर्ट में भी बारने उन्हें आमंत्रित नहीं किया।
इस व्यवहार से उन्हें ठेस पहुंची है। वे इस मामले को पैसे के लिए नहीं,
बल्कि अपनी अंतरात्मा की आवाज पर अपने देश के लोगों के लिए लड़ रहे हैं।
उन्होंने कहा कि इस केस के लिए उन्होंने व उनसे संबद्ध वकीलों ने कोई फीस
नहीं ली है।
नेता बिनायक सेन व पीजूष गुहा के मामले में सोमवार को सुप्रीम कोर्ट के
सीनियर एडवोकेट राम जेठमलानी ने हाईकोर्ट में पैरवी की। सवा दो घंटे तक चली
बहस के दौरान उन्होंने कहा कि डा. सेन व पीजूष पर दंड प्रक्रिया संहिता की
धारा 121 ए (सरकार के खिलाफ युद्ध या राजद्रोह) कहीं से भी सिद्ध नहीं
होता।
उन्हें सिर्फ पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टी (पीयूसीएल) से संबंध रखने
के कारण या फिर कुछ पत्र बरामद होने के आधार पर सजा दी गई, लेकिन पीयूसीएल
ऐसा संगठन नहीं हैं, जिसे आतंकी या देशद्रोही कहा जा सके। बहस अधूरी रहने
के कारण सुनवाई मंगलवार को भी जारी रहेगी।
सेन व गुहा ने अपनी सजा के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील करने के साथ ही जमानत
याचिका भी प्रस्तुत की है। जस्टिस टीपी शर्मा, आरएल झंवर की डिवीजन बेंच
में इन दोनों मामलों की दोपहर सवा दो बजे से सुनवाई शुरू हुई। जेठमलानी ने
अकेले ही लगातार सवा दो घंटे तक बहस की।
आज सुरेंद्र सिंह करेंगे पैरवी
मामले में अभियुक्तों की ओर से पक्ष रखने के बाद जेठमलानी दिल्ली रवाना हो
गए। आज मामले में जबलपुर हाईकोर्ट के वरिष्ठ वकील सुरेंद्र सिंह पक्ष
रखेंगे।
जेठमलानी के तर्क
-बरामद पत्रों से कहीं भी स्पष्ट नहीं होता कि डॉ. बिनायक सेन, पीजूष गुहा
और नारायण सान्याल किसी अवैध या आतंकी गतिविधि में लिप्त थे।
-डॉक्टर होने के नाते परिजनों के कहने पर डॉ. सेन इलाज करने के लिए सान्याल
का इलाज करने उनसे मिलते थे, जिसकी उन्होंने हर बार अनुमति भी ली।
-पीयूसीएल से जुड़े होने के आधार पर किसी को देशद्रोही नहीं ठहराया जा
सकता। -दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 124 के तहत अगर कोई व्यक्ति या संगठन
जो शासकीय व्यवस्था को कोसते हों या सुधारने की कोशिश करते हों, तो उसे
राज्य के खिलाफ युद्ध नहीं माना जाएगा।
-आरोपियों को तो पुलिस ने गिरफ्तार करने के बाद यह तक नहीं बताया कि उनका दोष क्या है।
-उन्हें सुनवाई का तक अवसर नहीं गया, जो प्राकृतिक न्याय और संविधान में उल्लेखित अभिव्यक्ति की आजादी के खिलाफ है।
‘मैं पैसे के लिए नहीं आया’
बहस की शुरुआत में राम जेठमलानी ने इस बात पर पीड़ा जताई कि जब वे रायपुर
एयरपोर्ट में उतरे तो उनका स्वागत ‘वापस जाओ’ और ‘भाड़े के टट्टू’ जैसे
नारों से किया गया। हाईकोर्ट में भी बारने उन्हें आमंत्रित नहीं किया।
इस व्यवहार से उन्हें ठेस पहुंची है। वे इस मामले को पैसे के लिए नहीं,
बल्कि अपनी अंतरात्मा की आवाज पर अपने देश के लोगों के लिए लड़ रहे हैं।
उन्होंने कहा कि इस केस के लिए उन्होंने व उनसे संबद्ध वकीलों ने कोई फीस
नहीं ली है।