खुली पोल,स्कूल में कम बच्चे खाते हैं मिड-डे मील

मुरैना.
तिंदोखर गांव के ग्रामीणों ने जिला प्रशासन के दावों की पोल खोलकर रख दी।
प्रशासन गांव में गंदगी का बहाना बनाकर, दोषी अधिकारियों एवं कर्मचारियों
को बचाने में लगा हुआ है। मध्याह्न् भोजन खाने वाले बच्चे एवं रसोइये ही
आखिर क्यों बीमार पड़े, अन्य लोग क्यों नहीं?


गिनती के आते हैं बच्चे


घटना
के बाद जिला प्रशासन ने यह दावा किया है कि प्राथमिक विद्यालय, माध्यमिक
विद्यालय एवं आंगनबाड़ी केंद्र में क्रमश: 196, 64 और 40 बच्चे उपस्थित थे।
लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि कभी इतने बच्चे एक साथ स्कूल आते ही नहीं
हैं। गांव के राजू सिकरवार ने बताया कि प्राथमिक विद्यालय में 25 से 35
बच्चे स्कूल आते हैं।


संपन्न घरों के बच्चे मध्याह्न् भोजन नहीं
करते। स्कूल में मध्याह्न् भोजन 15 से 20 बच्चे ही करते हैं। घटना के दिन
भी इतने ही बच्चों ने मध्याह्न् भोजन किया था। स्कूल में बच्चों की अधिक
हाजिरी दिखाकर कर मध्याह्न् भोजन का राशन लिया जाता है और शिक्षक अपना
रजिस्टर मेंटेन करते हैं।


.. तो मिडिल स्कूल में नहीं बंटा था भोजन


गांव
के ही दौजी शाक्य ने बताया कि खाना मिडिल स्कूल भी गया था। लेकिन वहां पर
मौजूद एक शिक्षक ने न तो स्वयं खाया,और न ही बच्चों को खाना खाने दिया।
हालांकि जब मिडिल स्कूल के शिक्षक शिवसिंह रावत से बात की गई तो उन्होंने
बताया कि उन्होंने भी खाना खाया था और 64 बच्चों ने भी।


चौकाने
वाली बात यह है कि शिक्षक के सामने ही ग्रामीणों ने यह आरोप लगाए।
ग्रामीणों का कहना था कि अगर यह हकीकत कहेंगे तो नौकरी नहीं चली जाएगी?


शिक्षक व मध्याह्न् भोजन बनाने वाले मिले हैं:
गांव के जीतू सिकरवार ने बताया कि स्कूल के शिक्षक व मध्याह्न् भोजन बनाने
वाले मिले हुए हैं। इसी वजह से बच्चे बेशक कम जाते हैं लेकिन समूह का बिल
लंबा-चौड़ा बनता है।


भोजन खाने के बाद ही बीमार हुए बच्चे:
गांव के सरपंच कल्याण सिंह सिकरवार का कहना है कि उतने ही बच्चे बीमार
हुए,जितनों ने मध्याह्न् भोजन खाया था। अधिकतर बच्चे व गांव के लोग तो
गुरुवार को पास के ही गांव मंे एक शादी समारोह में गए थे।


हम नहीं खाते स्कूल में खाना:
प्राथमिक विद्यालय में पढ़ने वाली 8 वर्षीय शिवानी ने बताया कि यूं तो वह
गुरुवार को दो बजे स्कूल से घर आ गई थी। लेकिन वह स्कूल में मध्याह्न् भोजन
नहीं करती। क्योंकि स्कूल में खाना अच्छा नहीं बनता।


एक बार निकली थी सब्जी में छिपकली:
ग्रामीणों ने बताया कि एक बार स्कूल में मध्याह्न् भोजन की सब्जी में
छिपकली भी निकली थी। जब एक छात्र ने छिपकली को देख लिया था तो उसने रसोईये
को बताया भी था। लेकिन रसोईए ने छिपकली को सब्जी से निकालकर फेंक दिया और
छात्र को थप्पड़ भी मारा था व चुप रहने के लिए कहा था। लेकिन छात्र ने अन्य
बच्चों कोभी यह बात बता दी थी। इसलिए उस दिन किसी भी बच्चे ने खाना नहीं
खाया था।


बच्चे नहीं जाएंगे स्कूल: ग्रामीणों ने शुक्रवार
को ही एकत्रित होकर बैठक की और निर्णय लिया कि वे बच्चों को स्कूल नहीं
भेजेंगे। आगामी निर्णय 26 जनवरी को होने वाली ग्रामसभा में निर्णय लिया
जाएगा।


शिक्षकों के लिए बना था अलग से खाना: गांव के
पूर्व सरपंच कल्लाराम शाक्य ने बताया कि गुरुवार को स्कूल में महज 12-13
बच्चे ही पढ़ने के लिए पहुंचे थे। जो सब्जी बच्चों को दी गई थी,वह बच्चों
को देने के बाद खत्म हो गई थी। इसके बाद दोबारा सब्जी बनी और शिक्षकों ने
भी खाना खाया। इस वजह से शिक्षकों के ऊपर असर नहीं पड़ा।


रात में रसोई का सामान गायब


गांव
के दौजीराम शाक्य ने बताया कि गुरुवार शाम को जब बच्चे बीमार हुए तो रात
में ही समूह संचालकों ने किचन से खाना बनाने की सामग्री हटा दी थी और बर्तन
साफ करके कमरे में बंद कर दिए थे। साथ ही तभी से समूह का सचिव भी गायब है।
अगर मध्याह्न् भोजन से बच्चे बीमार नहीं हुए थे, तो सामग्री क्यों हटा दी
गई?

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