13 वर्ष में एससी-एसटी एक्ट में सभी अनुसंधान अवैध

पटना, विधि संवाददाता। पटना उच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में
अनुसूचित जाति एवं जनजाति उत्पीड़न से जुड़े मामले में राज्य सरकार को करारा
झटका दिया है। गुरुवार को अदालत ने मियांपुर नरसंहार में अभियुक्त अंबुज
शर्मा की याचिका पर सुनवाई करते हुए 13 मार्च,1995 से 9 अगस्त, 2008 तक
अनुसूचित जाति एवं जनजाति अधिनियम के तहत दर्ज मामलों में अनुसंधान को अवैध
करार दिया है।

मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रेखा एम दोषित व न्यायमूर्ति ज्योति शरण
की खंडपीठ ने जब अनुसूचित जाति/जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम,1989 को
चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई की तो पता चला कि अधिनियम को लागू करने
को अधिसूचना जारी करने में राज्य सरकार की ओर से न केवल देरी की गई बल्कि
इसे भूतलक्षी प्रभाव से लागू कर दिया गया। राज्य सरकार ने 1989 में बने
एससीएससी एक्ट की धारा 9 के अंर्तगत 9 अगस्त 2008 को गजट का प्रकाशन किया।
इसमें यह व्यवस्था की गयी कि डीएसपी की पर्याप्त संख्या नही रहने के कारण
एससी-एसटी एक्ट के तहत दर्ज मामले का अनुसंधान इंस्पेक्टर, सब इंस्पेक्टर
आदि कर सकेंगे। डीएसपी के नीचे के अधिकारियों को यह अधिकार भूतलक्षी प्रभाव
अर्थात 31 मार्च 1995 से ही प्रदान कर दिया गया।

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील दीनू कुमार ने कहा कि किसी भी
कानून को भूतलक्षी प्रभाव से लागू नहीं किया जा सकता। जब 2008 में गजट हुआ
तो इसी समय इसे लागू समझा जाएगा जिसे अदालत ने स्वीकार कर लिया। इसका
तात्पर्य यह हुआ कि 13 वर्ष के दौरान डीएसपी के नीचे के अधिकारियों द्वारा
किये गये अनुसंधान, अभियोजन आदि अवैध हुए और अनुसंधान ही गलत हुआ तो कोर्ट
द्वारा लिया गया संज्ञान भी गलत हुआ। इस तरह एक्ट के तहत सजा प्राप्त
मुजरिमों को भी राहत मिल गयी। कोर्ट के फैसले के बाद राज्य सरकार की
अधिसूचना अगस्त 2008 के बाद ही सही मानी जाएगी।

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